view all

...तो क्या अब किसानों को भी इनकम टैक्स देना पड़ेगा?

अरविंद सुब्रह्मण्यन ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि अमीर किसानों को टैक्स में छूट नहीं मिलनी चाहिए

Ravishankar Singh

देश में पिछले कुछ दिनों से किसानों को आयकर के दायरे में लाने या न लाने को लेकर बहस छिड़ी हुई है. सरकार की तरफ से भी विरोधाभासी बयानों ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है.

खेती की आय पर टैक्स लगाने के मुद्दे पर सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन के बयान किसानों के लिए चिंता का कारण हैं.


पिछले दिनों अरविंद सुब्रह्मण्यन ने एक बयान में कहा था कि अमीर और बड़े किसानों की खेती से होने वाली आय पर भी टैक्स लगाने में क्या आपत्ति है. उन्होंने यह कहकर सनसनी फैला दी कि अमीर किसानों को टैक्स में छूट नहीं मिलनी चाहिए.

हालांकि, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अरविंद सुब्रह्मण्यन के बयान को खारिज कर दिया. लेकिन सुब्रह्मण्यन के इस बयान ने मामले को एक बार फिर से सुलगा दिया है.

पिछले दिनों नीति आयोग के सदस्य और जाने माने अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय ने अपने एक बयान में कृषि आय पर टैक्स लगाने की सिफारिश करके किसानों और सरकारी तंत्र में दोबारा खलबली मचा दी थी.

बिबेक देबरॉय ने पिछले दिनों दिल्ली में एक प्रेस वार्ता के दौरान नीति आयोग के अगले तीन साल का एजेंडा जारी करते हुए कहा था कि यदि आयकर का दायरा बढ़ाना है तो एक सीमा के बाद हुई कृषि आय पर भी टैक्स लगाना होगा. यानी बड़े किसानों को भी आयकर के दायरे में रखा जाना चाहिए.

दूसरी तरफ सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन ने कृषि ऋण माफी योजनाओं पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यदि इसी प्रकार आगे भी ऋण माफी हुई तो देश के खजाने पर जीडीपी का 2% तक बोझ पड़ेगा जिससे देश का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाएगा.

किसानों की लोन माफी का विरोध नैतिक संकट

पिछले दिनों यूपी की सरकार ने किसानों के लगभग 36 हजार 600 करोड़ रुपए की कर्ज माफी की घोषणा की थी. इसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों से कृषि लोन माफी की मांग उठ रही हैं.

एसबीआई की चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य ने ऋण माफी पर आपत्ति दर्ज की थी और कहा था कि इस तरह किसानों के लोन माफी से वित्तीय अनुशासन खराब होता है और किसान लोन न चुकाकर अगले चुनाव में लोन माफी का इंतजार करते हैं.

आरबीआई के चेयरमैन उर्जित पटेल ने भी किसानो की कर्ज माफी का विरोध करते हुए कहा था कि किसानों के लोन माफी के मामलों ने नैतिक संकट पैदा कर दिया है.

हालांकि नीति आयोग के बयान से सरकार की किरकिरी होते देख और किसानों में गलत संदेश जाने की आशंका से चिंतित वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सामने आकर कृषि आय पर टैक्स लगाने की बात को सिरे से खारिज किया.

हालांकि किसानों में इस प्रकार के बयानों से एक बेचैनी सी है कि बिना सरकार की सहमति के उनके अधिकारी ऐसे बयान कैसे दे सकते हैं.

किसानों के भविष्य के साथ खिलवाड़

फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए किसान नेता और किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने कहा, ‘सरकार के उच्च वित्तीय संस्थाओं द्वारा किसानों की ऋण माफी पर सवाल उठाना और कृषि आय पर टैक्स की सिफारिश करना यह दिखाता है कि इन संस्थाओं में बैठे लोगों का देश की जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है.’

चौधरी पुष्पेंद्र सिंह आगे कहते हैं, ‘किसानों की समस्याओं से उनका कोई सरोकार नहीं है ये लोग केवल एसी कमरों में बैठकर देश के अन्नदाता के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं. जबकि धन्नासेठों के कर्ज माफी के उपाय ढूंढते रहते हैं. यदि कृषि आय पर टैक्स लगाई गई तो आने वाले लोकसभा चुनाव में सरकार को किसानों की नाराजगी भुगतनी पड़ सकती है.'

कृषि आय पर टैक्स लगाने के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क यह है कि ज्यादातर किसान गरीब हैं और कृषि से होने वाली कमाई अभी भी बड़े तौर पर मॉनसून और अन्य प्राकृतिक घटनाओं पर टिकी होती है.

हालांकि, किसी भी मामले में गरीब किसान को इनकम टैक्स नहीं चुकाना होगा, अगर उसकी नेट आमदनी टैक्सेबल लिमिट से कम है तो. लेकिन, अगर किसान अमीर हो रहे हैं तो उन्हें टैक्स दायरे से बाहर रखना कहां तक तर्कसंगत होगा.

किसानों पर टैक्स लगाने के काफी अहम नीतिगत सवाल पर देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन और वित्त मंत्री अरुण जेटली के बीच एक राय नहीं नजर आ रही है.

[तस्वीर: रॉयटर्स]उद्योगपतियों की कर्ज माफी पर सवाल

नीति आयोग के सदस्य से पहले आरबीआई के गवर्नर किसानों के कर्जे माफ करने को गलत बताया था. राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मुद्दा होने के कारण उर्जित पटेल को कड़ी प्रतिक्रिया झेलनी पड़ी थी.

राजनीतिक पार्टियों से लेकर सामाजिक संगठनों ने सवाल खड़े कर दिए थे.

कुछ संगठनों ने आरबीआई से पूछा था कि आरबीआई जवाब दे कि उद्योगपतियों के 10 से 12 लाख रुपए कैसे माफ कर देते हैं.

अगर किसानों के कर्ज माफ नहीं करेंगे तो फिर किसानों की फसलों की कीमत भी औद्योगिक उत्पादों की तरह हों. फिलहाल देश की 1.3 अरब आबादी में से सिर्फ 3.7 करोड़ व्यक्तिगत आयकर दाता है.

ये भी पढ़ें: मोदी सरकार ने टैक्स कलेक्शन का टारगेट हासिल किया