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क्या आप जानते हैं बजट से जुड़ी दिलचस्प कहानियां?

साल 2017 के बजट में रेल बजट और आम बजट एक साथ पेश करके ब्रिटिश परंपरा तोड़ी जाएगी. पहले भी कई बार टूटी हैं परंपराएं

Pratima Sharma

सत्तर साल के बजट में पहली बार ऐसा होने वाला है जब रेल और आम बजट एक साथ पेश किया जाएगा. भारत ने अपना पहला बजट 15 अगस्त 1947 को आजाद होने के तीन महीने के भीतर पेश कर दिया था. बजट और फाइनेंस मिनिस्टर से जुड़ी कई और दिलचस्प बातें हैं जो हम यहां पेश कर रहे हैं.

आजाद भारत का पहला बजट


26 नवंबर 1947 को आर के शनमुखम शेट्टी ने पहली बार आजाद भारत का पहला बजट पेश किया था. यह पूर्ण बजट नहीं था.असल में यह अर्थव्यवस्था की समीक्षा थी.

आर के शनमुखम शेट्टी ने पेश किया था आजाद भारत का पहला बजट (NDTV.Com)

इस बजट में किसी कर का प्रस्ताव पेश नहीं किया गया था क्योंकि 1948-49 का बजट सिर्फ 95 दिन दूर था. इस बीच प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ मनमुटाव के कारण शेट्टी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. शेट्टी के जाने के बाद के सी नियोगी ने 35 दिनों के लिए फाइनेंस मिनिस्ट्री की कमान संभाली.

देश के तीसरे फाइनेंस मिनिस्टर जॉन मथाई थे. मथाई ने 1950-51 में बजट पेश किया था. यह आजाद भारत का पहला बजट था.

चुनी गई संसद का पहला बजट

इसके बाद अगले फाइनेंस मिनिस्टर डी देशमुख थे. देश में पहली बार देशमुख ने ही चुनी गई संसद में पहला बजट पेश किया था. 1955-56 में पहली बार बजट हिंदी में तैयार किया गया था.

मोरारजी के नाम सबसे ज्यादा बजट पेश करने का रिकॉर्ड

1959 में मोरारजी देसाई देश के फाइनेंस मिनिस्टर बने. देसाई ने अब तक सबसे ज्यादा 10 बार बजट पेश किया है.

मोरारजी देसाई (scoopwhoop)

अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने पांच पूर्ण और एक अंतरिम बजट पेश किया. दूसरे कार्यकाल में उन्होंने तीन पूर्ण और एक अंतरिम बजट पेश किया. दूसरे कार्यकाल में उनके पास फाइनेंस मिनिस्टर और डिप्टी प्राइम मिनिस्टर दोनों पद थे.

मोरारजी देसाई इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें दो बार अपने जन्मदिन पर बजट पेश करने का मौका मिला. मोरारजी का जन्म 29 फरवरी को हुआ था.

1967 के चौथे आम चुनाव के बाद मोरारजी देसाई एकबार फिर फाइनेंस मिनिस्टर बने. यह उनका दूसरा कार्यकाल था. उनके इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फाइनेंस पोर्टफोलियो अपने पास रख लिया था. इंदिरा गांधी इकलौती महिला फाइनेंस मिनिस्टर हैं.

बदलते वक्त का बजट 

1987-88 में राजीव गांधी के मंत्रीमंडल से वीपी सिंह के निकलने के बाद राजीव गांधी ने खुद बजट पेश किया था. अपनी मां इंदिरा गांधी और नाना जवाहर लाल नेहरू के बाद बजट पेश करने वाले वे पहले प्रधानमंत्री थे.

इसके बाद यशवंत सिन्हा फाइनेंस मिनिस्टर बने और 1991-92 का बजट पेश किया. मई 1991 के चुनाव के बाद कांग्रेस फिर सत्ता में आई और मनमोहन सिंह फाइनेंस मिनिस्टर बने. पहली बार अंतरिम और पूर्ण बजट दो अलग-अलग पार्टियों के नेता ने पेश किया था.

अहम है फाइनेंस मिनिस्टर मनमोहन सिंह का दौर

भारतीय इतिहास में फाइनेंस मिनिस्टर के तौर पर मनमोहन सिंह की भूमिका काफी अहम थी. उन्होंने न सिर्फ देश की इकनॉमी को खोला बल्कि विदेशी निवेश को भी बढ़ावा दिया.

मनमोहन सिंह (indianexpress)

मनमोहन सिंह के फाइनेंस मिनिस्टर बनने से पहले इंपोर्ट ड्यूटी 300 फीसदी से ज्यादा था. मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में इसे घटाकर 50 फीसदी तक किया. इसी दौरान उन्होंने सर्विस टैक्स की शुरुआत की थी.

मिनिस्ट्री पर गैर कांग्रेसी का कब्जा

चुनाव के बाद फाइनेंस मिनिस्ट्री पर गैर कांग्रेसी नेता का कब्जा हो गया. इसके बाद 1996-97 में तमिल मनीला कांग्रेस के पी चिदंबरम ने बजट पेश किया था.

यह दूसरी बार था तब दो राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने अंतरिम और फाइनल बजट पेश किया.

आईके गुजराल मंत्रालय संकट में आने के बाद पी चिदंबरम ने 1997—98 का बजट बगैर किसी बहस के पास कर दिया.

2000 तक यूनियन बजट फरवरी के आखिरी दिन शाम 5 बजे पेश किया जाती था.  यह परंपरा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही थी. पहले दोपहर में ब्रिटिश संसद में बजट पास होता था उसके बाद शाम को भारत में बजट पेश किया जाता था. यशवंत सिन्हा ने यह वक्त बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया.