पिछले 10 दिनों से सीकर में किसान अपने फसल की सही कीमत के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. यह धरना-प्रदर्शन सीकर के किसान मंडी में चल रहा है.
सीकर में चल रहा यह किसान आंदोलन इस वजह से काफी जोर पकड़ रहा है क्योंकि इस जिले में अधिकतर लोग किसी न किसी तरीके से खेती से जुड़े हैं. इस वजह से इस बार यहां होने वाला विरोध-प्रदर्शन सामान्य समय में होने वाले प्रदर्शनों से बिल्कुल अलग और काफी बड़ा है.
इस आंदोलन में सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि स्टूडेंट्स, आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता, सिटी बस यूनियन, ऑटोरिक्शा यूनियन, स्माल ट्रेडर्स एसोसिएशन, पंप सेट वर्कर आदि बढ़-चढ़ कर भागीदारी कर रहे हैं.
यहां तक कि शनिवार को स्थानीय डीजे वाले लोगों ने भी सीकर में होने वाले इस आंदोलन में शिरकत की. करीब 40 गाड़ियों पर साउंड सिस्टम लगाकर इन्होंने किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किया. किसी भी दिन होने वाले धरना-प्रदर्शन में करीब 10 से 20 हजार लोग हिस्सा लेते हैं. दो बार यह संख्या 1.5 लाख के करीब भी पहुंची है.
सीकर शहर की किसान मंडी इस आंदोलन का ग्राउंड जीरो है. हजारों किसान अपनी मांगों को लेकर जिले भर से यहां जमा हो रहे हैं. ये सभी सीपीएम के वरिष्ठ नेता और चार बार विधायक रह चुके अमरा राम के नेतृत्व में यह आंदोलन कर रहे हैं. पूरी मंडी हसिया-हथौड़े वाले लाल झंडों से पट गई है.
स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने की मांग
सीकर के किसान 1 सितंबर को सीपीएम के किसान संगठन आल इंडिया किसान सभा के आह्वान पर यहां इकट्ठा हुए थे. किसानों ने सोमवार 11 सितंबर को सभी सरकारी ऑफिसों के घेराव करने की घोषणा की है. इस वजह से यह संकेत मिल रहे हैं कि इस दिन हिंसा हो सकती है और किसानों के ऊपर पुलिस कार्रवाई कर सकती है.
इस आंदोलन की सबसे खास बात यह है कि बीजेपी के समर्थक माने जाने वाले छोटे व्यापारियों का भी समर्थन किसानों को मिल रहा है. सीकर में अधिकतर किसान सीपीएम के समर्थक हैं.
प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि उन्हें 3 रुपए किलो प्याज खरीदकर बाजार में ग्राहकों को 30 रुपए किलो में बेचा जा रहा है. उन्हें इस वजह से फसल की सही कीमत नहीं मिल रही है.
फसल की सही कीमत नहीं मिलने की वजह से किसान बैंकों और स्थानीय साहूकारों से लिए गए कर्ज को लौटाने में असमर्थ हैं.
किसानों की यह भी मांग है कि मोदी सरकार स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करे, जिसमें यह कहा गया था कि किसानों को फसल उत्पादन की लागत पर 50 फीसदी का लाभ मिलना चाहिए. पीएम मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में इस समिति की सिफारिशों को लागू करने का वादा भी किया था.