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शोपियां कश्मीर ग्राउंड रिपोर्ट: यहां पुलिस-पब्लिक दोनों डरे हुए हैं

हालात ये हैं कि अगर किसी गांव में कुछ हो जाए तो वहां पुलिस भी आसानी से नहीं जाती.

Pradeepika Saraswat

देखने में शोपियां किसी और कश्मीरी कस्बे सा ही है. लेकिन यहां मची उथल पुथल के चलते कश्मीरी लोगों को तो छोड़िए खुद पुलिस वाले तक जाने से हिचकने लगे हैं. मैं जब शोपियां जाने के लिए निकली तो लगभग सबने रोका. जब यहां पहुंची तो समझ में आया क्यों?

हालात ये हैं कि अगर किसी गांव में कुछ हो जाए तो वहां पुलिस भी आसानी से नहीं जाती. शोपियां के आदिल इकबाल कहते हैं, 16 अप्रैल को यहां के एक वकील इम्तियाज की हत्या के बाद पुलिस वाले आए लेकिन वो उस जगह नहीं गए जहां हत्या हुई. हत्या के तीन दिन बाद पुलिस आखिरकार इम्तियाज के घर पहुंची और वहां उसे पथराव का सामना करना पड़ा.


हालांकि पुलिस का दावा है कि वो वहां गए थे पर चूंकि घरवाले बात करने की हालत में नहीं थे इसलिए वो लौट आए थे. एसएचओ शोपियां गुलाम जिलानी का कहना है कि पुलिस अपना काम कर रही है. जिलानी कहते हैं, यहां गुरिल्ला वार जारी है लेकिन पुलिस अपना काम स्ट्रेटेजिकली कर रही है. हमें जहां जाने की जरूरत होती है, हम जाते है, जिसे गिरफ्तार करने की जरूरत होती है हम करते हैं.

पिछली कई बार की तरह शोपियां में 10 मई को देर शाम मस्जिदों से अगले दिन से हड़ताल के लिए आदेश जारी हुआ. यह हड़ताल एक स्थानीय युवा ज़ुबैर अहमद तुरे की गुमशुदगी के खिलाफ थी. ज़ुबैर के पिता बशीर अहमद तुरे का दावा है कि पिछले तीन महीने से पुलिस ने उसे गैरकानूनी तौर पर कस्टडी में लिया हुआ था. दो मई को अचानक उन्हें फोन कर के बताया गया कि वह भाग निकला है. जबकि उन्हें व अन्य स्थानीय लोगों को शक है कि पुलिस ने उसके टॉर्चर के बाद उसकी हत्या कर दी है.

जुबैर को गैराकानूनी तौर पर कस्टडी में रखने के आरोप के बारे में एसएसपी शोपियां श्रीराम अंबरकर का कहना है कि उन्होंने सिर्फ 2 दिन पहले ही चार्ज लिया है और वे इस बारे में जांच कर रहे हैं. खबर लिखे जाने तक शोपियां में हड़ताल जारी है.

नाम न छापने की शर्त पर एक स्थानीय वकील बताते हैं कि चंद महीनों पहले तक बहुत से युवा मिलिटेंसी में जा रहे थे. बुरहान की मौत के बाद उन्हें लोगों का समर्थन काफी मिला और उनकी गतिविधियां बढ़ गई हैं. लेकिन जिस तरह से लोगों को केवल इसलिए मारा जाने लगा कि वो किसी ऐसी पार्टी से जुड़े हुए हैं जो चुनावों में भाग लेती है लोग दूर होने लगे.

इन हालात में शोपियां में अफवाहों का बाजार भी गर्म है. कभी किसी लड़के के मिलिटेंट बनने की अफवाह उड़ती है तो कभी किसी की लाश बरामद होने की.

लब्बोलुआब ये है कि दक्षिणी कश्मीर में अराजकता का आलम है. लगातार हो रही पॉलिटिकल हत्याओं के बाद जो लोग कश्मीर के आर्म्ड मूवमेंट का समर्थन करते थे, वे भी अब इस पर सवाल उठाने लगे हैं.

पिछले दिनों में हुई घटनाएं

सिर्फ सिविलियन ही नहीं, हमले पुलिस और आर्मी के लोगों पर भी किए जा रहे हैं. 27 मार्च की रात अज्ञात मिलिटेंट्स ने शोपियां के दियारू गांव में दो पुलिसकर्मियों, एएसआइ दिलबर अहमद रातहर व कॉन्स्टेबल रियाज अहमद के घर में घुस कर तोड़फोड़ की और हवाई फायर किए.

2 मई को छह से आठ मिलिटेंट्स के समूह ने शोपियां कोर्ट में रात 10 बजे के आसपास पुलिस पोस्ट पर धावा बोलते हुए वहां मौजूद पांच पुलिस कर्मियों से उनकी सर्विस राइफल छीन ली. हाल ही में 10 मई को शोपियां में हुई कुलगाम के युवा आर्मी अफसर की हत्या ने भी माहौल को और दहशतजदा कर दिया है.

'इसे आप लॉ एंड ऑर्डर प्रॉब्लम समझने की भूल न करें,' शोपियां के एक बुज़ुर्ग रिटायर्ड टीचर शफी खान कहते हैं, यहां जो हो रहा है वो एक राजनीतिक समस्या को नजरअंदाज किए जाने की वजह से हो रहा है. मिलीटेंट्स को मार कर ताकत के दम पर यहां सिर्फ बीमारी के सिमटम्स को ठीक करने की कोशिश की जाती है. लेकिन असली बीमारी की जड़ तक पहुंचने के लिए इंडिया, पाकिस्तान और कश्मीर के समझदार तबके को एक टेबल पर बैठकर समाधान ढूंढना होगा वरना हालात सिर्फ बद से बदतर ही होंगे.

लोगों की मानें तो हालात दिन-पर-दिन बिगड़ रहे हैं. लगातार होती हत्याएं गवाह हैं कि सरकारी तंत्र यहां पूरी तरह फेल होता नज़र आरहा है. ऐसे में सिर्फ फौज़ की ताकत के बल पर यहां हालात ठीक करने की कोशिश की जाएगी या फिर केंद्र इस बारे में दूसरी तरह से सोचने की कोशिश करेगा, आने वाला वक्त बताएगा.