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जैश-ए-मोहम्मद का गढ़ बनता जा रहा है बुरहान वानी का शहर

जम्मू-कश्मीर के पुलिस सूत्रों का कहना है कि हाल के महीनों में खासतौर पर शोपियां जिले में दर्जनभर से भी ज्यादा आतंकवादियों के मारे जाने के बाद जैश-ए-मोहम्मद बड़ी संख्या में युवाओं को अपने संगठन की तरफ आकर्षित करने में सफल रहा है

Sameer Yasir

कश्मीर के तीन दशकों के आतंकवाद में नई जान फूंकने वाले और करीब दो साल पहले पुलिस एनकाउंटर में मारे गए हिजबुल कमांडर बुरहान मुजफ्फर वानी का शहर त्राल पाकिस्तानी आतंकी सं गठन जैश-ए-मोहम्मद के लिए तेजी से प्रमुख ठिकाने के तौर पर उभर रहा है. जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर है.

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने पिछले हफ्ते मंगलवार को त्राल के लाम जंगल में चार आतंकवादियों को मार गिराया था. यह इलाका आतंकवाद के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले पुलवामा जिले में मौजूद है. दो दिनों के बाद पुलिस ने मारे गए एक आतंकवादी की पहचान मुफ्ती यासिर के तौर पर की, जो जैश-ए-मोहम्मद का ऑपरेशनल कमांडर था. वह कभी जैश सरगना मसूद अजहर का निजी सुरक्षाकर्मी हुआ करता था. कश्मीर पुलिस के आईजी स्वयम प्रकाश पाणि ने बताया, 'वह जैश-ए-मोहम्मद का बड़ा कमांडर था. इस आतंकी संगठन में उसकी भूमिका बेहद अहम थी.'


जब पुलिस के साथ आतंकवादियों की मुठभेड़ शुरू हुई, तो सुरक्षा बलों को तनिक भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनके साथ मुकाबला कर रहा शख्स मसूह अजहर का करीबी सहयोगी और दक्षिणी कश्मीर में इस आतंकी संगठन में भर्ती करने वाला टॉप कमांडर है.

बड़ी संख्या में युवाओं की अपनी तरफ खींच रहा है जैश

जम्मू-कश्मीर के पुलिस सूत्रों का कहना है कि हाल के महीनों में खासतौर पर शोपियां जिले में दर्जनभर से भी ज्यादा आतंकवादियों के मारे जाने के बाद जैश-ए-मोहम्मद बड़ी संख्या में युवाओं को अपने संगठन की तरफ आकर्षित करने में सफल रहा है. पुलवामा से जुड़े पुलिस जिले, अवंतीपुरा के एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने फर्स्टपोस्ट को बताया, 'अगर आज 20 लड़के आतंकवादी बनते हैं, तो 15 जैश-ए-मोहम्मद में शामिल होते हैं और त्राल उनका नया ठिकाना है.'

दरअसल, इस आतंकवादी संगठन ने त्राल में हिजबुल की ढीली पड़ती पकड़ का फायदा उठाया है. हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख आतंकवादी तारिक पंडित की गिरफ्तारी के बाद त्राल इलाके में इस आतंकवादी संगठन का प्रभाव कम हुआ है. सूत्रों के मुताबिक, इसके अलावा जंगलों में मौजूद हिजबुल के गुप्त ठिकानों का खुलासा होने के बाद एक पुलिस अधिकारी त्राल के इलाके और आतंकवाद के बदलते ट्रेंड पर करीबी नजर रख रहा है.

आत्मघाती हमलों के लिए कुख्यात है यह आतंकी संगठन

जैश-ए-मोहम्मद ने 31 दिसंबर 2017 को त्राल के किशोर फिदायीन फरदीन खांडे द्वारा किए गए आत्मघाती हमले का पहला वीडियो जारी किया था. यह आतंकवादी अपने दो सहयोगियों के साथ लेथापोरा ट्रेनिंग कैंप में घुस गया था. हालांकि, इस हमले को अंजाम देने से पांच दिन पहले जैश ने अपने एक अहम आतंकवादी को खोया था. 47 साल का और महज 3 फुट लंबा नूर मोहम्मद तांत्रे जैश-ए-मोहम्मद का डिविजनल कमांडर था. नूर मोहम्मद को कश्मीर घाटी में इस आतंकवादी संगठन के फिर से सक्रिय होने के पीछे मुख्य दिमाग माना जाता था. 26 दिसंबर 2017 को दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले में हुए मुठभेड़ में तांत्रे मारा गया था.

वह जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर गाजी बाबा का करीबी सहयोगी था. गाजी बाबा ने ही 2001 में भारत की संसद पर हमले की साजिश रची थी. तांत्रे को 31 अगस्त 2003 को दिल्ली के सदर बाजार से गिरफ्तार किया गया था. वह श्रीनगर की सेंट्रल जेल में अपनी सजा काट रहा था. साल 2015 में वह पैरोल पर बाहर आया था. मूल रूप से त्राल का यह रखने वाला शख्स उसके बाद अपने शहर में आतंकी वारदातों में सक्रिय होकर इस इलाके में जैश-ए-मोहम्मद का जाना-माना चेहरा बन गया.

एक खुफिया अधिकारी ने बताया, 'आतंकी कैंपों में विचित्र तरह का बदलाव देखने को मिल रहा था. मुश्ताक लतराम ने गुपचुप तरीके से पाकिस्तान में मसूद अजहर के साथ हाथ मिला लिया था और कश्मीर में उसके कुछ आदमी ने यह बात फैलाई कि तांत्रे का जुड़ाव कभी अल-उमर से था.'

दिलचस्प बात यह थी कि श्रीनगर के पुराने इलाके के निवासी लतराम और उसके आतंकी संगठन अल-उमर को मरहूम मौलवी मीरवाइज फारूक के समर्थकों का अच्छाखासा समर्थन हासिल था. मीरवाइज फारूक के समर्थकों को बकरस (Bakras) कहा जाता था. पुराने श्रीनगर के अलावा, त्राल को कश्मीर में बकरस का दूसरा ठिकाना माना जाता है.

अधिकारी ने बताया, 'इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि अल-उमर से कभी जुड़े इस शख्स ने तांत्रे को अपना क्यों बताया. और अब जब मुश्ताक और मसूद एक साथ आ गए थे, तो जैश में आतंकवादियों की भर्ती का काम देखने वाले मुख्य शख्स के त्राल से होने की वजह साफ थी.' अधिकारी का कहना था, 'दरअसल, वह जैश के पुराने नेटवर्क को पुनर्जीवित कर वास्तव में कुछ खतरनाक खेल करने की तैयारी में था.'

एनकाउंटर में मारे जाने से पहले तांत्रे ने जिस तरह से जैश के नेटवर्क को आगे बढ़ाया, किसी भी अन्य आतंकवादी के लिए ऐसा करना बेहद मुश्किल था. नूर मोहम्मद तांत्रे ने एक जैश के एक और कमांडर मुफ्ती वकास के साथ मिलकर इस आतंकवादी संगठन द्वारा हाल में किए गए हमलों में अहम भूमिका निभाई थी.

त्राल में हुए पिछले एनकाउंटर में यासिर समेत जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकवादी मारे गए थे. यासिर जैश के सरगना मसूद अजहर का निजी सुरक्षाकर्मी था. दक्षिणी कश्मीर में मार्च 2018 में लेथापोरा में हुई एक मुठभेड़ में मुफ्ती वकास के मारे जाने के बाद यासिर ने इस आतंकवादी की जगह ली थी.

जैश-ए-मोहम्मद के मुखपत्र अल कलाम के मुताबिक, पिछली गर्मियों से अब तक कश्मीर में जैश के 37 आतंकवादी मारे जा चुके हैं. और अब यह आतंकवादी संगठन लगातार त्राल को अपना मजबूत ठिकाना बनाने में जुटा है. पुलिस के मुताबिक, जैश की सक्रियता बढ़ने से लश्कर-ए-तैयबा और हिजुबल मुजाहिदीन को थोड़ी 'राहत' मिल सकती है. गौरतलब है कि ऑपरेशन ऑल आउट में इन दोनों आतंकी संगठनों को काफी नुकसान हुआ है.

कश्मीर में लंबे समय तक रहे और बाद में दिल्ली में शंट कर दिए गए एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह आतंकवादी संगठन पुलिस का 'अपना' था. उनके मुताबिक, दरअसल इस आतंकवादी संगठन में पुलिस की सबसे ज्यादा घुसपैठ थी.

पुलवामा के सीनियर एसपी मोहम्मद असलम ने फर्स्टपोस्ट को बताया, 'स्थानीय कश्मीरी आतंकवादियों की तुलना में ये ज्यादा सख्त होते हैं और इनसे निपटना ज्यादा मुश्किल है. अब उनके साथ बड़ी संख्या में स्थानीय आतंकवादी भी हैं और यह खतरनाक गठजोड़ है.'

कंधार की घटना के बाद आतंकी गतिविधियों के ट्रेंड में हुआ था बदलाव

साल 2000 तक कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के ट्रेंड में अहम बदलाव हो चुका था. इससे ठीक पहले कंधार विमान अपहरण मामले में तीन आतंकवादियों की रिहाई हुई थी, जिनमें मौलाना मसूद अजहर और अल-उमर के मुखिया मुश्ताक लताराम भी शामिल थे. इस नए ट्रेंड के तहत जैश-ए-मोहम्मद के फिदायीन दस्ते ने सरकार के लिए और परेशानी पैदा करते हुए कश्मीर में मौजूद सैन्य ठिकानों पर हमला शुरू कर दिया.

अधिकारियों के मुताबिक, साल 1999 के मध्य से लेकर 2002 के आखिर तक इस तरह के 55 हमले हुए। इन हमलों में 161 सुरक्षाकर्मी और 90 फिदायीन मारे गए. जैश-ए-मोहम्मद के साथ मिलकर लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद ने कश्मीर में आतंकवाद के इस ‘फिदायीन’ की अगुवाई की.

साल 2003 के बाद फिदायीन हमलों में तेज गिरावट नजर आने लगी। एक बार फिर कश्मीर के आतंकवादी हमले पाकिस्तान समर्थक हिजबुल मुजाहिदीन के इर्दगिर्द केंद्रित हो गए यानी इस संगठन की सक्रियता काफी बढ़ गई. बहरहाल, 1990 के दशक से ही सुरक्षा बलों के साथ लंबी लड़ाई और आतंरिक मतभेद के कारण यह आतंकवादी संगठन लगातार कमजोर पड़ता गया और उसे हाशिए पर पहुंचने के लिए मजबूर होना पड़ा.

प्रतीकात्मक तस्वीर

कुछ सालों की अपेक्षाकृत शांति के बाद जैश ने साल 2013 के आखिर में वापसी की, जब इसके संस्थापक और सरगना मसूद अजहर ने भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी होने के बाद उसकी जीवनी 'आइना' का विमोचन किया. 240 पन्नों की इस किताब में जैश के सरगना ने अफजल गुरु की वकालत करते हुए उसे (गुरु) 'बेरोजगार, काफी ज्यादा सिरगेट पीने वाले' ऐसे युवा की तरह पेश करने के लिए भारत सरकार की आलोचना की है, 'जिसकी वफादारी काफी सस्ते में खरीदी जा सकती है.'

अफजल की पहली बरसी से एक महीना पहले जैश ने अपना अफजल गुरु दस्ता बनाया था और उसके नाम पर पूरे कश्मीर में और अन्य जगहों पर सैन्य ठिकानों पर हमले किए थे.

जैश-ए-मोहम्मद के लिए इस तरह के हमले कश्मीर की जमीन पर उसकी आश्चर्यजनक वापसी की शुरुआत थे. खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, अफजल गुरु जैश का 'बड़ा जिहाज प्रोजेक्ट' बन गया था. जनवरी 2016 को पठानकोट एयरबेस पर हमला करने के बाद जैश के अफजल गुरु दस्ते ने सितंबर 2016 को उरी स्थित सेना के कैंप पर हमला किया. इसी तरह, अगस्त 2017 में पुलवामा और अक्टूबर 2017 में श्रीनगर एयरपोर्ट पर हमले को अंजाम दिया गया. जम्मू-कश्मीर में स्थानीय स्तर पर आतंकवाद में बढ़ोतरी का ट्रेंड दिख रहा है, ऐसे में आने वाले दिन आसान नहीं रहने वाले हैं.