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हरियाणा के गांव में मुस्लिम दाढ़ी-टोपी पर प्रतिबंध: संविधान की मूल भावना से खेलने वाला फैसला

हरियाणा के रोहतक जिले के टिटौली गांव की पंचायत ने अजीबो-गरीब फैसला सुनाया है.

Yusuf Ansari

हरियाणा के रोहतक जिले के टिटौली गांव की पंचायत ने अजीबो-गरीब फैसला सुनाया है. इस फैसले के मुताबिक मुस्लिम समुदाय के लोग न दाढ़ी रखेंगे न टोपी पहनेंगे और न ही सार्वजिनक जगहों पर नमाज पढ़ेंगे. इतना ही नहीं इस गांव के मुसलमान अपने बच्चों के नाम भी उर्दू-अरबी के बजाय हिंदी भाषा में ही रखेंगे. यह फैसला टिटौली की पंचायत में लगभग 500 लोगों की मौजूदगी में लिया गया है. बताया जा रहा है कि इस पंचायत में कई लोग मुस्लिम लोग भी शामिल थे और उनकी सहमति से ही यह फैसला लिया गया है.

गौरतलब है कि टिटौली गांव के सरकारी स्कूल के पास 22 अगस्त को ईद-उल-अजहा के मौके पर एक बछड़े की हत्या कर दी गई थी. इसका आरोप गांव के ही निवासी यामीन खोकर पर पर लगा है. बीते मंगलवार को इसी घटनाक्रम पर पंचायत बुलाई गई थी. गोवंश की हत्या से नाराज पंचायत ने ईद-उल-अजहा के दिन बछड़ा काटने के आरोपी यामीन खोकर को गांव निकाला देकर गांव में प्रवेश पर आजवीन प्रतिबंध लगा दिया और गांव में रहने वाले मुसलमानों को अपनी मजहबी पहचान छिपा कर रहने का फैसला सुनाया. बताया जा रहा है कि गोवंश की हत्या के मामले के बाद पंचायत की ही बनाई कमेटी ने ये प्रस्ताव रखे जिन्हें पंचायत ने आम सहमति से मंजूर कर लिया. पंचायत के सभी फैसलों में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी अपनी सहमित जाहिर की है.


पंचायत का यह फैसला संविधान के कई प्रावधानों का सीधे-सीधे उल्लंघन करता है. इससे एक बात और सामने आती है कि देश में सांप्रदायिकता की जड़ें उखड़ने के बजाय और गहरी हो रही हैं. संविधान देश के हर नागरिक को किसी भी धर्म को मानने और उसके हिसाब से आचरण करने, अपना हुलिया रखने, पोशाक पहने की आजादी देता है.

देश की सर्वोच्च न्यायलय भी कई बार कह चुकी है कि नागरिकों को दी गई धार्मिक आजादी बुनियादी अधिकारों का हिस्सा हैं इसे किसी भी बहाने से छीना नहीं जा सकता है. सवाल पैदा होता है कि भला कोई पंचायत ऐसा फरमान कैसे सुना सकती है जिससे एक समुदाय विशेष को उसकी मजहबी पहचान छिपाने को मजबूर किया जाए.

पंचायत के इस फैसले के दो पहलू हैं. कहा जा रहा है कि पंचायत में शामिल 500 लोगों में मुसलमान भी शामिल थे जिनकी सहमति से ये फैसला लिया गया है. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि फैसला खुद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही लिया है. दोनों ही परिस्थितियों में यह फैसला हैरान करने वाला है. अगर कोई व्यक्ति गोवंश की हत्या का आरोपी है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो इसके लिए उसके पूरे समुदाय को प्रताड़ित करने की कोई वजह नहीं है.

ऐसा करना समुदाय विशेष के प्रति नफरत को दर्शाता है. इससे साफ जाहिर है कि गांव और आस-पास को लोगों को मुसलमानों की अलग पहचान पर ही आपत्ति है. गोवंश की हत्या के बहाने बहुसंख्यक समाज ने इस फैसले के जरिए अपना कुंठा निकाली है.

अगर मुस्लिम समाज ने खुद अपनी मर्जी से ये फैसले किए हैं तो यह और भी शोचनीय स्थिति है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुस्लिम समाज कितने दबाव में रहा होगा कि उसे अपनी सुरक्षा के लिए अपनी पहचान तक बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. हरियाणा के अलग-अलग हिस्सों से मुसलमानों और दलितों के दमन की खबरें अक्सर आती रहती हैं. राज्य की इंडियन नेशनल लोकदल और कांग्रेस की सरकारों के दौरान भी ऐसी खबरें आती थी लेकिन बीजेपी की सरकार बनने के बाद ऐसी घटनाओं में तेजी आई है.

करीब तीन महीने पहले हरियाणा के गुरुग्राम में सड़क और खाली पड़ी सरकारी जमीन पर जुमे की नमाज पढ़ने को लेकर विवाद हुआ था. हिंदू संगठनों ने इसे लेकर काफी बवाल मचाया था. विवाद के बाद सरकार ने हरियाणा में खुली जगहों और सड़कों पर नमाज पढ़ने पर पाबंदी लगा दी थी.

तब हरियाणा सरकार की सार्वजनिक स्थलों पर सिर्फ एक समुदाय के धार्मिक आयोजन पर पाबंदी लगाने को लेकर लेकर काफी आलोचना हुई थी. इसे लेकर केंद्र की मोदी सरकार को भी आलोचना का शिकार होना पड़ा था. ऐसी घटनाएं और उन पर बीजेपी की सरकारों की कार्रवाई से मोदी सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास’ नारे की हवा निकल जाती है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

हरियाणा में मुसलमानों के साथ मजहबी आधार पर भेदभाव की घटनाओं की लंबी फेहरिस्त है. कई साल पहले कैथल में मस्जिद में तोड़फोड़ की कई घटनाए हुई थीं. तीन महीने पहले गुरुग्राम में खुली जगह पर नमाज पढ़ने को लेकर हुआ था. विवाद के बाद राज्य सरकार के खुली जगहों पर नमाज पढ़ने पर लगा दी थी. इसके बाद कई और जगहों पर भी नमाज पढ़ने के लेकर विवाद हुआ. जुलाई में करनाल में मस्जिद में नमाज पढ़ते हुए लोगों पर हमला हुआ. एक युवक की दाढ़ी कटवाने का मामला भी हरियाणा में ही सामने आया था. जुलाई महीने में ही अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले के विरोध में हुए बजरंग दल के विरोध प्रदर्शन के दौरान भारत माता की जय नहीं बोलने के आरोप में एक मुस्लिम व्यापारी को पीटने का मामला भी सामने आया था.

पिछले दो-तीन महीने मे हुई इस तरह की घटनाएं इस तरफ इशारा करती हैं कि हरियाणा में एक खास पैटर्न के तहत मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. टिटौली गांव में ईद-उल-अजहा के दिन ही गोवंश काटने के आरोपी यामीन खोखर पर उसी के घर में घुस कर ठीक उसी तरह हमला किया गया था जैसे दो साल पहले उत्तर प्रदेश के दादरी के बिसहड़ा गांव में अखलाक पर हमला हुआ था. फर्क सिर्फ इतना है कि अखलाक मारा गया था और यामीन बच गया. संभव है कि यामीन पर हुए हमले से गांव के मुसलमान पहले से ही दबाव महसूस कर रहे हों. इसी दबाव में उन्होंने अपनी मजहबी पहचान से समझौता करने वाला पंचायत का फैसला कुबूल किया हो.

अगर धार्मिक नजरिए से देखा जाए तो लंबी दाढ़ी और सिर पर टोपी इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. सेना की नौकरी में दाढ़ी रखने की जिद पर मुस्लिम नौजवान सुप्रीम कोर्ट में केस हार चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का तरफ से पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद ने माना था कि लंबी दाढ़ी इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इसी तर्क के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि सेना में नियमों के विपरात जाकर मुसलमानों को धार्मिक आजादी के नाम पर लंबी दाढ़ी रखने की छूट नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद मुसलमानों पर कई जगह दाढ़ी कटवाने के लिए दबाव बनाने की खबरें सामने आईं है.

पिछले कुछ साल से देश भर से इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं जिनसे लगता है कि मुसलमानों को उनकी मजहबी पहचान छिपाने के लिए मजबूर किया जा रहा है. हरियाणा की यह घटना भी इसी तरफ इशारा करती है. यह हरियाणा में बीजेपी की राज्य सरकार के साथ ही केंद्र की मोदी सरकार के लिए भी यह घटना चुनौती है. ऐसी घटनाओं से मुस्लिम समाज के बीच बीजेपी की छवि सुधरने के बजाय और बिगड़ती है.

ऐसी घटनाओं से बीजेपी की सरकारों की छवि न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी खराब होती है. लगातार हो रही इन घटनाओं से विदेशों में बीजेपी के साथ देश की छवि भी खराब हो रही है. ये घटनाएं न सत्ताधारी बीजेपी के लिए अच्छी हैं और न ही समाज और देश ले लिए.

मंत्री हों, मुख्यमंत्री हो या फिर प्रधानमंत्री सभी संविधान को अक्षुण्ण रखने की शपथ लेकर कुर्सी पर बैठते हैं. अगर किसी राज्य में पंचायत के नाम पर कुछ लोग किसी समुदाय विशेष पर संविधान की मूल भावना के खिलाफ जाकर कोई फैसला थोपते हैं तो उस फैसले को पलटकर नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार की भी बनती है. इस मामले में हरियाणा के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री दोनों को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए.