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आरुषि केस: टीवी डिबेट के फैसलों ने तलवार दंपति की छवि को नुकसान पहुंचाया

सीबीआई की नाकामी पुलिस की जांच प्रक्रिया को कठघरे में खड़ा करती है. हमारे पुलिस अधिकारियों के पास अपराधिक मामलों को सुलझाने का अच्छा हुनर नहीं है

Pallavi Rebbapragada

सोमवार को राजेश और नूपुर तलवार गाजियाबाद की डासना जेल से छूट जाएंगे. इस बात की पूरी उम्मीद है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें बेटी आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या के आरोप से बरी कर दिया था. तलवार दंपति को ट्रायल कोर्ट ने डबल मर्डर का मुजरिम ठहराया था. जिसके बाद से वो दोनों जेल में बंद हैं. जब हाईकोर्ट का आदेश और निचली अदालत से रिहाई का फरमान जेल पहुंचेगा, तो दोनों को रिहा कर दिया जाएगा.

अब वो सजायाफ्ता मुजरिम नहीं हैं. लेकिन अब भी इस सवाल का जवाब हमारे पास नहीं है कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा?


सुप्रीम कोर्ट में वकील रेबेका जॉन कहती हैं, 'अगर यह केस दिल्ली में चल रहा होता, तो राजेश और नूपुर अब तक रिहा होकर घर आ गए होते. लेकिन आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब यह हालात दिल्ली के बेहद करीब स्थित डासना जेल के हैं, तो देश के दूसरे जेलों का क्या हाल होगा.'

रेबेका कहती हैं, 'हम डिजिटल इंडिया की बात करते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि हमारे सिस्टम को बड़े पैमाने पर सुधारने की जरूरत है'. रेबेका मैमेन जॉन ने तलवार दंपति का केस लड़ा था.

इस मामले में आए उतार-चढ़ाव ने देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सीबीआई पर सख्त टिप्पणियां की हैं. लगातार इस बात की अफवाहें आती रहीं कि सबूतों से छेड़खानी की गई. गवाहों को पट्टी पढ़ाकर अदालत में पेश किया गया. सवाल इस बात पर उठे कि आखिर सीबीआई की दूसरी टीम ने किस बिनाह पर तलवार दंपति को आरोपी बनाया?

दिल्ली स्थित सीबीआई मुख्यालय

पुलिस के पास अपराधिक मामलों को सुलझाने का अच्छा हुनर नहीं 

रेबेका जॉन कहती हैं, 'मैं इस मामले में तलवार दंपति के साथ थी और सीबीआई की थ्योरी के सख्त खिलाफ. फिर भी मैं यह मानती हूं कि उन्होंने कई बड़े केस सुलझाए हैं. इस मामले में सीबीआई की नाकामी हमारे यहां की पुलिस की जांच प्रक्रिया को कठघरे में खड़ा करती है. साफ है कि हमारे पुलिस अधिकारियों के पास अपराधिक मामलों को सुलझाने का अच्छा हुनर नहीं है.'

रेबेका आगे कहती हैं कि 'पुलिस अधिकारियों को ट्रेनिंग नहीं दी जाती. उनके पास जरूरी संसाधनों की कमी होती है. फोरेंसिक जांच की सुविधाएं अच्छी नहीं हैं. अब अगर फोरेंसिक रिपोर्ट छह, सात या नौ महीने तक भेजी ही नहीं जाएगी, तो जांच अच्छे से कैसे होगी?'

रेबेका जॉन का कहना है कि, 'किसी भी मामले की जांच एक पेचीदा प्रक्रिया है. न्यूयॉर्क पुलिस में यौन अपराधों और आर्थिक अपराधों की जांच के लिए अलग-अलग टीमें होती हैं. जैसे हर जुर्म के लिए कानून अलग है, वैसे ही जांच का तरीका भी. इसीलिए जरूर है कि जांच की टीमें भी स्पेशल हों'.

जब हमने रेबेका जॉन से यह पूछा कि इस मामले में जनता की राय का कितना असर पड़ा, तो उन्होंने कहा कि तलवार दंपति समाज के ऊंचे तबके से आते हैं. इसीलिए आम लोगों का यही मानना था कि वो जांच को प्रभावित कर सकते हैं.

रेबेका कहती हैं, 'राजेश तलवार को हत्या के पांच दिन बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया था. उन्हें करीब 40-45 दिन बाद छोड़ा गया. सीबीआई की दूसरी टीम शुरू से ही तलवार दंपति के खिलाफ थी. मुकदमे की सुनवाई के दौरान तलवार दंपति की छोटी से छोटी दरख्वास्त भी ठुकरा दी गई. यहां तक कि एक और गवाह से जिरह की अपील भी खारिज कर दी गई. किसी भी गवाह को तलब करने के तलवार दंपति के अधिकार को भी खारिज कर दिया गया'. रेबेका सवाल उठाती हैं कि कौन सी अदालत है जो आरोपी को बुनियादी अधिकार से भी महरूम रखती है?

आरुषि और हेमराज की  16 मई, 2008 की आधी रात को नोएडा में उनके ही घर में हत्या कर दी गई थी

तलवार दंपति की बहुत सी बातों की राजदार हैं

रेबेका ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में कहा कि 'तलवार दंपति ने मुकदमा लड़ने के लिए रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए. उनके बैंक खाते आज खाली हैं. वो नोएडा में दो कमरों के फ्लैट में रहते थे. वो गोल्फ लिंक्स के किसी बंगले में नहीं रहते. मैंने, पिनाकी मिश्रा ने और हरीश साल्वे ने उनका केस मुफ्त में लड़ा'. रेबेका पिछले 9 साल से लगातार तलवार दंपति से बात करती आई हैं और उनकी बहुत सी बातों की राजदार हैं.

रेबेका ने खास तौर से टीवी पर होने वाली चर्चाओं पर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि मीडिया ट्रायल की वजह से तलवार दंपति को बहुत नुकसान हुआ.

रेबेका सवाल उठाती हैं कि 'अब अगर सच्चाई को टीवी डिबेट में सूट-बूट वाले एंकर साबित करने लगें, तो फिर हमें अदालतों की जरूरत ही क्या है. टीवी चैनलों ने तो तलवार दंपति को मुकदमा शुरू होने पहले ही मुजरिम ठहरा दिया था. टीवी चैनलों ने तो जांच एजेंसियों की थ्योरी पर जस का तस यकीन कर लिया. कोई सवाल नहीं पूछा गया.'

रेबेका बताती हैं कि जब भी तलवार दंपति नई थ्योरी के बारे में अखबार में पढ़ते थे, वो डर जाते थे. कई बार वो तड़के उठकर ही उन्हें फोन किया करते थे.

रेबेका ने एक बार नूपुर से हुई ऐसी ही बातचीत का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि 'उन दिनों नूपुर की तबीयत ठीक नहीं थी. वो अपने लिए नई सलवार कमीज खरीदने जाना चाहती थीं, ताकि बेहतर महसूस कर सकें. जब वो दुकान में दाखिल हुई, तो लोगों ने अपनी खरीदारी छोड़कर उन्हें घूरना शुरू कर दिया. उन्होंने लोगों की जुबान पर अपना नाम सुना. नूपुर ने बेहद अपमानित महसूस किया और दुकान छोड़कर चली आईं. फिर उन्होंने अपनी कजिन से कपड़े उधार लिए.'

आरुषि के माता-पिता नूपुर तलवार और राजेश तलवार पेशी के लिए ले जाए जाते हुए

रेबेका एक किस्सा और बताती हैं. राजेश तलवार उन्हें लेने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट गए थे. वो हवाईअड्डे पहुंचे तो उन्होंने अपना पूरा मुंह ढंका हुआ था और टोपी लगाई हुई थी. रेबेका उन्हें पहचान भी नहीं पाईं. रेबेका कहती हैं कि उन्होंने आरुषि के मां-बाप होने की भारी कीमत चुकाई है.

तलवार दंपति जेल में कैदियों का मुफ्त इलाज करते हैं

नूपुर और राजेश दोनों ही दांतों के डॉक्टर हैं. जेल में दोनों कैदियों का मुफ्त में इलाज करते थे. जब से हाईकोर्ट का फैसला आया है, दोनों दिन में ज्यादा से ज्यादा मरीज देखने लगे हैं.

रेबेका बताती हैं कि नूपुर के पिता एयरफोर्स में थे. वो पूरी सुनवाई के दौरान सहज दिखे. लेकिन उनकी मां अक्सर रो पड़ती थीं. तलवार दंपति के पारिवारिक दोस्त दुर्रानी दंपति भी पूरे मामले के दौरान लगातार साथ रहे हैं.

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रेबेका जॉन कहती हैं कि 'अपने हर बयान में तलवार दंपति ने कहा है कि वो दोनों के हत्यारों को ढूंढेंगे. दोनों को इंसाफ दिलाएंगे. जब मैंने पहले पहल उनसे सवाल किया था कि क्या उन्हें हेमराज पर शक था? तो उन दोनों ने कहा कि हेमराज एक भला आदमी था. तलवार दंपति उसका बहुत सम्मान करते थे'. रेबेका मानती हैं कि हेमराज को गलत वक्त पर गलत जगह पर होने की सजा मिली.

रेबेका जॉन कहती हैं कि 'हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि इस मामले में किसी बाहरी के दखल से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता. हेमराज के कमरे और सामने वाले कमरे से मिले सबूत इस बात की गवाही देते हैं.'

रेबेका वहां मिली बीयर की बोतलों और चादर का जिक्र करती है. लेकिन क्या ऐसा मुमकिन है कि जब उस छोटे से फ्लैट में दो लोगों का कत्ल हो रहा था, तो बाकी दो लोग आराम से सो रहे थे. क्या हम यह मान सकते हैं कि मारे गए दोनों लोग चीखे भी न हों. या उनका शोर एयरकंडीशनर की आवाज में दब गया हो?

इन सवालों के जवाब में रेबेका कहती हैं कि 'हम कई बार अपनी चाभी कहीं रखकर फिर उसे सारा दिन तलाशते हैं. जब कोई जुर्म होता है, तो यही बात सबूत बन जाती है. मेरे पति भी पत्रकार हैं. वो कई बार घर देर से आए और चाभी दरवाजे पर ही लगी रहने दी.'

रेबेका कहती हैं कि इस मामले की तमाम थ्योरी में कोई दम नहीं है.

कई लोगों ने उन्हें यह मुकदमा नहीं लड़ने की सलाह दी

रेबेका के मुताबिक लोग इस मामले को एक खास सोच के साथ देखते हैं. जब उन्होंने यह मुकदमा अपना हाथ में लिया था, तो कई लोग उन्हें सलाह देने आए थे कि वो ऐसा न करें. इससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे. वो तलवार दंपति के केस को अपने लिए कड़वा तजुर्बा मानती हैं.

जांच के दौरान रेबेका की मां की उनके पूर्वी दिल्ली स्थित घर में हत्या हो गई थी. वो 79 साल की थीं. हालांकि वो इस बारे में बात नहीं करना चाहती हैं. वो यह भी नहीं बताती हैं कि आखिर वो जज्बाती तौर पर खुद को किस तरह से तलवार दंपति के करीब पाती हैं.

तलवार दंपति का केस लड़ने वाली वकील रेबेका जॉन (फोटो: फेसबुक से साभार)

जब हाईकोर्ट का फैसला आया तो लोगों ने रेबेका से पूछा कि क्या वो जाकर तलवार दंपति को गले लगाएंगी? रेबेका ने कहा कि तलवार दंपति से उनका रिश्ता औपचारिकता का है. इसलिए इस फैसले का उनके ऊपर कोई जज्बाती असर नहीं हुआ है.