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शहीदों के साथ बर्बरता: 'करारे जवाब' से पहले मोदी को ये करना होगा

ऐसे मामलों में देरी से संकेत जाता है कि भारत एक कमजोर मुल्क है

Sreemoy Talukdar

फिर हमारे सैनिक शहीद हुए हैं. एक बार फिर देश गुस्से में है. भारत-पाकिस्तान के रिश्ते में ऐसा पहली बार नहीं हुआ. अब तो हाल ये है कि हमें पता होता है कि हर घटना के बाद क्या होगा. कैसी प्रतिक्रियाएं आएंगी. ये पहली बार नहीं हुआ है कि पाकिस्तान ने हमारे सैनिकों के साथ बर्बरता की है. और ये भी तय है कि ये आखिरी घटना नहीं.

जो शैतान पाकिस्तान की फौज की वर्दी पहनते हैं, वो किसी नियम-कायदे की परवाह नहीं करते. भारतीय सेना ने अपने दो सैनिकों की शहादत और उनके शव के साथ बर्बरता को बेहद गंभीरता से लिया है. तय है कि सेना जल्द ही इसका जवाब भी देगी. और ये जवाब भी जोरदार होगा.


मगर मौजूदा हालात में सिर्फ सैन्य कार्रवाई से काम नहीं चलेगा. पाकिस्तान को एक सियासी संदेश देना पड़ेगा. ऐसा संदेश जो हमारे देश की जनता भी समझे.

इसकी दो वजहें हैं. विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने पाकिस्तान की ऐसी हर हरकत पर बहुत शोर मचाया था. सुषमा स्वराज ने शहीद लांसनायक हेमराज के शव से बर्बरता के बदले में दुश्मन के दस सिर काटकर लाने की मांग की थी. अब बीजेपी सत्ता में है, तो जाहिर है उससे भी ऐसे ही सवाल हो रहे हैं.

दूसरी वजह है प्रधानमंत्री मोदी की ताकतवर नेता की छवि. मोदी और उनकी पार्टी ने उनकी छवि का बड़ा हव्वा बनाया है. ऐसे में सिर्फ एक सर्जिकल स्ट्राइक करके मोदी ताकतवर नेता नहीं माने जा सकते. मोदी के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत को ऐसी कार्रवाई करनी होगी, जिसमें पाकिस्तानी फौजियों के सिर्फ सिर कलम नहीं होंगे, उसे इस बर्बरता की ऐसी कीमत चुकाने के लिए मजबूर करना होगा, जो देश को दिखे.

29 सितंबर को सेना ने जो सर्जिकल स्ट्राइक की थी, उसकी कुछ जानकारी मीडिया में जारी की गई थी. एटमी ताकत से लैस दो देशों के बीच जब ऐसे हालात होते हैं, तो चुनौती ये होती है कि एटमी जंग के बगैर ही अपना मकसद पूरा किया जाए.

चलिए हम ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि मोदी सरकार के पास पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन लेने के लिए क्या-क्या विकल्प हैं? उनके सामने चुनौतियां क्या हैं, इसका भी पता लगाने की कोशिश करते हैं.

कृष्णा घाटी में हुआ क्या था?

पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम ने भारतीय सीमा में घुसकर सेना के एक जेसीओ और बीएसएफ के एक सिपाही पर घात लगाकर हमला किया और उनकी हत्या कर दी. ये लोग सीमा पर गश्त कर रहे थे. पाकिस्तानी फौज की गोलीबारी में हमारा एक जवान जख्मी भी हो गया.

बीएसएफ के एडीजी के एन चौबे ने मंगलवार को मीडिया को बताया कि पाकिस्तान की कवर फायरिंग की आड़ में उनके जवान भारतीय सीमा में दाखिल हो गए और भारतीय जवानों पर हमला किया. दो जवानों के मारे जाने के बाद उनके शव को क्षत-विक्षत किया. इस हमले में घायल जवान राजिंदर सिंह की हालत फिलहाल स्थिर बताई जा रही है.

पाकिस्तान की कार्रवाई में 22 सिख रेजीमेंट के नायब सूबेदार परमजीत सिंह और बीएसएफ की 200 बटालियन के हेड कॉन्स्टेबल प्रेम सागर शहीद हो गए.

सोमवार को जारी बयान में भारतीय सेना की नॉर्दर्न कमांड ने पाकिस्तानी फौज की कार्रवाई को शर्मनाक और सेना के उसूलों के खिलाफ बताया. सेना ने बयान में कहा कि इस हरकत का माकूल जवाब दिया जाएगा.

उत्तरी कमांड ने एक और ट्वीट के जरिए जानकारी दी कि भारत के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस ने पाकिस्तान के डीजीएमओ से इस बारे में फोन पर बात की. भारत के डीजीएमओ ने पाकिस्तान के डीजीएमओ को बता दिया कि इस अमानवीय बर्ताव का माकूल जवाब दिया जाएगा.

शहीदों के शव से किसने की बर्बरता?

दोनों देशों के डीजीएमओ की बातचीत के बाद पाकिस्तान की फौज की तरफ से बयान आया. पाकिस्तान की फौज ने कहा कि उसने युद्धविराम नहीं तोड़ा है. पाकिस्तान की फौज के बयान में कहा गया कि कृष्णा घाटी सेक्टर में पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम ने कोई कार्रवाई नहीं की. भारत के जवानों के शव के साथ बर्बरता के आरोप भी झूठे हैं. पाकिस्तान आर्मी के बयान में कहा गया कि हमारी फौज बेहद पेशेवर है और वो शहीदों के शव का कभी अपमान नहीं करती.

पाकिस्तान फौज ने इस घटना के बारे में और जानकारी मांगी. साथ ही भारत को चेताया कि वो कोई उकसावे वाली कार्रवाई करने से बाज आए. पाकिस्तानी फौज के पेशेवर होने के दावे को तो हंसी में उड़ाया जा सकता है. मगर उसके बयान से साफ है कि उसे भारत की जवाबी कार्रवाई की आशंका है. शहीदों के शवों के सिर काटना जेनेवा कन्वेंशन के खिलाफ भी है और बेहद उकसावे वाली कार्रवाई है.

शहीदों के शव से बर्बरता से इंकार करके पाकिस्तान ये संकेत देना चाहता है कि ये काम उसके पाले-पोसे आतंकवादियों का है.

हो सकता है कि ऐसा ही हुआ हो. पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम में उसके स्पेशल फोर्स के जवान और कुछ आतंकवादी शामिल होते हैं. भले ही गुट में आतंकी हों, मगर किसी भी कार्रवाई की जिम्मेदारी तो पाकिस्तान की फौज की बनती है.

पाकिस्तान की फौज ने इस वक्त ऐसा क्यों किया?

पाकिस्तान में इस वक्त फौज और सरकार के बीच तनातनी चल रही है. शनिवार को नवाज शरीफ ने पाकिस्तान की फौज के दबाव में अपने करीबी सलाहकार तारिक फातमी और राव तहसीन अली खान को हटा दिया. इन पर पाकिस्तान की सरकार और सेना के बीच हुई एक बैठक की बातें लीक करने का आरोप था. इस बैठक के बारे में कहा जाता है कि नेताओं ने पाकिस्तानी जनरलों से सख्त सवाल किए थे. नेताओं ने पाकिस्तान के जनरलों पर आरोप लगाया था कि वो आतंकियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. ये खबर पाकिस्तान के अखबार डॉन ने छापी थी.

नवाज शरीफ की इस कार्रवाई को भी पाकिस्तान ने खुले तौर पर खारिज कर दिया था. पाकिस्तान की सेना के प्रवक्ता ने एक ट्वीट करके सरकार की कार्रवाई को अधूरी बताकर खारिज कर दिया था.

पाकिस्तान की फौज की नाराजगी की एक और वजह भी है. हाल ही में भारत के कारोबारी सज्जन जिंदल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिले थे. पाकिस्तान में सज्जन जिंदल के इस दौरे की खूब चर्चा हुई थी. माना जा रहा है कि पाकिस्तान में कैद भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को लेकर टकराव दूर करने के लिए ही सज्जन जिंदल पाकिस्तान गए थे.

इन हालात में दो भारतीय फौजियों की हत्या के बाद उनके सिर काटने की घटना हुई. साफ है कि पाकिस्तान की फौज, अपनी ही सरकार को नीचा दिखाना चाहती है. पाकिस्तान की सेना नहीं चाहती कि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई बातचीत हो.

आखिर पाकिस्तान की फौज ऐसा क्यों चाहती है?

असल में पाकिस्तान की फौज को लग रहा है कि कश्मीर में उसकी बरसों की रणनीति अब रंग ला रही है. वहां के हालात बिगड़ रहे हैं. इस बीच चीन के साथ आर्थिक-सामरिक दोस्ती मजबूत हो रही है. चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के पूरा होने से पाकिस्तान की फौज को ये लग रहा है कि भारतीय सेना को जो बढ़त हासिल थी, वो अब खत्म हो गई है.

भारत इसका कैसा जवाब देगा?

भारत ने आम तौर पर पाकिस्तान की ऐसी हरकतों का जवाब बेहद धैर्य से दिया है. कई जानकार मानते हैं कि ऐसा करना भारत की मजबूरी है. भारत के पास ज्यादा विकल्प हैं ही नहीं. दोनों देशों के पास एटमी हथियार होने की वजह से परंपरागत विकल्प बेहद सीमित हो गए हैं.

भारत को मालूम है कि अगर उसने जंग छेड़ी तो उसे दो मोर्चों पर एक साथ लड़ाई लड़नी होगी. उसे पाकिस्तान के साथ-साथ चीन से भी निपटना होगा.

तो, क्या हमें पाकिस्तान से बातचीत शुरू करनी चाहिए?

इसका सीधा सा जवाब है, नहीं.

भारत में ऐसे बहुत से लोग हैं जो चाहते हैं कि पाकिस्तान से बातचीत करके तनाव कम किया जाए. भारत आखिर बातचीत करे भी तो किससे? नवाज शरीफ सरकार सत्ता में तो है, मगर उसके पास कोई ताकत नहीं है.

वहीं पाकिस्तान की फौज बदला लेने वाले बर्बर लोगों का गिरोह है. पाकिस्तान के जनरल भारत से हजार साल तक जंग के ख्वाब देखते रहते हैं. और इसकी आड़ में देश को लूटते रहे हैं. पाकिस्तान की फौज सिर्फ ताकत की बोली समझती है.

पाकिस्तान से निपटने के लिए भारत को एक ठोस रणनीति की जरूरत है. उसे लंबे वक्त की तैयारी करनी होगी. भारत को सैन्य और राजनयिक विकल्पों पर एक साथ काम करना होगा. और अगर हम ये सोच रहे हैं कि इसकी कीमत नहीं चुकानी होगी, तो ये गलत है. पाकिस्तान जैसे पड़ोसी से निपटने की कीमत तो हमें चुकानी होगी. देश को इसके लिए तैयार रहना होगा.

भारत को पाकिस्तान के जनरलों को ये संदेश देना होगा कि अगर एटमी जंग छिड़ी, तो भारत तो फिर भी बच जाएगा. मगर, पाकिस्तान का नामो-निशां मिट जाएगा.

सर्जिकल स्ट्राइक से साफ है कि पाकिस्तान दावे भले हजार करे, मगर जंग वो भी नहीं चाहता है. भारत अंतरराष्ट्रीय समझौतों के दायरे में रहकर ही कार्रवाई करता आया है. ऐसे में पाकिस्तान से निपटना और भी मुश्किल हो जाता है. भारत को सैन्य विकल्पों के साथ-साथ पानी को भी हथियार बनाना होगा. आगे चलकर पानी ही भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की दशा-दिशा तय करेगा.

सिंधु जल समझौते का जब भी जिक्र आता है, पाकिस्तान की प्रतिक्रिया बता देती है कि वो इस मुद्दे पर कितना डरा हुआ है.

पाकिस्तान को घेरने का दूसरा मुद्दा बलोचिस्तान का है. मगर इस मोर्चे पर भी हमारी नीति बेहद ढीली रही है. बलोच राष्ट्रवादियों को हमारा समर्थन सिर्फ जबानी ही रहा है.

मोदी सरकार ने अब तक बलोच नेता ब्रह्मदाग बुगती के भारत में पनाह लेने की अर्जी पर फैसला नहीं किया है. सरकार जान-बूझकर इस मामले में देरी कर रही है. बलोचिस्तान के बारे में हमारी रणनीति बेहद ढुलमुल है.

तमाम हालात इशारा करते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर ये सरकार ढिलाई दिखा रही है. हमारे पास कोई ठोस रणनीति और दूरदर्शी योजना नहीं है.

देश को चाहिए रक्षा मंत्री

राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर मोदी सरकार की लापरवाही की इससे बड़ी मिसाल क्या हो सकती है कि देश के पास पूर्णकालिक रक्षा मंत्री तक नहीं है. ऐसा नहीं है कि अगर रक्षा मंत्री होते तो कृष्णा घाटी में जो हुआ, वो नहीं होता. सवाल ये भी नहीं कि अरुण जेटली दो मंत्रालय संभाल सकते हैं या नहीं.

ऐसे मामलों में देरी से संकेत जाता है कि भारत एक कमजोर मुल्क है. भले ही ये बात सच न हो, मगर सुरक्षा के मामलों में हमारी ढिलाई का मतलब यही निकलता है. अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत का पक्ष कमजोर होता है. मोदी जैसे अनुभवी नेता ये बात तो बखूबी समझते होंगे.