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सरताज अजीज: आप जल्दी आए, लेकिन हमें अच्छा नहीं लगा

सरताज अजीज की मेहमाननवाजी हमारी मजबूरी है लेकिन इससे हम नुकसान में हैं...

Bikram Vohra

पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अजीज के अपने शेड्यूल से पंद्रह घंटे पहले अमृतसर पहुंच जाने की असली वजह क्या है? दूसरी बात यह कि इसकी इजाजत आखिर क्यों दी गई?

एक घंटे से भी कम वक्त की फ्लाइट के बावजूद अगर अजीज इतने पहले अमृतसर पहुंच गए तो इसके पीछे जरूर कोई बड़ी वजह रही होगी. एक सीधा कारण तो भारतीयों को बैकफुट पर लाना हो सकता है. ब्यूरोक्रेट्स को अजीज के बदले शेड्यूल को अकोमोडेट करने के लिए हड़बड़ी में इंतजाम में जुटना पड़ा होगा. जी हां, यहां सबसे अहम यही है– अकोमोडेशन.


हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस अफगानिस्तान से जुड़ा हुआ है और तकनीकी रूप से पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसमें एक प्रतिनिधि हैं. ऐसे में एक प्रतिनिधि के तौर पर अजीज के पाकिस्तान में सरकारी सरपरस्ती में पनपने वाले टेररिज्म पर लगाम लगाने को लेकर बयान देने की क्या उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी?

लेकिन, हुआ क्या. अजीज अचानक से अमृतसर अवतरित हो जाते हैं. इससे पंपोर हमला, उड़ी, सांबा, माछिल में एक जवान का सिर काट लेने जैसी घटनाओं को लेकर देशभर में बना हुआ गुस्सा और इन सभी में पाकिस्तान के सरकारी तंत्र की जिम्मेदारी तय करने का हमारा संकल्प जाहिर नहीं हो पाया.

जॉन एफ केनेडी ने कहा था कि हमें कभी डर के साये में समझौता नहीं करना चाहिए, लेकिन हमें कभी समझौता करने से डरना नहीं चाहिए.

इस नजरिये से देखा जाए तो कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि 70 साल के अविश्वास को खत्म करने का कोई भी मौका छोड़ा नहीं जाना चाहिए और समझौता करने की हर मुमकिन कोशिश होनी चाहिए.

लेकिन, यह भी समझना होगा कि आखिर क्यों इंडिया को ही हमेशा बड़प्पन दिखाना चाहिए. अमृतसर में हुई मीटिंग इस सिलसिले में एक निराशाजनक वाकया है जिसने कई मायनों में आज तक बॉर्डर पर हुई हर घटना का अध्याय बंद कर दिया है.

आज जब आपने हाथ मिलाए और रिश्तों में गर्माहट दिखाई तो यह फिर एक 'मील का पत्थर' बन गया जिसके पीछे की हर कड़वी याददाश्त को भूला हुआ मान लिया गया.

कल तक जिस पाकिस्तान के साथ हम किसी भी तरह के संबंध रखने के विरोधी थे, जिसे दुनिया में अलग-थलग करने में पूरे जी-जान से जुटे थे, आज अचानक उसकी मेजबानी करने के लिए मजबूर हो गए. यह महज संयोग नहीं है कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने इसी दिन को भारत के साथ संबंधों को खत्म नहीं करने का ऐलान किया और बताया कि किस तरह से हम एक जैसे भाई हैं जो कि बड़े दिलवाले हैं वेकिन साथ खेल नहीं रहे हैं. ये हमेशा से चीजों तोड़-मरोड़कर पेश करने में कामयाब हो जाते हैं और एक तार्किक, संतुलित तर्क पेश करते हैं. दूसरी ओर, हम अपने शहीदों का गम मना रहे होते हैं.

बिना किसी गारंटी के पाकिस्तान को इस तरह की छूट दिए जाने के विचार पर किसी को भी तकलीफ होना लाजिमी है. जिस वक्त विदेश मंत्री के प्लेन ने भारतीय धरती छूई, उनका एजेंडा शुरू हो गया.

यह कहना कि बाद में आना, शायद कुछ अभद्रता होती, लेकिन नीति निर्धारकों में से किसी को यह गुणा-भाग जरूर करना होगा कि इंडिया को इससे क्या फायदा हुआ.

यह कुछ वैसा ही है कि हमारे चेहरे पर वार किया गया हो, लेकिन इसका बदला लेने का हमारा वादा सुबह के कोहरे की तरह गायब हो गया हो. सहयोग, आपसी भरोसे पर अब सरताज अब हर जगह बोलेंगे और टीवी टॉक शो हमारे सैन्य ठिकानों पर हुए सभी हमलों पर वही पुराना विश्लेषण करते रहेंगे और यह सब इतिहास की किताबों का हिस्सा बन जाएगा.

उनके वापस लौटने के पहले कम से कम कुछ तो ठोस हासिल कीजिए.