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कश्मीर में हमला: आतंकियों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल की इजाजत क्यों?

हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद ने हमलावर आदिल अहमद का वीडियो जारी करके सोशल मीडिया के माध्यम से मजहबी ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी.

Virag Gupta

सोशल मीडिया के जवाबी युद्ध में भारतीय उपमहाद्वीप में राष्ट्रवाद का जोश छलकने लगा है. जम्मू-कश्मीर में तीस साल के आतंकवाद के दौर में सुरक्षा बलों पर सबसे बड़े हमले के बाद इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी कई सवाल उठाए जा रहे हैं. खुफिया सूत्रों के अनुसार आतंकियों ने तकनीकी और इंटरनेट का इस्तेमाल करके सुरक्षा बलों के काफिले की रेकी की थी.

हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद ने हमलावर आदिल अहमद का वीडियो जारी करके सोशल मीडिया के माध्यम से मजहबी ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी. वैलेनटाइन-डे के रूमानी पर्व के दिन आदिल अहमद के फिदायीन वीडियो के प्रसारण से तकनीक के विनाशकारी चेहरे का भी घिनौना एहसास होता है. सवाल यह है कि क्या इंटरनेट और सोशल मीडिया के पहले आतंकवाद की घटनाएं नहीं होती थीं? इस घटना के बाद यक्ष प्रश्न यह है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से बढ़ रही कट्टरता और ध्रुवीकरण पर लगाम कैसे लगाई जाए?


ट्विटर पर दो दिन पहले थी हमले की सूचना

जम्मू-कश्मीर में इस समय राष्ट्रपति शासन लागू है. आतंकी हमले के दो दिन पहले राज्य की पुलिस ने सुरक्षा बलों के साथ एक वीडियो साझा किया था. सोमालिया के आतंकी हमले का 33 सेकंड का वीडियो आतंकियों द्वारा ट्विटर हैण्डिल "313_get" के माध्यम से प्रसारित किया गया था. वीडियो के अन्त में कहा गया था कि इंशा अल्ला ऐसा ही हमला कश्मीर में होगा.

सुरक्षा बलों के पास नियमित तौर पर ऐसे एलर्ट आते हैं. इस वीडियो की जानकारी के बावजूद जरूरी सावधानी क्यों नहीं बरती गई, इसका सच जांच के बाद ही सामने आएगा. सवाल यह है कि आतंकियों को ट्विटर और सोशल मीडिया के इस्तेमाल की इजाजत क्यों मिलती है?

प्रियंका और मायावती की तर्ज पर सबके एकाउंट का वेरिफिकेशन हो

दुनिया में ट्विटर के 27 करोड़ और भारत में लगभग 3 करोड़ यूजर्स हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ट्विटर में वेरिफाइड एकाउंट्स या नीली टिक वाले सिर्फ तीन लाख लोग शामिल हैं. बीएसपी नेता मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के ट्विटर अकाउंट का तुरंत वेरिफिकेशन हो गया और उन्हें नीली टिक का स्टेटस सिंबल भी मिल गया.

ट्विटर के भारतीय अधिकारियों द्वारा कहा जा रहा है कि फिलहाल सिर्फ राजनेताओं के अकाउंट ही वेरिफाई किये जा रहे हैं. सवाल यह है कि नेताओं के अलावा अन्य इच्छुक लोगों के अकाउंट का वेरिफिकेशन क्यों नहीं होता? ट्विटर के स्पष्टीकरण को अगर सही माना जाए तो सभी नेताओं के एकाउंट का वेरिफिकेशन कर दिया जाए तो भारत में फेक न्यूज का कारोबार मंदा हो जाए.

संसदीय समिति द्वारा ट्विटर को समन

मॉब-लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के बाद केंद्र सरकार ने अनेक एडवायजरी जारी की थीं, जिन पर शायद ही अमल हुआ हो. संसदीय समिति को भी अपने अधिकारों का बोध हुआ और 2019 के आम चुनावों के पहले ट्विटर के सीईओ को पेश होने का आदेश दिया गया है. ट्विटर ने अपने प्लेटफॉर्म को निष्पक्ष और सुरक्षित बताते हुए अनेक बोगस अकाउंट खत्म करने की घोषणा की.

सवाल यह है कि मानवीय नरसंहार और आतंकवाद से जुड़े लोगों को सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म में एंट्री कैसे मिलती है? तकनीकी विकास के नए दौर में आतंकी अकाउंट्स और उनके हैंडलर्स का विवरण सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा सुरक्षा एजेंसियों को क्यों नहीं दिया जाता?

सोशल मीडिया में केवाईसी

भारत में बैंक और बीमा कंपनियों में नो योर कस्टमर्स (केवाईसी) के लिए कानूनी प्रावधान हैं. पुलिस द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार मकान मालिकों को अपने यहां रहने वालों किराएदारों का सत्यापन करना जरूरी होता है. संसदीय समिति ने भी ट्विटर मामले में कहा है कि गलत इस्तेमाल के लिए सोशल मीडिया कंपनियों की कानूनी जवाबदेही तय होनी चाहिए.

फेसबुक, ट्विटर और गूगल समेत सभी कंपनियों की लिखित नीतियों के अनुसार उनके प्लेटफॉर्म का हिंसा और आतंकवाद के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकता. सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा आमदनी बढ़ाने के लिए फर्जी और गुमनाम यूजर्स पर लगाम नहीं लगाने से आतंकवादी संगठनों को इन प्लेटफॉर्मों के इस्तेमाल का मौका मिल जाता है.

फर्जी यूजर्स से कंपनियों की आमदनी लेकिन मानवता का सिरदर्द

इंटरनेट और सोशल मीडिया स्वतंत्र विचारों का वैश्विक माध्यम है. ये कंपनियां लोगों के बर्ताव, जागने, खाने और सोने का हिसाब-किताब रखती हैं, तो फिर आतंकी हरकतों का उन्हें अनुमान क्यों नहीं होता? दरअसल यूजर्स की संख्या में बढ़ोतरी से इन कंपनियों की आमदनी में वृद्धि होती है. अमेरिका में फाइल सालाना रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया कंपनियों के आठ से दस फीसदी यूजर्स गुमनाम, डुप्लीकेट और बोगस हैं.

जबकि इंडस्ट्री के आंकलन के अनुसार सोशल मीडिया कंपनियों के 30 फीसदी यूजर्स बोगस हैं. सोशल मीडिया कंपनियां दिखावे के लिए बोगस यूजर्स के खिलाफ जब तक कार्रवाई करती हैं, तब तक रक्तबीज की तरह नए एकाउंट खड़े हो जाते हैं. बोगस यूजर्स की कालाबाजारी कर रही ये कंपनियां, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ढाल के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे इंटरनेट की व्यवस्था अराजक और बेलगाम हो गई है.