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सबरीमाला मंदिर पर 'सुप्रीम' फैसला: सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की मिली इजाजत

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से रोकना लैंगिक आधार पर भेदभाव है और यह परिपाटी हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है

Bhasha

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने फैसले के माध्यम से केरल के सबरीमाला स्थित अय्यप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से रोकना लैंगिक आधार पर भेदभाव है और यह परिपाटी हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है. चीफ जस्टिस ने कहा कि धर्म मूलत: जीवन शैली है जो जिंदगी को ईश्वर से मिलाती है.

जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा औक जस्टिस एएम खानविलकर के फैसले से सहमति व्यक्त की जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा का फैसला बहुमत के विपरीत है.


संविधान पीठ में एक मात्र महिला जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाए रखने के लिए गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए.

इस फैसले का अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा

जस्टिस मल्होत्रा का मानना था कि ‘सती’ जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं. जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि समानता के अधिकार का भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ टकराव हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है. इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा.

पांच सदस्यीय पीठ ने चार अलग-अलग फैसले लिखे. पीठ ने केरल के सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ये फैसले सुनाए. चीफ जस्टिस ने कहा कि भक्ति में भेदभाव नहीं किया जा सकता है और पितृसत्तात्मक धारणा को आस्था में समानता के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि भगवान अय्यप्पा को मानने वाले किसी दूसरे सम्प्रदाय/धर्म के नहीं हैं.

महिलाओं को पूजा करने के अधिकार से वंचित करना मानवीय गरीमा के विरुद्ध

चीफ जस्टिस ने कहा कि 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से प्रतिबंधित करने की परिपाटी को आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं माना जा सकता और केरल का कानून महिलाओं को शारीरिक/जैविक प्रक्रिया के आधार से वंचित करता है.

जस्टिस नरीमन ने कहा कि 10-50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं को प्रतिबंधित करने की सबरीमला मंदिर की परिपाटी का संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 समर्थन नहीं करते हैं.

अपने फैसले में जस्टिस नरीमन ने कहा कि महिलाओं को प्रवेश से रोकना अनुच्छेद 25(प्रावधान 1) का उल्लंघन है और वह केरल हिंदू सार्वजनिक धर्मस्थल (प्रवेश अनुमति) नियम के प्रावधान 3(बी) को निरस्त करते हैं.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि महिलाओं को पूजा करने के अधिकार से वंचित करने धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और यह मानवीय गरिमा के विरुद्ध है. उन्होंने कहा कि गैर-धार्मिक कारणों से महिलाओं को प्रतिबंधित किया गया है और यह सदियों से जारी भेदभाव का साया है.