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'देसी गाय की नस्ल को बचाने के लिए जरूरी है जल्लीकट्टू'

खेल में जीतने वाले बैल को नस्ल बढ़ाने के लिए चुना जाता है, जबकि अन्य शेष बैल का इस्तेमाल खेती आदि गतिविधियों के लिए किया जाता है

FP Staff

जल्लीकट्टू पर देशभर में चर्चा जारी है. इस खेल के दौरान सोमवार को मदुरै में एक बच्चे की मौत भी हो गई. बावजूद इसके, लाखों की संख्या में लोग इसमें हिस्सा ले रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में इसपर बैन लगा दिया. वाबजूद इसके यह खेल होता रहा. पिछले साल जब कड़ाई से इसे रोकने की कोशिश की गई तब दक्षिण भारत की राजनीति अचानक गरमा गई. एक ऐसा आंदोलन खड़ा हुआ जिसका नेतृत्व करनेवाला कोई नेता नहीं था. लोग अपनी परंपरा को बचाने के लिए सड़कों पर उतर रहे थे.


न्यूज 18 में छपी खबर के मुताबिक इस पूरे मसले पर लोगों का पक्ष रख रहे कार्तिकेय सेनापथी कहते हैं कि जो लोग इसे खेल समझ रहे हैं या पशुओं के प्रति अत्याचार समझ रहे हैं, वह नासमझ हैं. उन्हें यह नहीं पता कि जल्लीकट्टू कैसे खेला जाता है. दरअसल यह एक विज्ञान है. 100 साल पुरानी संस्कृति और इसके पीछे छुपा गर्व का विषय है.

देसी नस्ल के सांडों और गायों को बचाने के लिए जरूरी है जल्लीकट्टू

कार्तिकेय सेनपथी का कहना है, 'जल्लीकट्टू एक खेल की तुलना में एक वैज्ञानिक अभ्यास का विषय अधिक है.' उनका दावा है कि जल्लीकट्टू देसी नस्ल को आगे बढ़ाने और जीन संरक्षण के लिए श्रेष्ठ बैल नस्लों की पहचान करने में मदद करता है. खेल में जीतने वाले बैल को नस्ल बढ़ाने के लिए चुना जाता है, जबकि अन्य शेष बैल का इस्तेमाल खेती आदि गतिविधियों के लिए किया जाता है.

सेनापति कहते हैं कि बछड़ों की स्वदेशी नस्लों को कम रखरखाव की आवश्यकता होती है और वे स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के लिए बिल्कुल अनुकूल हैं. विदेशी नस्लों गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं और उन्हें पालन करना बेहद महंगा मामला है.

2017 में प्रतिबंध के बाद, तमिलनाडु के किसानों को देशी नस्ल से अधिक दूध के साथ कम समय में अधिक लाभ तलाश करना पड़ा है. जर्सी और होल्स्टिन फ्रेजियन गाय जहां एक दिन में 12 लीटर दूध देती है, वहीं देशी गाय 3 लीटर ही दे पाती है. ऐसे में देसी गायों की संख्या का अधिक होना जरूरी है.

बीमारी की वजह बनती है विदेशी नस्ल की गायों की दूध 

मवेशियों की दो नस्लों, ए 1 दूध (विदेशी नस्लों द्वारा उत्पादित) और ए 2 दूध (स्वदेशी नस्ल द्वारा निर्मित) द्वारा निर्मित दो प्रकार के दूध हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ए 1 दूध में बीसीएम -7 नामक एक अवांछित प्रोटीन होता है, जो कि स्वास्थ्य पर अन्य नकारात्मक प्रभावों के अलावा टाइप 1 डायबिटीज का कारण भी होता है. हालांकि, यह बहस का विषय रहा है और यह पूरी तरह से साबित नहीं हुआ है.

जानकारी के मुताबिक इस खेल में सांडों को वश में किया जाता है और इसके बाद इन्हें लोगों की भीड़ पर छोड़ दिया जाता है. प्रतिभागी इसमें सांडों को सींग और कूबड़ से पकड़ने की कोशिश करते हैं. इस खेल को मट्टू पोंगल के दौरान आयोजित किया जाता है. लोकप्रिय फसल त्योहार के तीसरे दिन ये मनाया जाता है.

(न्यूज 18 के लिए द्वारक सुब्रमण्यिन)