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आईटी सेक्टर में कर्मचारियों की लगातार छंटनी से इंफोसिस के संस्थापक निराश

तीन से चार साल के दौरान करीब आधे कर्मचारी महत्वहीन हो जायेंगे.

Bhasha

इंफोसिस के संस्थापक चेयरमैन एन आर नारायण मूर्ति ने आईटी क्षेत्र में लोगों को नौकरी से हटाने पर दुख जाहिर किया है. मूर्ति ने इस संबंध में पीटीआई भाषा के पूछे गए सवाल पर ई-मेल के जरिए जवाब भेजा है. मूर्ति ने अपने जवाब में कहा कि यह काफी दुख पहुंचाने वाला है. हालांकि उन्होंने इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा.

हाल ही में इंफोसिस ने घोषणा की है कि वह अपने अर्धवार्षिक कार्य के प्रदर्शन की समीक्षा करेगी. जिसके बाद वो अपने मध्य और वरिष्ठ स्तर के सैकड़ों कर्मचारियों को ‘पिंक स्लिप’ पकड़ा सकता है.


कंपनी सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लगातर चुनौतीपूर्ण परिवेश का सामना कर रही है.

इंफोसिस के अलावा उसके दूसरी समकक्ष कंपनियां विप्रो और काग्निजेंट भी अपने फायदे और नुकसान को देखते हुए कुछ ऐसा ही कदम उठा रही हैं.

अमेरिका की कंपनी काग्निजेंट ने अपने निदेशकों, सहायक उपाध्यक्षों और वरिष्ठ उपाध्यक्षों को स्वैच्छिक सेवानिवृति कार्यक्रम की पेशकश की है. इसके लिए वो अपने कर्मचारियों को 6 से 9 माह तक के वेतन की पेशकश कर रही है.

वहीं दूसरी तरफ विप्रो ने भी अपने सालाना कार्य प्रदर्शन का आकलन कर करीब 600 कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने के लिये कहा है. इस बारे में ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि यह संख्या 2,000 तक पहुंच सकती है.

सर्चइंजन कंपनी हेड हंटर इंडिया के अनुसार अगले तीन साल तक आईटी क्षेत्र में सालाना 1.75 लाख से दो लाख के बीच रोजगार क्षेत्रों में कटौती की जा सकती है.

ऑटोमेशन की वजह से आ रही है कमी

मैंकजीं एण्ड कंपनी की नॉस्कॉम इंडिया लीडरशिप फोरम में सौंपी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक आईटी सेवा कंपनियों में अगले तीन से चार साल के दौरान करीब आधे कर्मचारी महत्वहीन हो जायेंगे.

देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वालों में सूचना प्रौद्योगिकी यानी आईटी कंपनियां सबसे ऊपर हैं. कंपनियों ने चेतावनी दी है कि विभिन्न प्रक्रियाओं में बढ़ रहे ऑटोमेशन से आने वाले वर्षों में रोजगार में काफी कमी आ सकती है.

एक तरफ जहां ठेके पर काम कराने को लेकर भारत वैश्विक नक्शे पर उभरा है. तो वहीं दूसरी तरफ दुनिया के विभिन्न देशों में बढ़ती संरक्षणवादी प्रवृति से 140 अरब डॉलर के आईटी उद्योग के समक्ष चुनौती खड़ी हो रही है.

भारतीय कंपनियां अब विदेशों में काम के लिये कार्य वीजा पर अपनी निर्भरता कम कर रही हैं. वो इसके बदले विदेशों में स्थानीय लोगों को ही काम पर रख रहीं हैं ताकि उनके ग्राहक बने रहे.