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चीन से सटे सीमाई इलाकों पर 'मजबूत घेराबंदी' की जरूरत ताकि न बने दूसरा डोकलाम

डोकलाम के बाद भी चीन ने कोई सबक नहीं सीखा और कभी अरुणाचल प्रदेश कभी लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ कराकर सीमा विवाद को गरमाता जा रहा है

Kinshuk Praval

तकरीबन ढाई महीनों तक चला डोकलाम विवाद जब निपटा तो चीन को भी ये समझ में आ गया कि 1962 के भारत और 2017 के इंडिया में बहुत फर्क आ चुका है. चीन की आक्रमणकारी विस्तारवादी नीति को भारत ने आंखों में आंखें डालकर जवाब दिया. भारत जहां सामरिक मोर्चे पर डटा रहा तो कूटनीतिक मोर्चे पर अमेरिका,जापान,ऑस्ट्रेलिया, और इजरायल जैसे देशों का साथ भी हासिल किया.

लेकिन डोकलाम के बाद भी चीन ने कोई सबक नहीं सीखा. आज भी वो डोकलाम को अपना हिस्सा बता रहा है तो कभी अरुणाचल प्रदेश कभी लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ कराकर सीमाई विवाद को गरमाता जा रहा है. दरअसल भारतीय सीमा में एक निश्चित अवधि के बाद घुसपैठ करना उसकी रणनीति का अहम हिस्सा बन चुका है. डोकलाम में सेना वापसी के बाद वो भारत से जुड़े दूसरी सीमाई इलाकों में घुसपैठ की कोशिश करता रहता है. लद्दाख में पेंगोंग झील के इलाके में  चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद भारतीय सैनिकों के साथ पत्थरबाजी तक हुई थी.


ताजा मामला अरुणाचल प्रदेश के तूतिंग का है जहां चीनी सैनिकों की एक टुकड़ी रोड बनाने वाले उपकरणों और साजो-सामान के साथ सियांग जिले में 200 मीटर भीतर तक घुस गई थी जिसने तिब्बत से बहने वाली नदी के किनारे करीब 1250 मीटर सड़क भी बना ली थी. लेकिन जैसे ही भारतीय सेना को इसकी जानकारी मिली तो भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया. चीनी सैनिकों को सड़क बनाने का सामान छोड़ कर जाना पड़ा.

तूतिंग से चीनी सैनिकों को खदेड़ने के बाद सेना दिवस के मौके पर भारतीय सेना के बुलंद हौसलों को सलामी देते हुए  ईस्टर्न कमांड के ऑफिसर कमांडिंग ले. जनरल अभय कृष्णा ने कहा था कि 'हमारी सेना पूरी तरह से तैयार है. हमारे सैनिक तूतिंग में मौजूद थे. चीनी सैनिक उस इलाके से सामान छोड़कर भाग खड़े हुए. उम्मीद है कि चीन दोबारा ऐसी गलती नहीं करेगा'.

चीन का इतिहास ही अतिक्रमणों से भरा है

लेकिन चीन का इतिहास ही उसके अतिक्रमण की गवाही देता आया है. चीन से दोबारा घुसपैठ की उम्मीद करना ड्रैगन की फितरत के खिलाफ है. चीन कभी अपनी घुसपैठ को अन्जाने में की गई गलती बताता है तो कभी अपनी ही जमीन बताकर भारतीय सेना से उलझता है. इस रणनीति के जरिए वो सीमा पर यथास्थिति बदलने का काम करता आया है. चीन की फितरत को देखते हुए ही भारत के आर्मी चीफ बिपिन रावत ने कहा कि भारत को पाकिस्तान से लगी अपनी सीमा से ध्यान हटाकर अब चीन से सटी सीमा पर ध्यान देना चाहिए. जनरल ने कहा कि 'चीन अगर मजबूत है तो भारत भी अब कमजोर नहीं है. भारत  अपनी सीमा पर किसी भी देश को अतिक्रमण नहीं करने देगा. अब हालात 1962 जैसे नहीं है'.

आर्मी चीफ के इस बयान से चीन तिलमिला कर रह गया. एक बार फिर डोकलाम की धमकी के साथ चीन ने अपने तेवर दिखा दिए. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा कि आर्मी चीफ के बयान से भारत-चीन सीमा पर हालातों में तनाव बढ़ेगा. चीन ने आर्मी चीफ के बयान को पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुई बातचीत से बनी आम राय के खिलाफ करार दिया है.

चीन को अपने कारोबार की फिक्र

दरअसल डोकलाम विवाद में तनाव जब चरम पर पहुंच चुका था उस वक्त चीन ब्रिक्स देशों के सम्मेलन की मेजबानी करने वाला था. चीन नहीं चाहता था डोकलाम की आंच ब्रिक्स समिट में पड़े. वैसे भी वन बेल्ट वन रोड परियोजना में भारत के बहिष्कार की वजह से चीन को नुकसान उठाना पड़ा है. चीन की व्यापारी बुद्धि को जंग से ज्यादा अपने कारोबार की फिक्र थी क्योंकि भारत के साथ चीन सालाना पांच अरब डॉलर का कारोबार करता है.

ऐसे में पीएम मोदी और शी चिनफिंग के बीच बातचीत के सौहार्दपूर्ण माहौल के लिए चीन ने डोकलाम से सेना वापसी का एलान कर दिया था. लेकिन अब आर्मी चीफ के बयान के बाद चीन एक बार फिर डोकलाम पर दावा कर रहा है और चीन के ही दावे सीमा पर अस्थिरता फैलाने का काम कर रहे हैं. चीन के दावों से ही उसके बयानों का विरोधाभास झलकता है .चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि 'चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात में रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने के लिए उनमें आम राय बनी थी'. ये आम राय सीमा पर यथास्थिति की बहाली के लिए बनी थी ना कि ब्रिक्स समिट तक शांत बने रहने के लिए?

अरुणाचल पर चीन की नजरें

चीन की विस्तारवादी आक्रमणकारी नीति और फितरत की वजह से ही उस पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता है. तभी आर्मी चीफ ने कहा था कि अब जरुरत पाकिस्तान की सीमा से हटकर चीन से सटी सीमाओं पर ध्यान केंद्रित करने की है. चीन कई बार कह चुका है कि वो अरुणाचल प्रदेश के वजूद को मानता ही नहीं है. चीन हमेशा से ही अरुणाचल प्रदेश को विवादित इलाका कहता आया है. यहां तक कि चीन ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अरुणाचल प्रदेश यात्रा का कड़ा विरोध किया था. उस वक्त भी चीनी विदेश मंत्रालय की तरफ से बयान आया था कि उसने 'तथाकथित' अरुणाचल प्रदेश को स्वीकार नहीं किया और सीमा मुद्दे पर स्थिति दृढ़ और साफ है. इससे पहले रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के अरुणाचल प्रदेश के सीमाई इलाकों का दौरा करने पर भी विरोध जता चुका है.

चीन जिस तरह से भारतीय सीमा में पैर पसारने की कोशिश में है और समय समय पर विवादों को हवा देने का काम कर रहा है उसे देखते हुए अब आर्मी चीफ के बयान को ध्यान में रखते हुए ये बड़ी जरुरत है कि चीन से सटे सीमाई इलाकों में भारत इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने का काम करे ताकि कभी युद्ध के हालातों में भारतीय जवानों को मोर्चे तक पहुंचने में दिक्कतें न हो.

चीन की सेना-हथियारों के अलावा मजबूत ताकत उसका इंफ्रास्ट्रक्चर है. भारत से सटे सीमाई इलाकों में वो तेजी से सड़क निर्माण करता आ रहा है. डोकलाम से मात्र दस किमी की दूरी पर चीन ने सड़कों का निर्माण शुरू कर दिया है. ऐसे में भारत को उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में चीन से लगी एलएसी पर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की जरूरत है. रक्षा मंत्रालय ने भारत-चीन के बीच की तकरीबन 4 हजार किमी लंबी सीमा के पास आधारभूत संरचना में बड़े विस्तार का फैसला किया है. जिसके बाद सड़क निर्माण कार्य को तेज किया जाएगा. चीन सीमा पर विवादित क्षेत्रों के आसपास आधारभूत संरचना को मजबूत बनाया जाएगा. भारत को चीन के साथ किसी भी आपात स्थिति से निपटने से पहले सामरिक मोर्चे पर सेना की बुनियादी जरूरतों और आधारभूत संरचनाओं को मजबूत करने की पहले जरुरत है ताकि फिर चीन के साथ दूसरे डोकलाम ने पैदा हो सकें.