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हैप्पीनेस इंडेक्स: भारत को खुशहाल बनाना है तो अरेंज्ड मैरिज का सिस्टम बदलिए

अब ये जरूरी हो गया है कि हम वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की ताजा रिपोर्ट को गंभीरता से लें और हमारे देश में अरेंज्ड शादियों की जो प्रक्रिया या व्यवस्था है उसे बेहतर करने की दिशा में कदम उठाया जाए

Swati Arjun

साल 2018 के वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग एक बार फिर से निराशाजनक रही है. 156 देशों की लिस्ट में भारत 133वें स्थान पर है, जो पिछले साल के मुकाबले 11 पायदान और नीचे पहुंच गया है. इस लिहाज़ से देखा जाए तो भारत के नीचे जो 23 देश बचते हैं उनमें अफ़गानिस्तान, दक्षिणी सुडान, तंजानिया, बुरुंडी और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक जैसे देश शमिल हैं. जबकि, जिन देशों का स्थान भारत से बेहतर है उनमें नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, भूटान और श्रीलंका शामिल हैं.

इनमें से अगर हम ध्यान से देखें तो ज्यादातर देश ऐसे हैं जो किसी न किसी समस्या से ग्रसित हैं. बांग्लादेश और पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ आतंकवाद से त्रस्त हैं, तो म्यांमार रोहिंग्याओं की आंतरिक समस्या से. भूटान कभी भी आर्थिक रूप से मजबूत राष्ट्र नहीं रहा है. इन सभी देशों की तुलना में भारत जहां आर्थिक और विकास के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है वहीं, हैप्पीनेस इंडेक्स यानी खुशहाली के मापदंड पर लगातार फेल हो रहा है. जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है.


आर्थिक समृद्धि बढ़ी, फिर खुशहाली क्यों नहीं?

हमें ये जानने और पता लगाने की जरूरत है कि आखिर समस्या की जड़ कहां है या फिर विकास और तरक्की की इस रेस में हम कहां और क्या ग़लत कर रहे हैं कि हमारी आर्थिक समृद्धि और तरक्की भी हमें एक राष्ट्र के तौर पर खुश कर पाने में नाकाम साबित हो रही है? हम ऐसा क्या करें कि इस भयावह स्थिति से खुद को उबार सके.

शायद इसका जवाब हमारे आसपास ही छिपा है. हमें लैटिन अमेरिका और भूटान जैसे देशों को देखकर समझना चाहिए. भूटान कभी भी आर्थिक तौर पर स्वतंत्र राष्ट्र नहीं रहा लेकिन फिर भी वहां के लोग हमेशा से एक खुशहाल ज़िंदगी जीते रहे तब भी जबकि वहां राजशाही स्थापित है.

इस लेख की लेखिका को दो साल पहले जब वहां जाने का मौका मिला तो कुछ ही दिनों में उनका मन भर गया, जबकि आमतौर पर होना उल्टा चाहिए था. वहां के खुशनुमा मौसम और बेफिक्री वाले माहौल में भी उन्हें अपने देश की याद आ रही थी. ऐसा इसलिए क्योंकि इस छोटे से देश में हर समय और हर पल उन्हें ये याद दिलाया जा रहा था कि- वो एक न्यायप्रिय राजा के राज में आयी हुईं मेहमान हैं और उन्हें वहां की राजशाही हर नियम-कायदे का कड़ाई से पालन करना होगा. ऐसे नियम कायदे जो हम अक्सर इतिहास के किताबों में पढ़ा करते थे. जो एक लोकतंत्र के नागरिक के लिए थोड़ा मुश्किल था.

तब उन्होंने वहां के एक स्थानीय अफसर से पूछा कि- इतने नियम कायदों के साथ आपलोग इतने खुश कैसे रह लेते हैं? जवाब में उस अफसर ने कहा कि- हमारे यहां राजशाही के जितने भी नियम कायदे हैं वो औपचारिक कामकाज और पब्लिक स्फीयर में है, हमारी निजी ज़िंदगी में सत्ता या समाज का कोई दखल नहीं है. हमारी पारिवारिक और निजी ज़िंदगी काफी डेमोक्रेटिक है. उसमें हम पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है. सुनने में ये बात थोड़ी अजीब सी लग सकती है लेकिन इसका मर्म समझने के लिए हमें साल 2018 के हैप्पीनेस वर्ल्ड रिपोर्ट को गहराई से समझना होगा.

परिवार है असली चाभी

ठीक इसी तरह जब हम लातिन अमेरिकी देशों के बारे में बात करते हैं तो पाएंगे कि उनके यहां कई तरह की समस्यायें कमज़ोर राजनीतिक तंत्र, भ्रष्टाचार, हिंसा, अपराध, गरीबी, अमीर-गरीब का अंतर आदि... फिर भी यहां रहने वाले लोग हम भारतीयों से ज़्यादा खुश हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक लातिन अमेरिकी देशों के लोगों की खुशियों के आंकड़े उनकी आय के आंकड़ों से बेहतर हैं. वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में इन देशों की खुशियों की कुंजी उनके मज़बूत पारिवारिक संबंधों को माना गया है.

किसी भी समाज का निर्माण उसके यहां रह रहे परिवारों से होता है, यानी किसी भी समाज की संरचना में परिवार सबसे मूल ईकाई होता है. परिवार के ज़रिए ही समाज क्रियाशील रहता है. जेएच. लार्सन और टीबी होलमेन (1994) जैसे विचारकों ने विवाह को समाज की सबसे ज़रूरी संस्था माना है, क्योंकि शादी के ज़रिए ही हम अपने सबसे ज़रूरी रिश्तों का न सिर्फ निर्माण करते हैं बल्कि एक परिवार और उसकी आने वाली पीढ़ियों को जन्म देते हैं.

हावर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध में ये पाया गया है कि, ‘जिन लोगों की आयु 80 के आसपास होती है उसका सीधा संबंध उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से होता है और ये कि हम जितने खुश अपने रिश्तों में होंगे, हमारी सेहत भी उतनी ही अच्छी होगी.’ हावर्ड मेडिकल स्कूल के डायरेक्टर रॉबर्ट वालडिंगर कहते हैं, 'अपने शरीर का ख्याल रखना बेहद ज़रूरी होता है, इसके साथ-साथ अपने रिश्तों की देखरेख करना भी उतना ही ज़रूरी है क्योंकि वो भी एक तरह का सेल्फ केयर है.' इस शोध के मुताबिक लंबे, सफल और खुशहाल जीवन के लिए सामाजिक रुतबा, कुशाग्रता और वंशबेल से भी ज़्यादा ज़रूरी होता है मजबूत और गहरे पारिवारिक संबंध होना.

सफल विवाह है एक बड़ा फैक्टर

इनमें भी सबसे ज़्यादा ज़रूरी होती है, हमारा हमारे जीवन-साथी के साथ रिश्तों की क्वालिटी. ये वो मापदंड है जिसका घर के चारदीवारी के बाहर की दुनिया में काफी असर पड़ता है. हमारे यहां जाति व्यवस्था को कमजोर करने या खाप पंचायतों के तुग़लकी फैसलों का विरोध करने के लिए कई बार प्रेम विवाह को सरकारें और समाज बढ़ावा तो दे देती हैं लेकिन इसका एक बड़ा नुकसान भी होता है. ऐसी शादियों के कारण परिवार में सामूहिक फैसले लेने की जो परंपरा अरेंज्ड मैरिज में हुआ करती थी वो खत्म होती जाती है और उसकी जगह व्यक्तिगत फैसले लेने की परंपरा बढ़ने लगती है. इसका तुरंत असर ये होता है कि हमारे पारिवारिक सिस्टम से हमारे माता-पिता, भाई-बहन, नज़दीकी रिश्तेदार और समाज हमारे फैसलों से कट जाते हैं. फैसला जीवन-साथी को चुनने की.

प्रतीकात्मक तस्वीर.

पश्चिमी सभ्यता में निजी इच्छाओं और आज़ादी को परिवार से ज्यादा महत्व दिया गया है वहां शादियों के फैसलों में माता-पिता का कोई रोल नहीं होता है, जबकि अरेंज्ड मैरिज में अक्सर फैसले जल्दबाजी में लिए जाते हैं, जिसमें जिनकी शादी होती है उनकी इच्छाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है.

लव मैरिज और अरेंज्ड मैरिड का फर्क

कोलंबिया बिज़नेस स्कूल में प्रोफेसर शीना अंयगर ने अपनी किताब ‘द आर्ट ऑफ चूज़िंग’ में अरेंज मैरिज और लव मैरिज की प्रक्रिया को दिमाग के निर्णय लेने की नज़रिए से समझने की कोशिश की है. उनके मुताबिक, फैसले अक्सर दो तरह से लिए जाते हैं- सिक्वेंशियल यानि तार्किक या परिणामिक और साईमलटेनियस यानी एक साथ होने वाला या समकालिक. सिक्वेंशियल डिसीजन मेकिंग की प्रक्रिया में सिर्फ एक ऑप्शन के बारे में सोच-विचार किया जाता है, ऐसे मौकों पर गलत फैसले लेने और गलत फैसलों के नतीजे सामने आने के आसार भी कम होते हैं. जबकि, समकालिक फैसलों के दौरान हम कई विकल्पों के बारे में सोच-विचार करने के बाद कोई फैसला लेते हैं, यहां किसी भी निर्णय पर पहुंचने लिए हम बड़ी कीमत अदा करते हैं और उनके गलत साबित होने पर बड़ा नुकसान झेलते हैं.

हालांकि, ये भी सच है कि समकालिक या अरेंज्ड मैरिज के फैसलों के बाद लोगों को ज्यादा संतुष्टि होती है, क्योंकि उसमें पूरा परिवार और समाज शामिल होता है, जबकि लव मैरिज में सिर्फ व्यक्ति शामिल होता है और उसके फैसलों का परिवार पर कम असर होता है. लेकिन, अब ये जरूरी हो गया है कि हम वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की ताजा रिपोर्ट को गंभीरता से लें और हमारे देश में अरेंज्ड शादियों की जो प्रक्रिया या व्यवस्था है उसे बेहतर करने की दिशा में कदम उठाया जाए. क्योंकि, अरेंज्ड शादियों ने भले ही हम सबको मज़बूत और स्थिर शादियों वाला समाज दिया हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अगर इन शादियों की छाया में पलने वाले परिवार खुशहाल नहीं है तो हो सकता है कि अगले हैप्पीनेस इंडेक्स के आने तक हम 156 देशों की सूची से बाहर हो जाएं.