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कानून की पाठशाला में फेल भी हो जाते हैं पास और बन जाते हैं जज

देश के बेस्ट लॉ कॉलेजों में शामिल भोपाल के एनएलआईयू में फेल छात्रों को पास की डिग्री दिए जाने का गंभीर मामला सामने आया है

Dinesh Gupta

देश के सबसे अच्छे लॉ कॉलेज में भोपाल का नेशनल लॉ इन्स्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (एनएलआईयू) भी एक है. इस यूनिवर्सिटी में फेल छात्रों को पास डिग्री दिए जाने का मामला सामने आया है. यूनिवर्सिटी की इंटरनल जांच में यह तथ्य सामने आया है कि 14 फेल छात्रों को पास की डिग्री दी गई. इनमें से दो छात्र सिविल जज बन चुके हैं और न्याय और अन्याय का फैसला भी कर रहे हैं.

यूनिवर्सिटी की जनरल काउंसिल के अध्यक्ष मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इसके विजिटर हैं. सुप्रीम कोर्ट के ही जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, सीजेआई के नॉमिनी हैं. बोबड़े ने ही मामले की गंभीरता को देखते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अभय गोहिल को जांच अधिकारी नियुक्त किया. जस्टिस (रिटायर्ड) गोहिल ने कहा कि मामला गंभीर है. इस बात के भी सबूत हैं कि फेल छात्रों को पास होने की डिग्री दी गई है.


संस्थान के छात्र कई दिनों से नतीजों में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए आंदोलन कर रहे थे. छात्रों ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता के आश्वासन के बाद अपना आंदोलन खत्म किया. इसके फौरन बाद संस्थान के डायरेक्टर एस एस सिंह छुट्टी पर चले गए. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश गिरीबाला सिंह को नया रजिस्ट्रार नियुक्त किया गया है. डॉ. सिंह पर एक छात्रा को गलत तरीके से परीक्षा में पास करने, छात्राओं के कपड़े पर कमेंट करने और जातिगत टिप्पणी करने के आरोप लगाए गए हैं.

ये है फेल को पास करने का मामला

भोपाल में वर्ष 1997 में नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई थी. यह देश के टॉप 3 लॉ कॉलेजों में एक है. इसमें क्लैट के माध्यम से प्रवेश दिया जाता है. इस इंस्टीट्यूट में बीए एलएलबी से लेकर एलएलएम तक के कोर्स संचालित किए जाते हैं. इंस्टीट्यूट में सेमेस्टर प्रणाली नहीं है. ट्राईमेस्टर सिस्टम है. इंस्टीट्यूट ऑटोनॉमस है. परीक्षा आयोजित करने से लेकर डिग्री देने तक का काम इंस्टीट्यूट ही करता है. वर्षों से रिजल्ट और परीक्षा से जुड़े सारे काम असिस्टेंट रजिस्ट्रार रंजीत सिंह करते हैं. रिजल्ट पर दस्तखत प्रोफेसर यू पी सिंह के होते थे. फाइनल रिजल्ट के आधार पर डिग्रियां तैयार की जातीं हैं.

इंस्टीट्यूट की इंटरनल इन्क्वायरी में यह तथ्य सामने आया कि फाइनल रिजल्ट टेबल में फेल छात्रों के नाम पास छात्रों की सूची में शामिल कर दिए गए हैं. इससे उन्हें लॉ की डिग्री मिल गई. री-वैल्यूएशन में गड़बड़ी करने के सबूत भी जांच में मिले हैं. यह उसी तरह का मामला है, जिस तरह व्यापमं की परीक्षा में फेल छात्रों को पास करने के लिए री-वैल्यूएशन का तरीका अपनाया गया था.

प्रोफेसर एस एस सिंह के अनुसार पहली नजर में असिस्टेंट रजिस्ट्रार (एग्जाम) रंजीत सिंह को गलत ढंग से रिजल्ट तैयार करने के लिए दोषी पाया गया है. सिंह के अनुसार मैंने मामले की जांच रिपोर्ट इंस्टीट्यूट के विजिटर और सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस शरद बोबड़े को दी थी. इसी रिपोर्ट के आधार पर रिटायर्ड जस्टिस अभय गोहिल को जांच सौंपी गई है.

प्रारंभिक जांच में वर्ष 2013 के 1, वर्ष 2014 के 4 और वर्ष 2015 के 5 छात्रों को फेल होने के बाद पास की डिग्री दिया जाना पाया गया है. रिजल्ट तैयार करने वाले असिस्टेंट रजिस्ट्रार रंजीत सिंह को सस्पेंड कर दिया गया है. संस्थान के उच्च पदस्थ सूत्र दावा कर रहे हैं कि जांच बरीकी से की गई तो डिग्री घोटाला बड़ा रूप ले सकता है. डिग्री घोटाले की इंटरनल इंक्वायरी प्रोफेसर घयूर आलम, प्रोफेसर यूपी सिंह और लाइब्रेरियन छत्रपाल सिंह की तीन सदस्यों वाली कमेटी ने की थी. कमेटी ने पाया कि ऐसे छात्रों को भी पास की डिग्री दी गई जो कई विषय में फेल थे.

जांच रिपोर्ट का फर्जी डिग्रीधारी सिविल जज

व्यापमं घोटाला उजागर होने के बाद मध्य प्रदेश में डॉक्टरों की योग्यता पर सवाल खड़े होने लगे हैं. एनएलआईयू के इस फर्जी डिग्री कांड के बाद इंस्टीट्यूट से पास ऑउट वकील और जज की योग्यता पर भी सवाल खड़े होंगे. जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में दो ऐसे छात्रों का जिक्र किया है, जिनकी डिग्री संदेह के घेरे में है, वो सिविल जज की नौकरी मध्य प्रदेश में ही कर रहे हैं. एक नाम छिंदवाड़ा में पदस्थ भानु पंडवार का भी है. वो वर्ष 2016 की सिविल जज परीक्षा में 211.5 अंक प्राप्त कर सेलेक्ट हुए हैं. आरक्षित वर्ग के भानु पंडवार ने वर्ष 2010 में पांच वर्षीय डिग्री कोर्स में एडमिशन लिया था. वर्ष 2015 में हुई 14वीं ट्राईमेस्टर की रिजल्ट शीट में वो इंटरप्रिटेशन ऑफ स्टेच्यू और प्रोफेशनल इथिक्स विषय में फेल हैं.

दूसरा नाम अमन सूलिया का है. सूलिया का भी चयन सिविल जज के लिए हुआ है. उन्हें अभी पोस्टिंग नहीं मिली है. सूलिया आदिवासी वर्ग से हैं. यह भी ट्राईमेस्टर के कुछ विषयों में फेल थे. मामले की जांच कर रहे रिटायर्ड जस्टिस अभय गोहिल ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है.

संस्थान में हैं ये जानेमाने चेहरे

संस्थान की एग्जीक्यूटिव काउंसिल में राज्य के मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह के अलावा वित्त, हायर एजुकेशन, लॉ डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिव सदस्य हैं. राज्य सरकार के इन अधिकारियों के अलावा राज्य के महाधिवक्ता, बार काउंसिल के अध्यक्ष भी सदस्य हैं. जबकि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता, राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री, विधि मंत्री, भारत सरकार के ॲटार्नी जनरल, यूजीसी के चेयरमैन आदि जनरल काउंसिल के सदस्य हैं. अकादमिक काउंसिल में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस अलोक अराधे सहित कानून क्षेत्र की कई जानी-मानी हस्तियां हैं.