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भारत ट्रंप के पहले से ही एच-1 बी वीजा पर लड़ रहा है कानूनी जंग

वीजा के मसले पर जिनेवा में दायर अंतरराष्ट्रीय कानूनी मुकदमे के जरिए असली जंग लड़ी जाएगी

Shreerupa Mitra

जो भारतीय जानना चाहते हैं कि उन्हें मिले एच-1 बी वीजा का क्या होगा, तो वे ट्रंप की तरफ देखने की बजाय अंतरराष्ट्रीय व्यापार विवाद अदालत के जजों की तरफ देखें. वर्क-वीजा प्रोग्राम को लेकर ट्रंप के इरादे तो अब जाहिर हुए हैं. लेकिन भारत ने तो पहले ही इस मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) में अमेरिका के खिलाफ शिकायत दर्ज करा रखी है.

एनआर नारायणमूर्ति ने तो एच-1 बी वीजा व्यवस्था में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रस्तावित सुधारों को हरी झंडी दिखा दी है. लेकिन असली जंग तो जिनेवा में दायर अंतरराष्ट्रीय कानूनी मुकदमे के जरिए लड़ी जाएगी. नारायणमूर्ति उस कंपनी के सह-संस्थापक हैं जो भारतीय आउटसोर्सिंग की अगुवा रही है.


(फोटो: रॉयटर्स)

‘विचार विमर्श का आग्रह’

कम ही लोगों को पता होगा कि भारत ने पिछले साल मार्च में एच-1 बी वीजा से जुड़े नियमों को लेकर डब्लूटीओ में एक आपत्ति दाखिल कराई थी. इस आपत्ति को ‘विचार विमर्श का आग्रह’ कहा जाता है और व्यापारिक विवाद के निपटारे के लिए यह पहला कदम है. अगर ट्रंप वर्क-वीजा प्रोग्राम को खत्म करने की तरफ बढ़ते हैं तो फिर भारतीय चिंताएं तुनकमिजाजी ही नजर आएंगी.

भारत ने अमेरिका के साथ विचार-विमर्श का आग्रह किया था ताकि वह एल-1 और एच-1 बी वीजा की संख्या से जुड़ी अपनी चिंताओं को उठा सके. इनमें एल-1 एक नॉन इमिग्रेंट वीजा है जिसके तहत कंपनियां विदेशी ट्रेंड कर्मचारियों को अमेरिका में मौजूद अपनी सहायक कंपनियों या फिर मूल कंपनी में रख सकती है. जबकि, एच-1 बी भी एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा है जिसमें अमेरिकी कंपनियों को विशेषज्ञता वाले पेशों में विदेशी कर्मचारियों को अस्थायी रूप से अपने यहां नौकरी पर रखने की इजाजत होती है.

ट्रंप ने दुनिया के सात देशों के मुसलमानों पर अमेरिका में आने पर रोक लगाया है (फोटो: रॉयटर्स)

भारत ने एल-1 और एच-1 बी वीजा के लिए आवेदन करने वाले कुछ लोगों पर कुछ विशेष परिस्थितियों में ज्यादा वीजा फीस थोपने पर आपत्ति जताई है.

आमने सामने

भारत ने कहा है कि अमेरिका का ये कदम सेवा व्यापार से जुड़े जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज (जीएटीएस) समझौते के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन करते हैं. अंतरराष्ट्रीय सेवा व्यापार इसी समझौते के नियमों के मुताबिक होता है.

भारत ने अमेरिका के साथ विचार-विमर्श करने का आग्रह किया जो पिछले साल हुआ भी. भारत ने अभी तक डब्लूटीओ से विवाद निपटारा बोर्ड (डीएसबी) कायम करने को नहीं कहा है.

खास तौर से भारत ने कहा है कि एल-1 और एच-1 बी श्रेणियों के वीजा होल्डरों को लेकर अमेरिका के कदम व्यापार के लिए सबसे पसंदीदा देश के दर्जे (एमएफएन), पारदर्शिता के नियमों और घरेलू कानून से जुड़े कुछ नियमों का उल्लंघन करते हैं.

अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं (फोटो: रॉयटर्स)

भारत का कहना है कि ये कदम विश्व व्यापार में विकासशील देशों की भागीदारी बढ़ाने, उन्हें बाजार तक पहुंच मुहैया कराने और उनके साथ राष्ट्रीय कंपनियों जैसा बर्ताव करने के अनुबंध के खिलाफ है.

क्या कहते हैं नियम

इनमें कुछ बातों पर जीएटीएस समझौते के तहत बात करते हैं.

राष्ट्रीय कंपनियों जैसा बर्ताव किए जाने से जुड़ा क्लॉज कहता है कि सरकार दूसरे देशों से सेवाएं और सेवा आपूर्तियों के लिए समझौता करेगी. उन्हें ऐसी सेवाएं देने वाली राष्ट्रीय कंपनियों के बराबर ही समझा जाए और वरीयता दी जाए.

एमएफएन से जुड़ा क्लॉज कहता है कि जिस देश से समझौता किया गया है, उसके साथ ‘तुरंत और बिना शर्त’ वैसा ही व्यवहार होना चाहिए जैसा उस तरह की सेवा और सेवा आपूर्तियां मुहैया कराने वाले अन्य साझीदार देशों के साथ होता है.

जिन क्षेत्रों में किसी देश ने बाजार से जुड़ी ऐसी वचनबद्धताएं उठा रखी हों, वह ऐसे कदम नहीं उठा सकता जिनसे उसके यहां आने वाले सेवा आपूर्तिकर्ताओं की संख्या या सेवा की मात्रा पर पाबंदी लगती हो. यह पाबंदियां निश्चित कोटा तय करने, आर्थिक जरूरतों या सर्विस अभियानों की कुछ संख्या से जुड़ी हो सकती हैं.

वीजा आवेदकों में अमेरिका के लिए आवेदन करने वालों की बड़ी संख्या होती है (फोटो: रॉयटर्स)

जीएटीएस में लोगों की आवाजाही से जुड़े क्लॉज के मुताबिक जीएटीएस किसी देश को अपने यहां आने वाले लोगों के प्रवेश या उनके अस्थायी निवास से जुड़े नियम बनाने से नहीं रोकता, 'बशर्ते वे नियम किसी विशेष वचनबद्धता के तहत किसी सदस्य को मिलने वाले लाभ को खत्म न करे, नुकसान न पहुंचाए’.

क्या करेंगे ट्रंप

अगर भारत डब्लूटीओ से विवाद निपटारा बोर्ड यानी डीएसबी बनाने को कहता है तो इन सब उल्लंघनों की बात उठाई जाएगी. पैनल का फैसला आने के बाद दोनों में से कोई भी देश उसके खिलाफ अपील कर सकता है. अगर सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय व्यापार अदालत भारत के पक्ष में फैसला देती है तो फिर अमेरिका को उस आदेश का पालन करना ही होगा.

हालांकि यह अभी साफ नहीं है कि ट्रंप प्रशासन डब्लूटीओ की वचनबद्धताओं और विवाद निपटारा बोर्ड के जजों के फैसले पर कितना अमल करेगा. अमेरिका के मौजूदा राजनीति विमर्श में जिस तरह व्यापार समझौतों को जोर-शोर से 'अनुचित' बताया जा रहा है, उसे देखते हुए अमेरिकी डब्लूटीओ से बाहर भी जा सकता है.

जहां तक अमेरिका से साथ व्यापार वार्ताओं का सवाल है तो भारत और विश्व व्यापार संगठन के बहुत से दूसरे सदस्य देशों के लिए माहौल साजगार नहीं है.

पलटवार के तौर तरीके

मान लीजिए कि भारत सर्वोच्च व्यापार अदालत में अमेरिका के खिलाफ मुकदमा जीत जाता है और अमेरिका अपने खिलाफ आए फैसले की अनदेखी करता है तो भारत डब्लूटीओ से पलटवार करने का अधिकार मांगेगा. व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि आम तौर पर इस तरह का अधिकार दे दिया जाता है. इसके बाद भारत अमेरिकी आयात पर दंडात्मक शुल्क लगा सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि पलटवार का एक अन्य विकल्प यह भी हो सकता है कि भारत अमेरिका के बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकारों को मानने से इनकार कर दे. लेकिन पलटवार करने के इस विकल्प की प्रक्रिया बहुत अधिक जटिल हो सकती है.

हर साल हजारों की संख्या में भारतीय पेशेवर काम करने अमेरिका जाते हैं (फोटो: रॉयटर्स)

वैसे दंड देने के लिए ऊंचे शुल्क लगाने से अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन होगा. खास कर एमएफएन दर्जे से जुड़े नियमों का. हालांकि इस बारे में बहुत कुछ अमेरिकी व्यापार नीति में होने वाले कानूनी बदलावों पर निर्भर करेगा.

कानूनी पेंच

अगर अमेरिका अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रतिबद्धताओं पर अमल करते रहने का फैसला करता है तो ट्रंप के 'अमेरिकी सामान खरीदो, अमेरिकियों को नौकरी दो' को लागू करना भी इतना आसान नहीं होगा.

दो परिस्थितियां हो सकती हैं. पहली, अमेरिका की सरकार अपनी आपूर्ति घरेलू स्रोतों से ही ले और उसके साथ-साथ सरकार निजी कंपनियों को भी देश के भीतर मौजूद स्रोतों से ही अपनी जरूरत पूरी करने को कहे. इन दोनों की संभावित वास्तविकताओं में सब्सिडी देने की कोई बात शामिल नहीं है (इससे डब्ल्यूटीओ के अन्य नियमों का उल्लंघन हो सकता है).

अमेरिका में काम कर रहे अपने पेशेवरों को लेकर भारत की अपनी चिंताएं हैं

भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में डब्ल्यूटीओ अध्ययन केंद्र के प्रमुख अभिजीत दास कहते हैं, 'पहली परिस्थिति में अमेरिका को कुछ सुविधा होगी- सरकार गैर-व्यावसायिक इस्तेमाल या फिर अपने खुद के इस्तेमाल के लिए घरेलू स्रोतों के आपूर्ति लेने का आदेश दे सकती है.

स्थानीय स्तर पर घरेलू संसाधनों का इस्तेमाल कर अमेरिका किसी नियम का उल्लंघन नहीं करेगा. लेकिन अगर अमेरिकी सरकार निजी कंपनियों को भी घरेलू संसाधनों से ही काम चलाने को कहेगी, तो फिर इससे डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन होगा'.

उनका कहना है, 'अगर दूसरी परिस्थिति में अमेरिकी सरकार निजी कंपनियों को घरेलू संसाधनों से अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए रियायत या मदद देगी तो इससे डब्लूटीओ के सब्सिडी समझौते का उल्लंघन होगा. इसे हम लोकल कंटेट सब्सिडी कहते हैं, जिसकी अनुमति नहीं है'.