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हार्ट ऑफ एशिया: भारत, पाकिस्तान, आतंकवाद और काफ्काई पटकथा

रिश्तों में उतार-चढ़ाव, पेंचोखम, त्रासदी, बचकानापन और व्यर्थता के मामले में दोनों एटमी ताकतों ने हर हद पार कर दी है

Sreemoy Talukdar

जर्मन लेखक फ्रैंज काफ्का की मौत 1924 में हो गई थी लेकिन ऐसा लगता है कि वे आज भी जिंदा हैं और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों की कहानी लिख रहे हैं.

इन रिश्तों में जितने उतार-चढ़ाव, पेंचोखम, त्रासदी, बचकानापन और व्यर्थता हम देख चुके हैं, वो हमें काफ्का के उपन्यास 'द ट्रायल' की याद दिलाते हैं. इन दोनों एटमी ताकतों ने हर हद पार कर दी है.


कई बार मजाक में कही गई एक लाइन एक हजार शब्दों में कही गई बात पर भारी पड़ती है. @GernailSaab नाम के एक ट्विटर हैंडल से भारत-पाक रिश्तों के बारे में 140 अक्षरों का जो ट्वीट किया गया, वो वाकई इस रिश्ते में आए हल्केपन को बखूबी बयां करता है. ये पाकिस्तान के सेनाध्यक्षों का मजाक उड़ाने वाला, कई बार कड़वा सच कहने वाला पैरोडी अकाउंट है. जिसने नए सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा की भारत नीति का मजाक बेहद चुटीले अंदाज में उड़ाया.

इस ट्विटर हैंडल से लिखा गया कि मेरी भारत पर विदेश नीति इस तरह होगी, 'पहले दिन हम कहेंगे कि बातचीत के लिए राजी हैं. दूसरे दिन हम सीमा पर बिरादर यानी आतंकवादी भेज देंगे. तीसरे दिन भारत पलटवार करेगा और चौथे दिन हम कहेंगे कि भारत ने कोई हमला नहीं किया.'

पाकिस्तान की दगाबाजी और भारत की मुश्किल

भारत-पाक रिश्ता इसी दौर से गुजर रहा है. इस ट्वीट से पाकिस्तान की दगाबाजी और भारत की मुश्किल दोनों ही साफ होती है. जाहिर है दोनों देशों के रिश्ते एक ऐसे दुष्चक्र के शिकार हैं, जिसमें खून-खराबा है, बेकार की बातों का दौर है. बयान और पलटवार हैं. और ये सिलसिला बरसों से जारी है.

अमृतसर में जब चालीस से ज्यादा देश अफगानिस्तान के भविष्य पर चर्चा के लिए जुटे हैं, तब भारत-पाकिस्तान आपसी रिश्तों की उधेड़बुन में हैं.

पाकिस्तान का दावा है कि वो भारत से बातचीत के लिए राजी है. उसने नवाज शरीफ के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अज़ीज़ को अमृतसर भेजा है. इसके जरिए वहां का विदेश मंत्रालय ये जताना चाहता है कि वो रिश्ते सुधारने के लिए बहुत गंभीर है और पाकिस्तान को अफगानिस्तान में शांति बहाली की भी फिक्र है. भले ही वो चुपके-चुपके तालिबान को मदद पहुंचा रहा हो.

हार्ट ऑफ एशिया कांफ्रेस में शामिल होने पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी और अफ़गानिस्तान के राष्टपति अशरफ़ ग़नी (Source: Twitter)

पाकिस्तान ऐसे अपराधी की तरह बर्ताव कर रहा है जिसे न तो अपने किए का कोई पछतावा है और न ही वो अपनी आदतें बदलना चाह रहा है. भारत में हिंसा और आतंकवादी घटनाओं की साजिशें रचने और उन्हें लगातार अंजाम देने के बावजूद वो खुद को बातचीत के लिए तैयार बताता है. पाकिस्तान ने इशारों में कहा है कि वो भारत के साथ अमृतसर में द्विपक्षीय बातचीत के लिए तैयार है और अब ये बातचीत हो या नहीं, इसका फैसला भारत को करना है.

पाकिस्तान का दुस्साहस चौंकाने वाला

पाकिस्तान का ये दुस्साहस चौंकाने वाला है. खास तौर से तब जब नगरोटा में सेना के ठिकाने पर हमले को अभी ज्यादा दिन नहीं गुजरे हैं. इस हमले में 7 लोग शहीद हुए थे. इसके बाद भी कश्मीर के कुलगाम में आतंकी हमला हुआ जिसमें दो आम नागरिक मारे गये.

ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान भारत का मखौल उड़ा रहा है. उसे चुनौती दे रहा है कि जो करना हो कर लो. और भारत ये अपमान बार-बार बर्दाश्त करने के लिए लाचार है. पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार शायद भारत के सब्र का इम्तिहान ले रही है. या फिर शायद उसे लगता है कि मोदी सरकार अपनी ही पाबंदियों से घिरी है, वो उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती. हाल ही में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद ऐसा लगता है पाकिस्तान बार-बार आतंकी हमले करके भारत को उकसाने की कोशिश कर रहा है.

ट्रम्प के राज में एशिया में चीन की दादागिरी 

पाकिस्तान के इस आत्मविश्वास की दो वजहें हैं. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के साथ ही पाकिस्तान को अपने पुराने दोस्त चीन के साथ रिश्तों पर ज्यादा ऐतबार होने लगा है. पाकिस्तान को लगता है कि ट्रम्प के राज में एशिया में चीन की दादागीरी चलेगी. ऐसे में उसके अच्छे दिन होंगे. खास तौर से भारत के साथ रिश्तों में वो अपनी मनमानी चला सकता है.

भारत फिलहाल यही कहकर काम चला रहा है कि मौजूदा माहौल में पाकिस्तान से बातचीत संभव नहीं. शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप को कई बार दोहराना पड़ा कि आतंकवादी घटनाओं के बीच बातचीत नहीं हो सकती.

भारत के इस रुख में दो दिक्कतें हैं.

पहला तो ये कि गोली और बोली साथ-साथ नहीं चल सकते, ये जुमला इतना घिस-पिट गया है, इतना रटा गया है कि अब इसका किसी पर कोई असर नहीं पड़ता. पाकिस्तान में तो भारत के इस बयान का मजाक बनता होगा. वहां राजनयिक कहते होंगे कि भारत के पास इस बयान के सिवा कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं. पाकिस्तान को इस बात से जरा भी फर्क नहीं पड़ता कि भारत बातचीत के लिए राजी नहीं.

पाकिस्तान से बातचीत का राग

दूसरी बात ये कि पाकिस्तान को पता है कि भारत में ही कुछ नेता हैं जो अपने प्रधानमंत्री पर पाकिस्तान से बातचीत का दबाव डालेंगे. नगरोटा के फौरन बाद ऐसा देखने को भी मिला. अब्दुल्ला बाप-बेटे फारूख़ और उमर ने पाकिस्तान से बातचीत का राग अलापना शुरू कर दिया. दोनों नेताओं की उपयोगिता भारत की राजनीति में उतनी ही है जितना उनके बयानों के विरोध में दिखता है. फारूख़ अब्दुल्ला कहते हैं कि भारत को पाकिस्तान के साथ बातचीत का माहौल बनाना चाहिए. वहीं उमर अब्दुल्ला ने ये कहने में देर नहीं लगाई कि नगरोटा हमला इसलिए हुआ क्योंकि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत को अपनी ताकत का गुमान हो गया था. मतलब इस आतंकवादी घटना की जिम्मेदारी पाकिस्तान की नहीं, भारत की है.

कांग्रेस की करतूत

अभी देश के लोग उमर अब्दुल्ला को पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का प्रवक्ता या भारत के एक राज्य का पूर्व मुख्यमंत्री समझने की दुविधा से उबरते कि विपक्षी दल कांग्रेस ने अपनी करतूत से जता दिया कि देश को निराश करने में उसका कोई सानी नहीं.

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि, 'भारत को पाकिस्तान से बातचीत की हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए.' दिग्विजय का कहना था कि मेरी पार्टी और मेरा हमेशा से मानना रहा है कि पड़ोसी देशों से बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रहना चाहिए.

शुक्रवार को पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन की किताब के विमोचन के मौके पर एक और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने सरकार को सलाह दी कि वो पाकिस्तान से ताल्लुक बनाए रखे, भले ही कितना भी तनाव हो. चिदंबरम के मुताबिक हम अपने पड़ोसी बदल नहीं सकते. हमें उनके ही साथ रहना है तो हमें उनकी आदत डाल लेनी चाहिए. हमें सावधान रहना चाहिए, लेकिन बातचीत भी जारी रखनी चाहिए.

भारत को सबसे ज्यादा पहुंचाते हैं नुकसान

पाकिस्तान के साथ छिड़ी नकली जंग में ऐसे बयान वो हथियार हैं, जो भारत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को नुकसान पहुंचाते हैं. क्योंकि इन बयानों से लगता है कि भले ही पाकिस्तान कितनी साजिशें कर ले, भारत को हमेशा उससे बात करनी चाहिए.

ऐसे बयान भारत के हितों पर गहरी चोट करते रहेंगे. इनसे आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई भी कमजोर होती है. भले ही हार्ट ऑफ एशिया कांफ्रेंस में आतंकवाद के खिलाफ तगड़ा बयान जारी हुआ हो, जब देश के भीतर से ऐसे बयान आएंगे तो हमारी स्थिति और कमजोर ही होगी.

पाकिस्तान को ये बात बखूबी पता है. इसलिए वो बातचीत के लिए हमेशा तैयार होने की बात करता है और हमारे खिलाफ साजिशों को अंजाम देता रहता है. उसे पता है कि उसकी वकालत करने वाले हिंदुस्तान में बहुत से लोग हैं.