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बाल मजदूरी अपराध है, इस पर चुप्पी तोड़नी होगी

बच्चे कमजोर होते हैं. इसलिए उनके खिलाफ अपराध होने का डर बढ़ जाता है.

Neerad Pandharipande

देश में बच्चों पर जुल्म के मामलों में जबरदस्त तेजी आई है. सरकारी आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. 2010 से 2015 के बीच बच्चों के खिलाफ जुर्म में 252 फीसदी का इजाफा हुआ है. ये बेहद फिक्र और नाराजगी की बात है.

हालांकि ये आंकड़े पूरे देश के हैं. पर इनका सही मतलब समझने के लिए हमें इन आंकड़ों को अलग करके देखना होगा. हां, इनसे एक बात एकदम साफ है कि देश में बच्चों पर ज़ुल्म बढ़ रहा है. और हम उस पर खामोश हैं. उसको लेकर ज्यादा शोर नहीं मच रहा.


बच्चे कमजोर होते हैं. इसलिए उनके खिलाफ अपराध होने का डर बढ़ जाता है. वे अपनी बहुत सी जरूरतों के लिए बड़ों पर निर्भर रहते हैं. उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं होता.

उन्हें मुश्किल होने की सूरत में उन संस्थाओं और ठिकानों का पता नहीं होता जहां से मदद मिल सकती है. मसलन बाल मजदूरों का जितना शोषण होता है उसमें इन सभी बातों का बड़ा योगदान रहता है.

मिसाल के तौर पर 'पी' को ही लीजिए. हम उसके नाबालिग होने की वजह से उसका असल नाम नहीं बता सकते. उसकी उम्र दस साल है. वह बिहार की एक बेहद पिछड़ी जाति से है.

उसकी कहानी बच्चों के शोषण की एक बहुत बड़ी मिसाल है. 'पी', दिल्ली में चूड़ी बनाने की फैक्ट्री में काम करता है. उसने यहां तीन साल काम किया. मगर इसके बदले में उसके पिता को महज दस हजार रुपए मिले.

गांव में उसके पिता इससे भी कम पैसों मे मजदूरी करते है. खुद परिवार की रजामंदी से 'पी' दिल्ली में मजदूरी करने के लिए आया था. वापस जाने पर इससे भी बुरी जिंदगी उसे जीनी होगी.

दिल्ली की भट्ठियों में तपते मासूम

दिल्ली में बहुत से बच्चे बेहद मुश्किल और खतरनाक हालात में काम करते हैं. जैसे, चूड़ी बनाने का काम बेहद खतरनाक है. बच्चों को आग में चूड़ियों के किनारे जोड़ने होते हैं.

तेजी से चलती आरियों से उन्हें काटना होता है और सजावट के लिए खतरनाक केमिकल इस्तेमाल करने होते हैं. ऐसे माहौल में काम करने वाले बच्चे के इंसानी अधिकारों का हनन होता है.

इसी तरह घरेलू काम करने वाले बच्चों का भी शोषण होता है. ये बच्चे कई बार अपने परिवार के साथ काम कर रहे होते हैं. ऐसे में इनके काम के घंटों का हिसाब लगाना भी मुश्किल हो जाता है.

बाल मजदूरी के लिए कई बातें जिम्मेदार होती हैं. छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच काम करने वाले प्रखर जैन बताते हैं कि आदिवासी भी आज अपने काम के बदले नकद पैसे चाहते हैं. इसके लिए कई बार वे अपने बच्चों को काम करने के लिए जमींदारों के खेतों में भेज देते हैं.

जहां उनका शोषण होता है. जबकि अगर वे अपने पुश्तैनी गांव में रहते तो शायद उनकी जिंदगी बेहतर होती. कई बार सरकार की मनरेगा योजना का भुगतान देर से होने पर भी बच्चों को मजदूरी करनी पड़ती है.

रवि देशमुख, महाराष्ट्र के बीड जिले के एक गांव में सरपंच हैं. वह बताते हैं कि ये कपास के तोड़ने का सीजन है. इस दौरान बच्चे भी इस काम में लगाए जाते हैं.

बहुत से बच्चे तो स्कूल छोड़कर कपास तोड़ते हैं. इस दौरान स्कूलों में बच्चों की हाजिरी भी कम हो जाती है. ये बात सबको पता है कि बच्चे खेतों में काम कर रहे हैं. ये बाल मजदूरी है और कानूनन अपराध है. मगर इसे कोई रोक नहीं सकता.

सड़कों पर बिखरता बचपन

इसकी वजह भी कानून की खामी है. तमाम स्वयंसेवी और सरकारी संस्थाएं इस खामी की वजह से दोराहे पर खड़ी होती हैं. 2015 के जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के मुताबिक, बच्चों से काम लिया जाना गैरकानूनी है. लेकिन उनके पुनर्वास के लिए उनके घर में ही रहने का प्रावधान है.

जहां हालात इतने बुरे होते हैं कि उनकी जिंदगी बेहतर हो नहीं सकती. इसी से बचने के लिए तो वे बाल मजदूर बनते हैं. ऐसे बच्चों को जुवेनाइल होम में रखा जाता है तो इसे कैद मानते हैं.

दंतेवाड़ा की सुनीता गोडबोले, बच्चों की बेहतरी के लिए काम करती रही हैं. वह पंद्रह साल के एक लड़के की मिसाल देती हैं. सुनीता के मुताबिक, इस लड़के के पिता को नक्सलियों ने मार डाला था. मां शराबी थी. इसलिए वह घर छोड़कर भाग निकला था.

शहर आकर वह एक रेस्टोरेंट में काम करता था और वहीं रहता था. जब चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को उसके बारे में पता चला तो उन्होंने इस लड़के को छुड़ाकर जुवेनाइल होम में रखा. लेकिन वहां के हालात से घबराकर वह भाग निकला और वापस उसी रेस्टोरेंट में पहुंच गया, क्योंकि उसे किसी और जरिए से जिंदगी जीने का तरीका ही नहीं पता था.

कई बार बाल मजदूरी निषेध कानून की वजह से भी बच्चों का शोषण होता है. इस कानून के मुताबिक बच्चे अपने घरेलू काम में मददगार के तौर पर लगाए जा सकते हैं, अगर इससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो.

अब इसमें ये साफ नहीं कि बच्चों से किस तरह की मदद ली जा सकती है. और ये कौन पता लगाएगा कि उनकी पढ़ाई को नुकसान हुआ कि नहीं.

ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि बच्चों के खिलाफ अपराध को हम संजीदगी से लें. बहुत से अपराधों से निपटने के लिए अलग-अलग सख्त कानून हैं. लेकिन बाल मजदूरी के मामले में कानून को सही ढंग से लागू करना ही बड़ी चुनौती है.

(लेखक प्रयास जेएसी सोसायटी के साथ काम करते हैं जो बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली दिल्ली की संस्था है)