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भारत-चीन विवाद: हमें लड़ाई के नए मैदानों पर गौर करना होगा

भारतीय मानसकिता के साथ खेलते हुए चीन ने अपनी आक्रामकता को बढ़ाया है

Bikram Vohra

अधिकतर भारतीय चीन के साथ टकराव को सिर्फ सैन्य रूप में देखते हैं. क्या चीन ने अपना लक्ष्य बिना गोली चलाए ही हासिल कर लिया है? हमने 21वीं सदी में लड़ाई के तीन अन्य मैदानों के बारे में पूरी तरह सोचना शुरू ही नहीं किया है.

पहला कॉमर्स और फाइनेंस है. इसमें चीन को खरोंच तक नहीं लगी. एक अरब से अधिक आलसी भारतीय परवाह तक नहीं करते कि वो चीन में बना सामान नहीं खरीदें. चीन जानता है कि वैश्विक धोखाधड़ी में उसकी पकड़ बनी हुई है और युद्ध का ढोल पीटने के बावजूद सस्ते सामान बनाने और असेंबल करने के उसके काम में बाधा नहीं आने वाली है.


अगर दुश्मन देश की जनता परवाह नहीं करती है तो फिर पूरी दुनिया क्यों करेगी? अगर मैं अपने आसपास देखूं तो टीवी, मोबाइल फोन, लैपटॉप, कॉफी मग और टोस्टर में यही नजर आता है.

साइबर युद्ध के लिए करनी होगी तैयारी

दूसरे मोर्चे पर हम साइबर स्पेस और इसके जहर को मान्यता देने से इनकार कर रहे हैं. हाल ही में, कंप्यूटर में डाले गए और सैन्य तंत्र को बेचे गए स्लीपिंग वायरस की चर्चा थी. सक्रिय होने से पहले तक वे अच्छी तरह काम करते हैं. इसके बाद वो गड़बड़ी और खराबी पैदा करते हैं. यह संभावना अब साइंस फिक्शन के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है.

यह हकीकत बन सकता है या फिर बन गया है. उपकरण को दूर से नियंत्रित किया जा सकता है, खासकर तब जब दुश्मन ने इसका निर्माण या इसे असेंबल किया है. यह एक ऐसी चीज है जिसे हमें बेहद गंभीरता से लेना चाहिए.

पॉपुलर टीवी ड्रामा मैडम सेक्रेटरी के एक एपिसोड में अमेरिका ईरान पर इजरायल के हमले को नियंत्रित करने में सफल हो जाता है. इसमें वो तेलअबीब को बेचे गए फाइटर जेट हार्डवेयर में सिस्टम को शट डाउन कर देता है. यह सब बहुत हद आज हकीकत है.

ऐसा कोई कारण नहीं है कि ये हाईटेक ट्रोजन होर्सेस काम नहीं करेंगे. आप जान भी नहीं पाएंगे कि आपके इंफ्रास्ट्रक्चर में वायरस आराम से सुप्त अवस्था में है. इसी तरह ज्ञान शक्ति है. ट्रांसपोर्टेशन, अर्बन मोबिलिटी एंड मास ट्रांजिट, बिजली, पानी और ट्रैफिक कंट्रोल जैसी पब्लिक एमेनिटीज को हैक करना और अव्यवस्था पैदा करना युद्ध से पहले भ्रम में डाल सकता है. अगर बिजली चली जाए तो आप कौन सा युद्ध लड़ सकते हैं? भले ही यह सिनेमाई लगे लेकिन सच है.

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सशस्त्र बलों के लिए भारत की योजना बड़ी खरीदारी की है. सालाना बजट 53 अरब डॉलर का है. भारत दुनिया में पांचवां सबसे बड़ा हथियारों का खरीदार है. हथियार खरीदते वक्त भारत को अत्यधिक चौकन्ना रहने की जरूरत है. यह भी ध्यान रखना है कि वो किससे हथियार खरीद रहा है. अगर युद्ध के दौरान हथियारों का नियंत्रण हमारे पास नहीं होगा तो निश्चित तौर पर हमारी हवा निकल जाएगी.

यह कंप्यूटर सिस्टम के लिए विशेष रूप से जरूरी है जो हथियारों को कमांड करते हैं. भले ही वो जंगी जहाज, टैंक या एयरक्राफ्ट हों.

बिना गोली चलाए चीन हासिल कर रहा है अपने लक्ष्य

पिछले दो महीने में तनाव के दौरान चीन ने संभवतः पांचवीं शताब्दी के युद्ध रणनीतिकार सन त्जू के टेरेन एज ए गाइड पर दसवें अध्याय का इस्तेमाल किया है. भारतीय मानसकिता के साथ खेलते हुए उसने आक्रामकता को बढ़ाया है. चूहे-बिल्ली की यह रणनीति हमारे दिमाग में गड़बड़ी पैदा करने के लिए है. हम भी उनके साथ यही करें और अमनपसंद बनने से बचें.

चीन ने भारत की शक्तियों का मूल्यांकन किया. राजनीतिक और सैन्य प्रतिक्रिया का आकलन किया. पूर्वोत्तर की मनोदशा को महसूस किया. चीन ने बड़े पैमाने पर खुफिया जानकारी हासिल करने के साथ-साथ भारत पर दबाव डालने के लिए आक्रामकता के खतरे का इस्तेमाल किया. ये लिटमस टेस्ट एक खास प्रयोजन के साथ किए गए.

चाहे सही हो या गलत, चीन ने बिना गोली चलाए इन उद्देश्यों को हासिल कर लिया है. उसे लगता है कि वो समय बिता रहा है क्योंकि अगर ड्रैगन वापस बिल में चला जाता है तो उसके पास असीम धैर्य है. लेकिन अगले दिन वो फिर आग उगल सकता है या हमें मजा चखाने के लिए हल्का फुंफकार सकता है.

उसने 55 साल के अंतराल के बाद गंभीरता से क्षमताओं का आकलन किया है. इस बार मकसद यथास्थिति को तोड़ना है. भले ही भूटान के डोकलाम में सड़क निर्माण इसका कारण हो या फिर वो कश्मीर में गड़बड़ी पैदा करना चाहता है. नई दिल्ली और पूरे देश को सचेत रहना होगा और लड़ाई के नए मैदानों की तरफ ध्यान देना होगा.

चीनी पीछे नहीं हट रहे हैं. वो वही हासिल कर रहे हैं, जो उनका लक्ष्य है. जश्न मनाना खतरनाक रूप से गलत होग. इसकी जगह हमें ये सोचना चाहिए कि इस ड्राई रन से चीन को क्या हासिल हुआ है.