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यूपी में स्वास्थ्य सेवाएं 'राम भरोसे': इलाहाबाद हाईकोर्ट

राज्य की खराब स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस सुधीर अग्रवाल और अजीत कुमार ने कहा, 'अगर एक शब्द में हमें राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को परिभाषित करना हो तो इसके लिए राम भरोसे कहा जा सकता है'

FP Staff

दो दिन पहले ही यूपी में झांसी के एक अस्पताल में भर्ती शख्स के साथ अस्पताल ने बेहद अमानवीय हरकत की थी. किसी हादसे में उस शख्स का पैर कट गया था. अस्पताल में लेटे उस शख्स के कटे पैर को उसके तकिया के तौर पर इस्तेमाल किया गया था.

राज्य की स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति से नाराज इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि राज्य में स्वास्थ्य सुविधाएं 'राम भरोसे' है और यह लोगों की अपनी किस्मत पर निर्भर करता है.


एक और अमानवीय घटना

इससे पहले यूपी के अस्पताल में एक मजदूर महिला आई थी, जिसकी अस्पताल ने अनदेखी की. उस महिला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जीने का अधिकार सहित दूसरे बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन हुआ है.

स्नेहलता सिंह को गर्भाशय से जुड़ी बीमारी थी. जब वह इलाज के लिए प्राथमिक उपचार केंद्र पर पहुंची तो बिना इलाज के उन्हें वापस भेज दिया गया.  याचिकाकर्ता को पुरकंजी पब्लिक हेल्थ सेंटर में 13 फरवरी 2007 को दाखिल किया गया था. वह गर्भवती थीं. डिलीवरी के तुरंत बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया. उस महिला को घाव के साथ ही घर भेज दिया गया. बच्चे की डिलीवरी के बाद ब्लैडर के बीच एक छेद होता है, जिसे बिना ठीक किए ही डिस्चार्ज कर दिया गया.

हालांकि उसे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल रेफर किया गया. मई 2007 तक उसका कोई इलाज नहीं हुआ था. फिर मुजफ्फरनगर के एक अस्पताल ने वजाइनल में घाव डायग्नॉस किया लेकिन पैसे की कमी होने के कारण उसका इलाज नहीं हुआ. फरवरी 2008 में आखिरकार याचिकाकर्ता का इलाज लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में हुआ.

इससे पहले बद्तर स्वास्थ्य सेवाओं का एक उदाहरण गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में देखने को मिला था. तब ऑक्सिजन की कमी से करीब 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई थी.

राज्य की खराब स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस सुधीर अग्रवाल और अजीत कुमार ने कहा, 'अगर एक शब्द में हमें राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को परिभाषित करना हो तो इसके लिए राम भरोसे कहा जा सकता है.'