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दीपक मिश्रा पर महाभियोग: दलों के दलदल में फंसा सुप्रीम कोर्ट

मोदी सरकार को राजनीति के अखाड़े में पटकनी देने की बजाए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को दलों द्वारा दलदल में घसीटने से न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर खतरा लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय ही होगा

Virag Gupta

समाचारों के अनुसार विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (सीजेआई) दीपक मिश्रा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं. संविधान के अनुच्छेद-124, 217 और 1968 के कानून के अनुसार हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को सिर्फ महाभियोग की प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है.

इसके तहत लोकसभा के 100 या राज्यसभा के 50 सदस्य नोटिस देकर चर्चा की मांग कर सकते हैं. इसके बाद तीन सदस्यीय समिति आरोपी जज के खिलाफ कदाचार या अक्षमता के आरोपों की जांच करती है. इसके बाद संसद में विशेष बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव को अनुमोदन मिले, तब राष्ट्रपति आरोपित जज को हटाने की घोषणा कर सकते हैं.


क्या किसी जज को महाभियोग से हटाया गया है? 

आजादी के बाद किसी भी जज को महाभियोग के तहत हटाया नहीं जा सका है. सिक्किम हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन और कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन ने महाभियोग स्वीकार होने से पहले ही सन् 2011 में त्यागपत्र दे दिया.

दिलचस्प बात यह है कि दोनों जजों को कदाचार के कारण इस्तीफे के बावजूद रिटायरमेंट के लाभ मिल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के खिलाफ राजनीतिक लामबंदी की वजह से लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया था. रिटायर होने के बाद रामास्वामी तमिलनाडु की राजनीति में आए लेकिन लोकसभा का चुनाव हार गए.

दीपक मिश्रा पर क्या हैं आरोप?

वर्तमान चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की नोटिस में दो तरह के आरोप लग रहे हैं. पहला सीजीआई द्वारा चुनिंदा जजों को मनमाने तरीके से केस आवंटित करने के लिए अथॉरिटी का दुरुपयोग जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आरोप लगाए थे. दूसरा आरोप मेडिकल कॉलेज मामले के फैसलों में अनियमिताओं का है. विपक्ष यदि इस महाभियोग प्रस्ताव को आगे बढ़ाता है तो अनेक सवाल खड़े होंगे?

क्या है इस हंगामे की वजह?

संसद में विपक्ष के पास महाभियोग के लिए बहुमत नहीं है. कानून के अनुसार महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के लिए संसद के सभी सदस्यों का बहुमत और उपस्थित सदस्यों का विशेष यानी दो तिहाई बहुमत का अनुमोदन होना जरूरी है. विपक्षी दल कोशिश करके राज्यसभा के पचास सदस्यों के हस्ताक्षर भले ही जुटा लें लेकिन संसद में महाभियोग पारित होने के लिए विपक्षी दलों के पास संसद के दोनों सदनों में ही बहुमत नहीं है.

सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के सहयोग के बगैर यह महाभियोग प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता तो फिर विपक्षी दलों द्वारा यह कवायद क्यों की जा रही है?

अयोध्या, आधार और बहुविवाह जैसे मामलों की सुनवाई पर सवाल

चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में विशेष बेंच अयोध्या विवाद और आधार से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहा है. अभी हाल ही में चीफ जस्टिस ने बहुविवाह और हलाला कुप्रथा पर सुनवाई करने का फैसला लिया है. विपक्ष को यह अंदेशा है कि अयोध्या मामले पर चुनावों के पहले किसी फैसले से बीजेपी को सियासी लाभ मिल सकता है. क्या इसलिए चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की तैयारी हो रही है?

चीफ जस्टिस के खिलाफ कदाचार और अक्षमता के क्या हैं प्रमाण

संविधान और कानून के अनुसार सिर्फ कदाचार और अक्षमता के आधार पर ही जजों के खिलाफ महाभियोग पारित हो सकता है. कांग्रेस की नरसिम्हाराव सरकार ने 1996 में जस्टिस मिश्रा को हाईकोर्ट का जज बनाया था. यूपीए सरकार ने 2011 में उनको सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया.

इसके बावजूद कांग्रेस के नेता जस्टिस मिश्रा की सक्षमता पर कैसे सवालिया निशान खड़ा कर सकते हैं. विपक्षी दल यदि गम्भीर हैं तो फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एसएन शुक्ला के खिलाफ महाभयोग प्रस्ताव क्यों नहीं लाते जिनके भ्रष्टाचार के बारे में जजों की जांच समिति को भी प्राथमिक साक्ष्य मिले हैं.

चीफ जस्टिस पर महाभियोग प्रस्ताव से कैसे चलेगी सुप्रीम कोर्ट

देश के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के विरुद्ध कभी भी महाभियोग प्रस्ताव नहीं आया. कानून के अनुसार महाभियोग मामले की जांच चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट के अन्य जज करते हैं.

यदि चीफ जस्टिस पर ही महाभियोग प्रस्ताव आया तो उसकी जांच कौन जज करेगा? चीफ जस्टिस कॉलेजियम के अध्यक्ष होते हैं जिसकी अनुशंसा पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति होती है. महाभियोग प्रस्ताव लम्बित रहने पर चीफ जस्टिस द्वारा की गई जजों की नियुक्तियों पर सवालिया निशान खड़े हो सकते हैं?

महाभियोग प्रस्ताव लाने वाले सांसद और वकीलों पर सवाल

पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेसी सांसद कपिल सिब्बल ने रामास्वामी को महाभियोग से बचाने के लिए बहस किया था. सांसदों द्वारा अदालत में वकील के तौर पर पेश होने की वैधानिकता पर बार कांउसिल और सुप्रीम कोर्ट में विचार हो रहा है.

वकील सांसदों द्वारा यदि महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए गए, तो फिर ऐसे लोग चीफ जस्टिस की अदालत में पेश होने का नैतिक साहस कैसे रखेंगे.

मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव की बात होने के साथ संसद की कारवाई कई दिनों से ठप पड़ी है.

मोदी सरकार को राजनीति के अखाड़े में पटकनी देने की बजाए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को दलों द्वारा दलदल में घसीटने से न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर खतरा लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय ही होगा.

(लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान मामलों के विशेषज्ञ हैं)