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आईटी सेक्टर में छंटनी: पूरा अंधकार नहीं लेकिन चमक कम होनी तय है

अगर आप सीखने और बदलने को तैयार हैं, तो आपके लिए नौकरी की कमी नहीं

Sulekha Nair

भारत का आईटी सेक्टर इस वक्त बुरे दौर से गुजर रहा है. कंपनियों में बड़े पैमाने पर छंटनी की खबरें आ रही हैं. मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक कॉग्निजान्ट ने दस हजार कर्मचारियों की छंटनी की है. इन्फोसिस ने दो हजार कर्मचारियों को अलविदा कहा तो विप्रो ने पांच सौ कर्मचारी हटाए हैं. इसके अलावा आईबीएम में भी हजारों लोगों की छंटनी की खबरें आई हैं. यानी आईटी कंपनियों में छंटनी की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है. कुल मिलाकर इस वक्त आईटी सेक्टर की तस्वीर बेहद भयावाह दिख रही है

द हेड हंटर्स कंपनी के सीएमडी के लक्ष्मीकांत के मुताबिक आईटी सेक्टर में दो लाख लोगों की नौकरियां जाने की आशंका है.


हालांकि कुछ रिपोर्ट ये भी कहती हैं कि इस छंटनी से बहुत घबराने की जरूरत नहीं. जापान की ब्रोकरेज फर्म नोमुरा के मुताबिक इन्फोसिस, कॉग्निजान्ट, टेक महिंद्रा और विप्रो में 2-3 फीसद की छंटनी कोई घबराने वाली बात नहीं. पीटीआई के मुताबिक, नोमुरा की रिपोर्ट कहती है कि ये छंटनी वर्कफोर्स के डिजिटाइजेशन के लिए जरूरी है और अभी कुछ दिनों तक चलती रहेगी.

आईटी सेक्टर में नौकरी जाने का ये खतरा नया नहीं. पहले ही आईटी इंडस्ट्री में काम करने का तरीका बदलने की वजह से ऐसा होने का डर जताया जा रहा था. फिर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से भी आईटी उद्योग पर दबाव बढ़ा है.

बड़ा सवाल ये है कि क्या निकाले गए लोग नौकरी के लायक ही नहीं हैं, या फिर उन्हें आगे चलकर नौकरी नहीं मिल पाएगी?

काबिलियत की कद्र बाकी

जानकार कहते हैं कि काबिल लोगों के लिए नौकरी की अभी भी कमी नहीं. आईटी सेक्टर के हालात उतने भी बुरे नहीं, जितने बताए जा रहे हैं.

एक जानकार मौजूदा हालात की तुलना 2008 की आर्थिक मंदी से करते हैं. वो कहते हैं कि जैसे ही दुनिया मंदी के असर से उबरी, बेरोजगार लोग फिर से काम पाने में कामयाब हुए थे.

लेकिन, कुछ लोगों के लिए आज का दौर आईटी इंडस्ट्री के लिए कयामत जैसा बताया जा रहा है. वहीं कुछ लोग ये भी कहते हैं कि भारत की आईटी इंडस्ट्री ने इससे भी बुरा दौर देखा है और उससे उबरने में कामयाब हुई है. हां, वो ये जरूर मानते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर छंटनी नहीं देखी गई थी. सलाहकार कंपनी ग्रांट थॉर्नटन के हरीश एच वी कहते हैं कि आज नौकरी से निकाले जा रहे लोगों के लिए रोजगार के अवसर मौजूद हैं.

एक जानकार कहते हैं कि जब अस्सी के दशक के आखिर में एटीएम लगाए जा रहे थे तो लोगों ने डर जताया था कि बहुत से कैशियर और बाबू बेरोजगार हो जाएंगे. लेकिन हुआ ये कि बैंकों ने अपनी शाखाओं का विस्तार किया.

एसेंट एचआर के संस्थापक अध्यक्ष सुब्रमण्यम एस कहते हैं कि भारत के आईटी सेक्टर ने पहले भी बुरे दौर देखे हैं. इसके बावजूद वो अपनी तकनीकी बढ़त को बनाए रख सका था. कोई और देश इसे चुनौती नहीं दे पाया. सुब्रमण्यम के मुताबिक, मौजूदा बुरा वक्त ज्यादा दिनों तक नहीं खिंचेगा.

स्टार्ट अप इंडिया से मिलेगी राहत?

सरकार अपने स्टार्ट अप इंडिया अभियान को इस मसले के हल के तौर पर पेश कर रही है. मगर जानकार मानते हैं कि तकनीकी रूप से काबिल लोग ही स्टार्ट अप के मैदान में उतर सकते हैं. स्टार्ट अप कंपनियां बड़ी कंपनियों के लिए इस लड़ाई में सहयोगी भी साबित हो सकती हैं. बड़ी कंपनियों से हटाए गए लोग इस तरह की छोटी कंपनियों में काम कर सकते हैं.

सरकार अपने डिजिटल इंडिया अभियान को भी इस चुनौती का सामना करने में कारगर बता रही है. पिछले साल सरकार ने नोटबंदी का फैसला किया. इससे देश में डिजिटाइजेशन को काफी बढ़ावा मिला है.

जुलाई में जीएसटी लागू होने के बाद आईटी इंडस्ट्री की भारत की अर्थव्यवस्था में अहमियत और बढ़ जाएगी. पूरा का पूरा कारोबार आईटी इंडस्ट्री पर टिका होगा. इंडस्ट्री के जानकार लोहित भाटिया कहते हैं कि कि आगे चलकर आईटी सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनने वाला है.

आज कैब सर्विस ओला हो या फिर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी, सबको नई तकनीक की जरूरत है. सबको आईटी एक्सपर्ट चाहिए. जो डेटा एनालिसिस कर सकें. जिनके पास क्लाउड कंप्यूटिंग की जानकारी हो. इसलिए आईटी पेशेवरों की मांग बढ़ने ही वाली है. ये घटने वाली नहीं.

आईटी की मांग बढ़नेवाली है

जीएसटी के लागू होने से ये मांग बढ़ेगी. जीएसटी की वजह से रोज का हिसाब-किताब जरूरी हो जाएगा. इसके लिए आईटी एक्सपर्ट्स की जरूरत बढ़ेगी.

आईटी सेक्टर में ठेके पर कामगार रखने का चलन काफी बढ़ा है. दो से दस साल तक के कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारी रखे जा रहे हैं. ऐसे कर्मचारियों को नौकरी देने वाली मैग्ना इन्फोटेक के संजू बालुरकर बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारी रखने की मांग सालाना 25 से 30 फीसद की दर से बढ़ रही है.

वो बताते हैं कि तनख्वाह में न तो बढ़ोतरी हुई है, न ही इसमें कमी आई है. दो साल या इससे ज्यादा का तजुर्बा रखने वालों को 35-40 हजार महीने तक तनख्वाह दी जा रही है. वहीं 9-10 साल का तजुर्बा रखने वालों को 1.8 लाख रुपए महीने तक की सैलरी दी जा रही है.

किसी खास तरह की तकनीक के उस्तादों को बेहतर सैलरी मिलती है. ऐसे लोगों की आगे चलकर भी डिमांड रहेगी. बाकी लोगों को अपनी काबिलियत में इजाफा करना होगा. नए स्किल सीखने होंगे, तभी उन्हें रोजगार मिलेगा. भर्ती कंपनी माइकल पेज के अंकित अगरवाला कहते हैं कि मौजूदा छंटनी स्थानीय स्तर पर हो रही है. जबकि 2008 में पूरी दुनिया में छंटनी का दौर चला था. आज की छंटनी के दौर में भी मध्यम और छोटी कंपनियों में रोजगार के मौके हैं. साथ ही स्टार्ट अप कंपनियों में भी अच्छी सैलरी दी जा रही है. कई बड़े कॉरपोरेट घराने भी आईटी सेक्टर के लोगों को अच्छे ऑफर दे रहे हैं.

टिके रहने के लिए खुद को अपडेट करना जरूरी

जानकार सलाह देते हैं कि आईटी सेक्टर में काम कर रहे पेशेवरों को नई हकीकत का सामना करना होगा. उन्हें नई खूबियां सीखनी होंगी. खुद को नई चुनौतियों के लिए ढालना होगा. उन्हें ये भी समझना होगा कि मोटी तनख्वाह का एक दौर फिलहाल बीत चुका है.

वो नई तकनीक सीखें. अपनी जानकारी बढ़ाएं. नई जरूरत के हिसाब से खुद को तैयार करें. अपनी सैलरी में कटौती के लिए तैयार रहें. छोटी कंपनियों में काम करने से इनकार न करें. साथ ही कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने के लिए भी तैयार रहें. दूसरे शहरों में जाने में आना-कानी न करें, तो उनके लिए रोजगार के नए मौके मौजूद रहेंगे.

हेड हंटर्स कंपनी के लक्ष्मीकांत कहते हैं कि अगर आप सीखने और बदलने को तैयार हैं, तो आपके लिए नौकरी की कमी नहीं. वरना तो आप बेरोजगार रहेंगे.