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कश्मीर में आजादी मांगने वालों से हम बात नहीं करेंगे: सरकार

केंद्र ने साफ कहा कि कश्मीर मसले पर वह सिर्फ मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से बात करेगी, अलगाववादियों से नहीं

Bhasha

सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह जम्मू कश्मीर के संकट को सुलझाने के लिए वहां के मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से वार्ता के लिये तैयार है लेकिन अलगाववादियों के साथ नहीं.

अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दो टूक शब्दों में कहा कि सरकार वार्ता की मेज पर तभी आएगी जब मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल इसमें शिरकत करेंगे न कि अलगाववादी तत्व.


चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर, जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड और जस्टिस संजय किशन कौल तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष यह दावा किया. उन्होंने जम्मू कश्मीर उच्च कोर्ट बार एसोसिएशन के इस दावे को खारिज किया कि केंद्र संकट को सुलझाने के इरादे से वार्ता के लिए आगे नहीं आ रहा है.

रोहतगी ने कहा कि हाल ही में प्रधानमंत्री और राज्य की मुख्यमंत्री के बीच बैठक हुई थी जिसमें मौजूदा हालात पर चर्चा हुई थी.

पीठ ने बार एसोसिएशन से कहा कि पत्थरबाजी और कश्मीर घाटी में सड़कों पर हिंसक आन्दोलन सहित इस संकट को हल करने के बारे में वह अपने सुझाव पेश करे.

बार घाटी शांत करने में अहम भूमिका अदा कर सकती है

शीर्ष अदालत ने बार से यह भी स्पष्ट किया कि उसे इसके सभी पक्षकारों से बातचीत के बाद अपने सुझाव देने होंगे और वह यह कह कर नहीं बच सकती कि वह कश्मीर में सभी का प्रतिनिधित्व नहीं कर रही है.

कोर्ट ने कहा कि एक सकारात्मक पहल शुरू करने की आवश्यकता है0 और बार जैसी संस्था घाटी में स्थिति सामान्य करने के लिये एक योजना पेश करके इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है.

पीठ ने केंद्र को भी स्पष्ट कर दिया है कि कोर्ट इस मामले में खुद को तभी शामिल करेगा जब ऐसा लगता हो कि वह एक भूमिका निभा सकता है और इसमें अधिकार क्षेत्र का कोई मुद्दा नहीं हो.

कोर्ट ने अटार्नी जनरल से कहा, ‘यदि आपको लगता है कि कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है या आपको लगता है कि यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है तो हम इसी क्षण इस फाइल को बंद कर देंगे.

पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब सुनवाई के अंतिम क्षणों में अटार्नी जनरल ने बार द्वारा दिए गए कुछ सुझावों पर आपत्ति की. इसमें अलगाववादियों को नजरअंदाज किया जाना भी शामिल है.