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इसरो जल्द ही जून तक लॉन्च करेगा सबसे भारी रॉकेट

640 टन वजनी यह रॉकेट इसरो द्वारा निर्मित अब तक का सबसे वजनी रॉकेट है

FP Staff

साउथ एशिया सैटेलाइट के सफल प्रक्षेपण से उत्साहित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब अपने सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 को छोड़ने की तैयारी में जुट गया है.

640 टन वजनी यह रॉकेट इसरो द्वारा निर्मित अब तक का सबसे वजनी रॉकेट है. इस रॉकेट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके मुख्य और सबसे बड़े क्रायोजेनिक इंजन को इसरो के वैज्ञानिकों ने भारत में ही विकसित किया है. यह इंजन जो पहली बार किसी रॉकेट को उड़ने की शक्ति प्रदान करेगा.


विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निर्देशक के. सिवन ने कहा कि हमारी 12 वर्षों की मेहनत अगले महीने रंग लाएगी. जीएसएलवी मार्क-3 द्वारा संचार उपग्रह जीसैट-19 को श्रीहरिकोटा से जून में छोड़ने की तैयारी चल रही है.

सिवन ने बताया कि सभी अधिकारी इस प्रक्षेपण अभियान की सफलता को लेकर आश्वस्त हैं. इसके लिए स्ट्रैप-ऑन मोटर और प्रमुख इंजन को जोड़ा गया है.

रॉकेट के प्रक्षेपण में हुए विलंब को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में सिवन ने कहा कि यह एक नया रॉकेट है, इसलिए प्रक्षेपण से पहले पर्याप्त जांच करना जरूरी है. इसीलिए रॉकेट के प्रक्षेपण में थोड़ा विलंब हो रहा है.

पहले यह रॉकेट मई के अंत में छोड़ा जाना था. सिवन के अनुसार, जून के प्रथम सप्ताह में जीएसएलवी मार्क-3 अपनी पहली उड़ान भरेगा.

रॉकेट के साथ छोड़ा जाने वाला संचार उपग्रह जीसैट-19 लगभग 3.2 टन वजनी है. यह किसी घरेलू स्तर पर निर्मित रॉकेट से छोड़ा जाने वाला अब तक का सबसे वजनी उपग्रह होगा.

उपग्रह की उम्र 15 वर्ष होगी

प्रक्षेपण के लिए जीसैट-19 श्रीहरिकोटा पहुंच चुका है. सिवन ने कहा कि इस रॉकेट की क्षमता चार टन तक वजनी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने की है. इसका डिजाइन इसी लिहाज से बनाया गया है. जीएसएलवी मार्क-3 के जरिए भविष्य में इससे भी वजनी उपग्रह छोड़े जाएंगे.

इसरो के अनुसार, जीसैट-19 मल्टी वेव उपग्रह है, जो का और कू बैंड वाले ट्रांसपोंडर्स अपने साथ लेकर जाएगा. इस उपग्रह की उम्र 15 वर्ष होगी. इसरो इससे पहले 2014 में बिना क्रायोजेनिक इंजन वाला इसी तरह का रॉकेट छोड़ चुका है, जो 3.7 टन भार ले जाने में सक्षम था.

सिवन ने कहा कि इस प्रक्षेपण का मुख्य उद्देश्य उड़ान के दौरान रॉकेट के स्ट्रकटुरल स्ट्रैटिजी और उसकी स्पीड का परीक्षण करना है. उड़ान के दौरान रॉकेट वायुमंडल में विभिन्न तरह के दबावों से गुजरता है.

सिवन ने बताया कि 2014 में इसरो का अभियान सफल रहा था. रॉकेट ने अपेक्षा के अनुरूप काम किया. लेकिन उस प्रक्षेपण से पता चला कि रॉकेट की बाहरी संरचना और गतिकी में सुधार की जरूरत है. नए रॉकेट के हीट शील्ड के आकार को बदलने के साथ स्ट्रैप ऑन मोटर में भी मामूल बदलाव किया गया है.

ऩ्यूज़ 18 साभार