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नोटबंदी: 'ऐतिहासिक कदम' बन सकता है 'ऐतिहासिक चूक'  

मौजूदा नकदी संकट अर्थव्‍यवस्‍था में पैदा होने वाला प्रभाव एक लहर की शक्‍ल ले लेगा.

Dinesh Unnikrishnan

सरकार को भी अब आम आदमी की चिंता सताने लगी है. वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने जिस तरह वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के मुद्दे पर तमाम दलों के बीच सहमति बनाने का काम किया था. ऐसा ही कुछ वो नोटबंदी को लेकर कर रहे हैं.

आम आदमी की चिंताओं को दूर करने की अपनी कोशिश में मंगलवार को जेटली ने कहा कि सरकार अगले कुछ हफ्तों में गांवों में नई मुद्रा उपलब्‍ध कराने पर जोर देगी. इससे किसानों को रबी मौसम में कुछ राहत मिलने उम्मीद है.


वित्‍त मंत्री ने नोटबंदी को एक 'ऐतिहासिक कदम' बताया. मोदी का यह कदम भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को एक नए मुकाम पर पहुंचाएगा. इस बात में कोई शक नहीं कि मौजूदा परेशानी खत्म होने के बाद नोटबंदी लंबे अवधि में देश को बदलने वाला होगा. लेकिन इस दिशा में यह भी केवल एक कदम ही है.

कैशलेस भुगतान के बारे में जनता को जागरूक करना, भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना, रोजगार के अवसर बढ़ाना और अधिक निवेश आकर्षित करना. नोटबंदी पर अपने कदम के समर्थन में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री अब तक दो बार भावुक हो चुके हैं.

सरकार को यह भी ध्यान रखना होगा कि यदि अर्थव्यवस्था के दूसरे आयामों पर काम नहीं किया गया तो इस ‘ऐतिहासिक कदम’ के ‘ऐतिहासिक चूक’ बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.

केवल आम लोगों के लिए नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी नकदी संकट का लंबा खींचना नकारात्मक असर डालेगा. अर्थव्यवस्था की सुस्त विकास दर इसे पीछे धकेल देगी.

आर्थिक आधार पर सीधी मार 

नई मुद्रा उपलब्‍ध कराने के मामले में जेटली ने प्राथमिकता के तौर पर कृषि क्षेत्र की पहचान कर के ठीक काम किया है. रबी का सीजन सिर पर है और किसानों को न सिर्फ बीज व उपकरण आदि की खरीद के लिए, बल्कि बुनियादी पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भी नकदी चाहिए. छोटे किसानों की कोई न तो कोई नियमित मासिक आय होती है, न ही उनकी कोई खास बचत होती है. किसान क्रेडिट कार्ड से वह जरूर पैसा निकाल सकता है बशर्ते बैंकों और एटीएम में नकदी हो.

यही हाल निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे शहरी मजदूरों का है. नकदी की कमी ने ऐसे हजारों मजदूरों पर असर डाला है, जो दिहाड़ी पर काम करते हैं. अगर ये मजदूर काम पर नहीं आए तो निर्माण गतिविधियों पर असर पड़ेगा जो व्‍यापक अर्थव्‍यवस्‍था पर तत्‍काल प्रभाव डालेगा. इसका बाकी सारे संबंधित क्षेत्रों जैसे सीमेंट उत्‍पादन और बिजली आदि पर भी असर होगा. इसीलिए सरकार को शहरी मजदूरों के बीच भी नकदी पहुंचाने के तरीकों के बारे में सोचना होगा.

यही बात सब्‍जी बेचने वालों, मीट बेचने वालों, खाने-पीने के स्‍टॉल लगाने वाले छोटे दुकानदारों, टैक्‍सीवालों, देश भर के सैकड़ों सहकारी बैंकों और हजारों छोटे-मझोले उद्यमों और स्‍टार्ट-अप पर भी लागू होती है. ये सभी तबके उत्‍पादन श्रृंखला में व्‍यय के रास्‍ते योगदान देते हैं और अर्थव्‍यवस्‍था का जरूरी अंग हैं. इनमें अधिकतर का धंधा नकदी पर ही आश्रित हैं, इसलिए अचानक पुराने नोटों को हटाने और निकासी की सीमा से जुड़े नियमों की इन पर कड़ी मार पड़ी है.

नकदी की कमी के चलते वेतनभोगी तबके के खर्च में भी गिरावट आई है. समस्‍या इस बात से भी बढ़ जाती है कि जिन लोगों के पास नकद राशि है, वे भविष्‍य की असुरक्षा के मद्देनजर उसे खर्च करने से बचेंगे. यह सब इस बात की ओर संकेत करता है कि यह समस्‍या अगर बनी रही, तो जमीनी अर्थव्‍यवस्‍था पर बुरा असर पड़ेगा.

जानकारों की आशंका

नोटबंदी के बाद अंतरराष्‍ट्रीय एजेंसियों ने भी अर्थव्‍यवस्‍था की संभावित सुस्‍ती को लेकर चेतावनी जारी करना शुरू कर दिया है. सोमवार को जारी अपनी एक शोध रिपोर्ट में जापान की ब्रोकरेज फर्म नोमुरा ने कहा है, 'अहम सूचकांक वैसे तो 2017 की पहली तिमाही में स्थिरता का संकेत दे रहे हैं, लेकिन नोटबंदी से पैदा हुआ अस्‍थायी नकदी संकट अल्‍पकालिक अवधि में सुस्‍ती को बढ़ाएगा. विमुद्रीकरण से पहले के आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक गतिविधि पहली तिमाही में शायद स्थिर हो जाए.'

एजेंसी ने कहा कि किसी भी अर्थव्‍यवस्‍था की सेहत की पहचान उसमें हो रहे 'उपभोग' (ब्राइटेस्‍ट स्‍पॉट) से की जाती है. 'अस्‍थायी नकदी अभाव के चलते हमें चौथी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर धीमी होकर 6.5 फीसदी हो जाने का खतरा नजर आ रहा है.'

फोटो: पीटीआई

व्‍यय और उत्‍पादन में सुस्‍ती का एकदूसरे पर असर परस्‍पर होगा और यह प्रक्रिया आर्थिक बहाली की चाल को धीमा कर सकती है. इकनॉमिक टाइम्‍स को दिए एक इंटरव्‍यू में विकास अर्थशास्‍त्री ज्‍यां द्रेज ने कहा है कि 'एक उछाल मार रही अर्थव्‍यवस्‍था में विमुद्रीकरण किसी तेज भागती कार के टायर पर गोली मार देने जैसा है.'

द्रेज कहते हैं, 'इतने बड़े स्‍तर पर विमुद्रीकरण अर्थव्‍यवस्‍था के साथ खेला गया जुआ है. अभी इसके पूरे परिणाम बता पाना मुश्किल होगा. सबसे अच्‍छी सूरत यह हो सकती है कि शुरुआती उथल-पुथल के बाद अर्थव्‍यवस्‍था पटरी पर लौट आएगी और ठीकठाक मात्रा में काले धन को समाप्‍त किया जा सकेगा. सबसे बुरा परिदृश्‍य यह होगा कि लंबे समय के लिए आर्थिक सुस्‍ती छा जाएगी जबकि गैरकानूनी गतिविधि को रोकने के लिहाज से बेहद मामूली नतीजा निकलेगा.'

नोटबंदी के अपेक्षित परिणामों को लैरी समर्स जैसे विश्‍व प्रसिद्ध अर्थशास्‍त्री भी चुनौती दे रहे हैं, जो विश्‍व बैंक के मुख्‍य अर्थशास्‍त्री और अमेरिकी राष्‍ट्रपति के आर्थिक सलाहकार तक रह चुके हैं. उनका कहना है कि इस कदम का अर्थव्‍यवस्‍था पर शायद ही कोई ऐसा असर हो पाए जो लंबे समय तक टिकाऊ हो.

क्‍या करे सरकार ? 

नकदी संकट को कम करने के लिए क्‍या किया जाना चाहिए? न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस के अपने स्‍तंभ में जैसा कि शंकर अय्यर सुझाते हैं, सरकार इस दिशा में कुछ नए किस्‍म के तरीके सोच सकती है. मसलन, वह रीटेलरों को कह सकती है कि वे अपने व्‍यापक आउटलेट तंत्र का इस्‍तेमाल नकदी वितरण के लिए करें, ऑनलाइन भुगतान को बढ़ावा दें और प्‍वाइंट ऑफ सेल्‍स मशीनों (कार्ड से भुगतान करने में काम आने वाली पीओएस मशीनें) पर रियायत दें. अय्यर लिखते हैं कि घरेलू टकसालों में अगर नोट छापने में सरकार समर्थ नहीं है, तो छपाई का काम वह देश के बाहर भी भेज सकती है जैसा 1997-98 में किया गया था.

फोटो:पीटीआई

बुनियादी बात यह है कि मौजूदा नकदी संकट के कारण अगर लंबे समय तक व्‍यय में गिरावट बनी रही और उत्‍पादन सुस्‍त रहा, तो अर्थव्‍यवस्‍था में उससे पैदा होने वाला प्रभाव एक लहर की शक्‍ल ले लेगा जिससे वृद्धि की दर को गहरा आघात पहुंचेगा. सरकार ने अगर नोट छापने और आपूर्ति करने के तरीके निकाल लिए और जल्‍द से जल्द सामान्‍य स्थिति बहाल कर दी, तो आर्थिक सुधारों के मामले में अपनी पुरानी साहसिक छवि को वह दोबारा हासिल कर सकती है. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो इस ऐतिहासिक कदम को बेशक 'ऐतिहासिक चूक' करार दिया जाएगा.