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नाम चाहे इलाहाबाद हो या प्रयागराज, इस शहर का मिज़ाज गंगा-जमुनी है...राजनीति इसका क्या बिगाड़ेगी

इलाहाबाद चर्चा में है क्योंकि अब उसे प्रयागराज के नाम से पुकारा जाएगा.

Arun Tiwari

'बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है.'

मशहूर अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने ऊपर लिखी गई बात बनारस के सिलसिले में कही है लेकिन अगर उन्होंने इलाहाबाद को भी उसी शिद्दत से घूमा होता तो शायद कुछ ऐसी ही बातें वो इलाहाबाद के बारे में भी लिख डालते.


इलाहाबाद चर्चा में है क्योंकि अब उसे प्रयागराज के नाम से पुकारा जाएगा. नए नामकरण के बाद सत्ता पक्ष के लोग इसलिए खुश हैं कि उनका मानना है प्रयागराज ही असली नाम है और विपक्ष इसे महज चुनावी स्टंट या वोट खींचू राजनीति का जामा पहनाने में लगा है. खैर इस पर सियासत चलती रहेगी लेकिन इलाहाबाद या प्रयागराज के इतिहास पर नजर डालें तो हम पाएंगे नाम चाहे जो भी रहा हो इस शहर ने हर नाम के साथ ख्याति ही बटोरी है.

वेदों से लेकर 15वीं शताब्दी तक प्रयाग

हमें प्रयाग का नाम का जिक्र वेदों में भी मिलता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने प्रयाग में ब्रह्मांड को बचाने के लिए एक बलि का अनुष्ठान किया था. कुछ ग्रंथ इस स्थान को भगवान शिव और पार्वती के दामाद के साथ जोड़ते हैं जिन्होंने सप्त सिंधु क्षेत्र में जाने से पहले इस जगह पर शासन किया था.

पुराणों में भी प्रयाग नाम का जिक्र मिलता है जब ययाति प्रयाग छोड़ते हैं और सप्त सिंध क्षेत्र पर विजय हासिल की थी. पुरातात्विक खुदाई में इलाहाबाद के झूंसी और कौशांबी ( अब अलग जिला) 1800 से 200 ईसा पूर्व तक के साक्ष्य मिले हैं.

इलाहाबाद संगम तट की एक तस्वीर. (रायटर इमेज)

इसके बाद प्राचीन इतिहास में बेहद महत्वपूर्म ढंग से कन्नौज वंश के शासक हर्षवर्द्धन के समय में प्रयाग नाम का जिक्र मिलता है. इतिहास के मुताबिक शासक हर्षवर्द्धन प्रत्येक पांच वर्ष पर प्रयाग संगति लगाया करते थे. इसमें त्रिवेणी के तट पर आकर बड़ी मात्रा में दान किया करते थे.

मुस्लिम शासन के समय में प्रयाग का जिक्र मिलता है. बाद में मुगलिया हुकूमत के दौरान अकबर ने प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर किले की स्थापना की. कहा जाता है अकबर ने अपने नए बनाए धर्म दीन-ए-इलाही के आधार पर इलाहाबाद का नामकरण किया. यह भी कहा जाता है कि इलाहाबाद के नाम का मतलब अल्लाह के घर से ही है. और यहां से इलाहाबाद के किले को मुगलिया सल्तनत में सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण दर्जा हासिल था.

इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भी इलाहाबाद का महत्वपूर्ण स्थान रहा. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर बाद आजादी की लड़ाई के संग्राम में भी इलाहाबाद का बहुत बड़ा स्थान रहा. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर महान क्रांतिकारी मदन मोहन मालवीय तक का घर इलाहाबाद में रहा. इस वजह से स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई के दौरान भी इलाहाबाद ने महती भूमिका निभाई. आजादी के बाद राजनीति के अलावा कई क्षेत्रों में इलाहाबाद विश्विद्यालय ने कई विभूतियां दीं जिन्होंने वैश्विक स्तर पर देश का नाम रोशन किया.

अब सरकार के निर्णय से इलाहाबाद का नाम करीब 400 सालों बाद एक बार फिर प्रयाग हो जाएगा. लेकिन इस शहर ने दोनों ही नामों के साथ पर्याप्त ख्याति कमाई है. ये दोनों नाम शहर की धमनियों में रचे बसे हैं. आप इलाहाबाद स्टेशन पर उतरते हैं तो ठीक सामने खुसरोबाग पड़ता है. आप वहां से त्रिवेणी संगम जाते हैं. यहां संस्कृतियों का मेल होता है महज नदियों का नहीं. नाम कुछ भी रख लीजिए...बस इस शहर की रवानी जिंदा रहनी चाहिए.