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हॉवित्जर M777 तोपों का सौदा पक्का, चीन-पाकिस्तान के खिलाफ होगा इस्तेमाल

भारत ने अमेरिका के साथ 145 M 777 हॉवित्जर तोप खरीदने की डील की है

Ravishankar Singh

भारत ने अमेरिका के साथ 145 M777 हॉवित्जर तोप खरीदने की डील की है. 5 हजार करोड़ की इस डील से भारत की थलसेना को सीमा पर एक मजबूत प्रहरी और योद्धा मिल सकेगा. भारत-चीन की सीमा पर अमेरिका की हॉवित्जर तोपें दुश्मन का मुंहतोड़ जवाब देने के लिये तैनात की जाएंगी. भारत ने अमेरिका के साथ 'लेटर ऑफ एक्सेप्टेंस' पर दस्तखत किया है.

हॉवित्जर तोप की खासियत


हॉवित्जर तोप दुनिया की सबसे मारक तोपों में शुमार है. ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में हॉवित्जर तोपें दुश्मन को ढूंढ निकाल कर नेस्तनाबूद करने में माहिर हैं. हॉवित्जर तोपों की सबसे बड़ी खासियत इसका वजन है. हल्की तोप होने की वजह से इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में आसानी है.

25 किमी दूर तक गोला दागने में हॉवित्जर तोप सक्षम है. हालांकि इसके टारगेट को ऊंचाई के हिसाब से सेट किया जा सकता है. जिस वजह से हॉवित्जर 20 से 50 किलोमीटर के टारगेट को आसानी हिट कर सकती है. हॉवित्जर में लगे सेंसर और राडार पहाड़ों के पीछे छिपे दुश्मनों को ढूंढकर गोले बरसा सकते हैं. यही वजह है कि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में चीन से लगने वाली सीमा पर हॉवित्जर तोपों की तैनाती की जाएगी. हॉवित्जर के आने से करगिल और द्रास सेक्टर जैसे पहाड़ी इलाकों में भारतीय सेना को काफी मजबूती मिलेगी.

रक्षा मामलों के जानकार जी डी बक्शी का कहना है कि हॉवित्जर तोपों को हेलिकॉप्टर से 16 हजार फुट तक की ऊंचाई वाले पहाड़ पर भी ले जाया जा सकता है. अगर चीन पाकिस्तान के साथ  लड़ाई होती है तो ये कारगर साबित हो सकता है.

अस्सी के दशक में बोफोर्स तोपों की गूंज घोटाले के शोर में दब गई थी. नई तोपें खरीदने का फैसला पिछले 30 साल से अटका पड़ा था, लेकिन अब अमेरिका की हॉवित्जर तोपें भारत की रणभूमि पर गरजेंगी.

रक्षा मामलों के जानकार जनरल जी डी बक्शी डील के बारे में कहते हैं, ‘ये भातीय आर्मी के लिए बहुत फायदे का सौदा साबित होगा. आप देखिए 30 साल हो गए थे. हमारे देश के लिए बहुत ही खतरनाक स्थिति पैदा हो रही थी. ये तोपें लड़ाई में निर्णायक मोड़ देने में सक्षम हैं. इनको मीडियम तोप या मीडियम गन भी बोलते हैं. ये 155 मिलीमीटर की होती है. इतना भारी गोला होता है इसका जो दुश्मन की कमर तोड़ डालता है.’

बोफोर्स और हॉवित्जर तोपों में फर्क

बोफोर्स के मुकाबले हॉवित्जर एम777 पूरी तरह ऑटोमैटिक है साथ ही वजन में हल्की है. बोफोर्स तोप का वजन हॉवित्जर तोप से ज्यादा है. बोफोर्स तोप का वजन 13 हजार 100 किलोग्राम है. जबकि हॉवित्जर M777 का वजन 4200 किलो है.

क्यों हल्की है हॉवित्जर तोप ?

हॉवित्जर तोपें बनाने में टाइटेनियम का इस्तेमाल किया गया है जिस वजह से इसका वजन बोफोर्स के मुकाबले बेहद कम है.

कब शुरु हुई थी डील ?

चीन के साथ सीमा पर बढ़ते तनाव के चलते भारत के लिये हॉवित्जर जैसी तोपों की जरुरत थी. साल 2006 में भारत ने हॉवित्जर का लाइट वर्जन खरीदने के लिये अमेरिका से वार्ता शुरु की थी. लेकिन सात साल बाद अमेरिका ने भारत को नया वर्जन देने की पेशकश की. दो साल तक ये डील ठंडे बस्ते में पड़ी रही. मई 2015 में भारत ने अमेरिका को लेटर ऑफ रिक्वेस्ट भेजा जिसके बाद अब दोनों के बीच डील आखिरी चरण में पहुंची. इस डील के साथ ही अमेरिका, रूस, इजरायल और फ्रांस को पीछे छोड़कर भारत को आर्म्स सप्लाई करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है.

शुरुआत में मिलेंगी 25 तोपें

25 तोपें तैयार कर अमेरिका भारत में भेजेगा. उसके बाद मेक इन इंडिया के तहत बाकी तोपों का एसेंबल और टेस्ट भारत में होगा. साल 1980 में भारत ने स्वीडन से बोफोर्स की तोपें खरीदी थीं. भारत और अमेरिका के बीच इस डील को हाल ही में सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी ने मंजूरी दी थी. अमेरिका और भारत के बीच हुए इस करार में अमेरिका की तरफ से 260 डिफेंस अफसर और भारत की तरफ से हाई लेवल आर्मी डेलिगेशन शामिल हुआ था. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इसी साल अक्टूबर में डील पर मुहर लगाई थी. भारत-अमेरिका सहयोग समूह (एमसीजी) की दो दिवसीय बैठक में सौदे पर हस्ताक्षर किया गया.