भारत के पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (पीएसएलवी) के जरिए अंतरिक्ष में उपग्रह भेजना काफी सस्ता पड़ता है. भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अंतरिक्ष विभाग यानी डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के तहत काम करती है.
भारत का लगभग पूरा अंतरिक्ष कार्यक्रम इसी विभाग की देखरेख में चलता है. इसमें टेक्नोलॉजी का विकास, उद्योगों को टेक्नोलॉजी देना और भारत के इस्तेमाल के लिए उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजना भी शामिल है. ‘अंतरिक्ष’ या कहिए 'एंक्टरिक्स' इसरो की व्यावसायिक शाखा है और यह पूरी तरह से एक सरकारी कंपनी है.
104 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में भेजना. जब इस अभियान के बारे में पहली बार सोचा गया तो यह इतना महत्वाकांक्षी प्रयास नहीं था. हालांकि विश्व रिकॉर्ड तो इससे तब भी बनते. शुरू में 68 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में भेजने की योजना थी.
यह बात 2016 के आखिर की ही है. लेकिन इसमें धीरे धीरे और उपग्रह जुड़ते गए. इनकी संख्या बढ़कर पहले 83 हुई, फिर 103 और अब 104 है. प्रक्षेपण यानी लॉन्च की तारीख जैसे-जैसे आगे बढ़ती रही, इस अभियान में नए उपग्रह जुड़ते गए.
आधी लागत की भरपाई
किसी मौजूदा और निर्धारित प्रक्षेपण में छोटे उपग्रहों के लिए जगह ढूंढने को 'पिगीबैकिंग' कहते हैं. इन्नोवेटिव सॉल्यूशंस इन स्पेस जैसी कंपनियां किसी लॉन्च में माइक्रोसैटेलाइट्स, नैनोसैटेलाइट्स और पीकोसैटेलाइट्स के लिए मौका तलाशने के मामले में माहिर मानी जाती हैं.
'लॉन्च सर्विस' सेक्शन भारत के 'कमाऊ और भरोसेमंद' रॉकेट पीएसएलवी की खूबियों का खूब प्रचार प्रसार करता है. अमेरिकी कंपनी प्लानेट लैब्स को इन्नोवेटिव सॉल्यूशंस इन स्पेस की मदद से अपने 88 डवसैटेलाइट्स को पीएसएलवी के जरिए अंतरिक्ष में भेजने का मौका मिला है.
वैसे कार्टोसैट-2डी को लेकर पीएसएलवी को तो अभियान पर जाना ही था. लेकिन इस अभियान में अन्य उपग्रहों के प्रक्षेपण से इसरो इस अभियान पर आने वाली लागत को कम कर पाएगा. उम्मीद है कि इस अभियान पर आने वाली आधी से ज्यादा लागत की भरपाई इसमें भेजे जा रहे 101 विदेशी उपग्रहों से हो जाएगी.
भारी सब्सिडी पर अमेरिका चिंतित
अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय रॉकेट से उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने का अर्थशास्त्र एक खतरा है. उनका आरोप है कि भारत इस तरह के प्रक्षेपणों को भारी सब्सिडी देकर बाजार खराब कर रहा है.
अमेरिका में तो बाकायदा एक नीति है जो अमेरिकी निजी कंपनियों को पीएसएलवी इस्तेमाल करने से रोकती है. जब भी कोई कंपनी पीएसएलवी का इस्तेमाल करती है तो उसे इसके लिए खास इजाजत देनी पड़ती है.
पिछले साल अप्रैल में व्यावसायिक प्रक्षेपण उद्योग में छोटे उपग्रहों के लिए चुनौतियां और अवसर के बारे में एक सुनवाई के दौरान कमर्शियल स्पेस फ्लाइट फेडरेशन (सीएसएफ) के चेयरमैन एरिक स्टालमर ने एक गवाही दी थी.
गवाही में कहा गया, 'सीएसएफ सरकारी सब्सिडी वाले विदेशी प्रक्षेपण को बढ़ावा देने के प्रयासों का विरोध करता है. यहां बात इसरो की हो रही है जिसे अमेरिकी कंपनियों से मुकाबला करना है. सब्सिडी वाले प्रक्षेपणों को बढ़ावा देने से बहुत सी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को नुकसान होगा और इससे अमेरिकी अंतरिक्ष प्रक्षेपण उद्योग का आधार मजबूत करने के लिए सरकार और उद्योग की तरफ से किए गए काम और निवेश को धक्का लगेगा.
लेकिन हमें इस बारे में भी सचेत रहना होगा कि अमेरिकी सैटेलाइट उत्पादकों और ऑपरेटरों को बिल्कुल विवश भी ना किया जाए. हो सकता है कि कुछ लोगों को तत्काल अपने सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने हो और अमेरिकी लॉन्च व्हेकिल उनकी जरूरत को पूरा करने की स्थिति में न हो क्योंकि उन्हें अभी तैयार ही किया जा रहा हो.'
सरकारी और निजी क्षेत्रों में कड़ा मुकाबला
1990 के दशक में ही अमेरिका में इस बात का मूल्यांकन किया गया कि क्या सरकारी सब्सिडी से प्रक्षेपण कर निजी क्षेत्र के प्रक्षेपणों का मुकाबला किया जाए. अमेरिका ने पाया कि सब्सिडी से अंतरिक्ष में उपग्रहों को भेजना मुनासिब नहीं है.
1994 से ही वहां नीति है जिसके तहत निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इसके लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार की गई जिसके अनुसार अमेरिकी एजेंसियों को अपनी जरूरतों के लिए निजी अमेरिकी कंपनियों की प्रक्षेपण सेवाएं लेनी होंगी.
अंतरिक्ष के क्षेत्र में बढ़ते भारत-अमेरिका सहयोग के बीच, निजी अमेरिकी अंतरिक्ष उद्योग भारत के प्रक्षेपण अभियान से सस्ते में उपग्रहों को भेजने पर सवाल उठाता है. स्पेस फाउंडेशन के सीईओ इलियोट होलोकाउआही पुलहैम कहते हैं कि भारतीय रॉकेट का इस्तेमाल करना इतना ज्यादा चिंता वाली बात नहीं है, लेकिन इस बारे में सोचने की जरूरत है कि क्या भारतीय प्रक्षेपण को इस कदर सरकार से सब्सिडी मिलती है कि लागत के मामले में अन्य दावेदार बाजार में टिक ही न पाएं.
स्टालमर ने कहा, 'फिलहाल, भारत के लॉन्च व्हेकिल पीएसएलवी की बहुत मांग है और उसके पास निर्धारित समय में कुछ उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता भी है. हम नहीं चाहते कि अमेरिकी उपग्रह विदेशी रॉकेटों से छोड़े जाएं, बात चाहे भारत की हो, रूस की हो या फिर किसी और की. लेकिन फिलहाल, उपग्रह के लिहाज से देखें तो उनके उत्पादक और निर्माता चाहते हैं कि उनके बनाए उपग्रह जल्द से जल्द अंतरिक्ष में पहुंचें.'
किफायती पीएसएलवी लॉन्च
पीएसएलवी के लॉन्च पर आने वाली लागत इस तरह के अन्य अभियानों के मुकाबले बहुत कम है. अमेरिकी कंपनी स्पेसएक्स का रॉकेट फाल्कन 9 लॉन्च वेहिकल के कुछ हिस्सों को दोबारा इस्तेमाल कर लागत को कम करता है.
वहीं यूक्रेन के रॉकेट प्रोटोन, जाक्सा के एचआईआई-ए, सीएसएनए के लॉन्ग मार्च और यूनाइटेड लॉन्च अलाइंस के अल्टास वी रॉकट के अभियानों पर आने वाला खर्च पीएसएलवी के मुकाबले कई गुना ज्यादा है. पीएसएलवी बाजार में टिका रहे, इसके लिए भारत सरकार सब्सिडी देती है और यह कोई नई बात नहीं है.
रूस, चीन और यूरोप भी रॉकेट प्रक्षेपणों के लिए सब्सिडी देते हैं. स्पेसएक्स से मिली कड़ी टक्कर के बाद फ्रांसीसी कंपनी एरिएनस्पेस ने 2014 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से मदद मांगी थी. एरिएनस्पेस अपने रॉकेट एरिएन-5 के जरिए अंतरिक्ष में उपग्रह भेजती है.
इसरो को मिलने वाली सब्सिडी के सवाल पर 'एंटरिक्स' के सीएमडी राकेश शशिभूषण कहते हैं, 'हम अपनी दक्षता और क्षमता से इसका जबाव देंगे. सभी प्रक्षेपणों को सब्सिडी मिलती है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ हम ही सब्सिडी ले रहे हैं या कोई और सब्सिडी ले रहा है. शोध और अनुसंधान पर होने वाले निवेश के रूप में ये सरकारी सब्सिडियां सभी प्रक्षेपण कार्यक्रमों में दी जाती हैं. अब कुछ निजी उद्योग सवाल उठा रहे हैं. उन्हें सवाल उठाने दीजिए.'
दमदार बनेगा इसरो
वह कहते हैं, 'हमारा अपना कार्यक्रम है, हम दुनिया के साथ मुकाबला कर रहे हैं. हम और प्रतिस्पर्धी होने की कोशिश करेंगे और शायद इससे उन्हें जवाब मिल जाएगा.'
राकेश कहते हैं कि छोटे उपग्रह एक बड़ा बाजार बनने जा रहे हैं और भारत इसका भरपूर फायदा उठा सकता है.
इसरो टेक्नोलॉजी मुहैया कराने की भूमिका अदा कर सकता है. हम ज्यादा से ज्यादा उद्योगों तक पहुंचने की कोशिश करेंगे ताकि कल देश इसका फायदा उठा सके.
इसरो के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को मिलने वाला वेतन यूरोपीय और अमेरिकी एजेंसियों में इन्हीं पदों पर काम कर रहे लोगों को मिलने वाले वेतन का आठवां हिस्सा है. इसरो लागत को कम करने के लिए मौजूदा और निर्धारित प्रक्षेपण में छोटे छोटे उपग्रहों को जोड़ रहा है.
एंटरिक्स के सीएमडी का कहना है कि प्रक्षेपणों को सरकार से सब्सिडी मिलती है और शोध और अनुसंधान में होने वाले इस निवेश से भारत में निजी उद्योग को भी फायदा होगा. इन सभी कदमों से दुनिया के बाजार में भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम ज्यादा से ज्यादा प्रतिस्पर्धी होता जाएगा. और सभी संकेतों से लगता है कि इसरो दमदार बनता चला जाएगा.