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कैसे हो जाता है 30 का पेट्रोल 70 रुपए का, समझिए पूरा फॉर्मूला

आप दरअसल बस अपने पेट्रोल के लिए ही भुगतान नहीं कर रहे, बल्कि भारी उत्पाद शुल्क भी चुका रहे हैं.

FP Staff

जब केंद्र ने पेट्रोल-डीजल पर हर रोज बदलने वाले दामों को लागू करने का फैसला किया तो जनता की तरफ से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई थीं. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि ये उनके फायदे में रहेगा या नुकसान कराएगा.

लेकिन अब 16 जून के बाद इन तीन महीनों में पेट्रोल-डीजल के दामों में 6-7 रुपए की बढ़ोत्तरी ने लोगों को हैरान कर दिया है. हर रोज घटते-बढ़ते दामों के बीच लोगों ने इसपर ध्यान ही नहीं दिया कि वो तेल के लिए केंद्र को अधिक भुगतान कर रहे हैं.


क्या सच में वैश्विक बाजार के मुताबिक हैं कीमतें?

पेट्रोल की कीमत अभी 70.43 रुपए है, जून में ये 63.23 रुपए था. मतलब कीमतों में लगभग 11.6% की बढ़ोत्तरी हुई है. ये रेट पिछले तीन सालों में सबसे ज्यादा हैं? आखिर इतने वक्त में रेट में इतनी बड़ी बढ़ोत्तरी कैसे आ गई?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रेंट क्रूड यानी दुनिया भर में क्रूड ऑयल की कीमतें तय करने वाले इंडेक्स के अनुसार, मार्च, 2014 में ब्रेंट क्रूड की कीमतें 108.6 यूएस डॉलर प्रति बैरल थीं. भारत में पेट्रोल की कीमत 73.16 रुपए प्रति लीटर था. लेकिन ध्यान दें, 11 सितंबर, 2014 यानी 4 दिन पहले ब्रेंट क्रूड की कीमत थी 54.2 डॉलर प्रति बैरल लेकिन हैरान करने वाली बात है कि अब भी भारत में पेट्रोल की कीमतें 70.30 रुपए थीं. क्यों?

भारत में पिछले तीन महीनों में पेट्रोल-डीजल की कीमतों के उतार-चढ़ाव पर केंद्र का कोई कंट्रोल नहीं है. तेल की कीमतें इंटरनेशनल मार्केट तय कर रहा है. लेकिन इंटरनेशनल मार्केट में तो तेल की कीमतें कम हैं फिर देश में इनकी कीमतों में आग क्यों लगी हुई है?

ऐसा भी नहीं है कि रुपए और डॉलर में बहुत ज्यादा कोई फर्क आया है. 1 मार्च, 2014 में डॉलर के मुकाबले रुपए 61.76 था और 11 सितंबर, 2017 को रुपए 63.90 था. फिर क्यों?

26 जून, 2010 में पेट्रोल और 19 अक्टूबर, 2014 से डीजल के कीमतों को पब्लिक सेक्टर की कंपनियों को तय करना था. इसमें उन्हें मार्केट की कंडीशन, एक्सचेंज रेट और मांग और आपूर्ति की स्थितियों का ध्यान रखना था. लेकिन अब केंद्र का इस पर पूरी तरह से कोई कंट्रोल नहीं है, अब कीमतें निर्धारित करने के साथ-साथ उनको रोज-रोज बदलना भी उनके हाथ में ही है.

उत्पाद शुल्क में बढ़ोत्तरी का है खेल

आप दरअसल बस अपने पेट्रोल के लिए ही भुगतान नहीं कर रहे, बल्कि भारी उत्पाद शुल्क भी चुका रहे हैं. 2014 में, एनडीए की सरकार के आने के बाद से सरकारी खजाने के लिए 2015 की छमाही में सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने का निर्णय लिया. इस वक्त ग्लोबल स्तर पर तेल की कीमतें में भारी गिरावट दर्ज की जा रही थी.

अप्रैल, 2014 में पेट्रोल पर लगने वाला उत्पाद शुल्क 9.8 प्रति लीटर था. जिसमें अब 2015-2016 में कई बार बढ़ोत्तरी होने के बाद अब 21.48 हो गया है. वहीं अप्रैल, 2014 में डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 3.65 प्रति लीटर लगती थी, जो अब 17.33 प्रति लीटर हो गई है.

और एक और जरूरी बात, खुदरे में बिक रही पेट्रोल और डीजल के लिए जितनी रकम का आप भुगतान करते हैं, उसमें आप 55.5 प्रतिशत पेट्रोल के लिए और 47.3 प्रतिशत का टैक्स चुका रहे होते हैं. ये सारे टैक्स केंद्र की ओर से लगाए गए होते हैं. इसमें सबसे मुख्य उत्पाद शुल्क होता है.

लेकिन इन सबके बावजूद, केंद्र ने बढ़ती कीमतों का बड़े हल्के तर्क के साथ बचाव करने की कोशिश की है. पेट्रोलियम मंत्री ने कहा है कि पेट्रोल की रोज-रोज बदलती कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और सरकार अभी इस सिस्टम में कोई बदलाव नहीं करेगी. प्रधान ने ये भी कहा कि बढ़े हुए उत्पाद शुल्क का पैसा समाज की भलाई के कामों में लग रहा है.

लेकिन बढ़ा हुआ उत्पाद शुल्क लोगों का कहीं से भला करता तो नहीं दिख रहा, वो बस बढ़ी हुई कीमतें चुका रहे हैं.