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हरियाणा: रेप कैपिटल बनने से पहले कुछ करिए सरकार

खट्टर साहब, आप 'राजनीति करें, न करें' की 'राजनीति' पॉलिटिक्स तक ही रहने दीजिए, वर्ना इस देश को रेप कैपिटल के आगे बढ़कर कोई नई 'उपमा' ढूंढने में वक्त नहीं लगेगा

Tulika Kushwaha

हरियाणा हमारे देश का सबसे अजूबा राज्य है. इस राज्य में रात-दिन सब लड़कियों के लिए नर्क बने हुए हैं. यहां दिन दहाड़े लड़कियां उठा ली जाती हैं और रेप करके कहीं फेंक दी जाती हैं. कभी किसी नाले से उनकी लाश मिलती है तो कहीं ऑनर किलिंग के नाम पर कत्ल कर दी जाती हैं.

आप मुझे रेसिस्ट कह लीजिए लेकिन बचपन से ही मुझे हरियाणा नाम से कभी अच्छा एहसास नहीं हुआ. कभी-कभी वहां से स्पोर्ट्स के फील्ड में निकल रही कुछ लड़कियों के नाम सुनाई पड़ते थे लेकिन उसके साथ-साथ ये टैग भी लगा होता था 'हरियाणा जैसे राज्य से खेल के क्षेत्र में निकल रहीं लड़कियां राज्य के लिए अच्छा संदेश हैं.' इस अच्छे संदेश के पीछे का वो अंधेरा मुझे इससे ज्यादा दिखाई देता था. स्कूल से ही हरियाणा में महिलाओं और पुरुषों के बीच का अनुपात कम देखा. फिर रही सही कसर खाप पंचायतों के ऑनर किलिंग ने पूरी कर दी थी.


6 दिनों में 8 रेप

पिछले 6 दिनों में हुए 8 रेप और 1 हत्या ने फिर हरियाणा के उस अंधेरे की याद दिला दी है. 6 दिनों में 8 रेप... इसके अलावा शुक्रवार को भी फतेहाबाद और गुड़गांव में भी दो लड़कियों के अगवा करने की खबर आईं. इसके इतर शुक्रवार को ही एक भजन और रागिनी गाने वाली फोक सिंगर के हत्या की भी खबर आई. कुछ महीने पहले हरियाणा की मशहूर सिंगर हर्षिता दहिया की भी कुछ बदमाशों ने सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी थी. क्यों? हरियाणा पिछले इन दिनों में इतना खतरनाक क्यों हो गया है? लड़कियों के लिए नर्क में क्यों बदलता जा रहा है हरियाणा?

प्रतीकात्मक तस्वीर (रायटर इमेज)

सरकारी रिकॉर्ड भी हरियाणा के मामले में और डराते ही हैं. 2016 में आई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में हरियाणा देश में गैंगरेप की घटनाओं में सबसे आगे था. 2015 में साल भर में कम से कम 204 गैंगरेप हुए थे. और ये बस गैंगरेप के आंकड़ें हैं. इसके अलावा दहेज हत्या में भी हरियाणा तीसरे नंबर पर रहा था. यहां साल 2015 में दहेज हत्या के 243 केस हुए.

जो बात सबसे ज्यादा डराती है वो ये है कि हम धीरे-धीरे ऐसी घटनाओं के आदी होते जा रहे हैं. निर्भया हादसे के बाद का जोश न जाने कब का ठंडा पड़ चुका. लगता है वहां अब चिंगारी भी नहीं बची, जो रोज हो रहे ऐसे घिनौने हादसों से सुलग सके.

रेप के लिए फांसी की सजा से कम कुछ नहीं

रेप की बस एक सजा होनी चाहिए- फांसी. क्या हमें ये बताने की जरूरत है कि रेप पूरे होशो-हवास में किया जाने वाला अपराध है? या ये समझाना पड़ेगा कि एक रेपिस्ट को पता होता है कि वो क्या कर रहा है? हर तरह के अपराधों का अलग स्वभाव होता है. मर्डर पर आप अपराधी के मोटिव और हालात पर बहस कर सकते हैं लेकिन एक लड़की का रेप कर उसका मर्डर कर देने वाले शैतान से बहस की क्या जरूरत है? क्या ये हमें ये बिल्कुल साफ कर देने की जरूरत नहीं है कि रेप एक सोच-समझकर किया गया घिनौना अपराध है और ये इतना ज्यादा घृणित अपराध है, जिसके लिए फांसी की सजा ही होनी चाहिए.

फांसी की सजा से दोषी को अपने किए पर पछतावा हो न हो, पोटेंशियल रेपिस्ट्स की हिम्मत तोड़ने में मदद जरूर मिल सकती है. और वैसे भी हमारे देश में फांसी की सजा का प्रावधान है और रेप के दोषियों के लिए पहले से फांसी की मांग होती रही है. अब इसको हकीकत में बदलने का वक्त है.

हरियाणा की 'व्यस्त' सरकार

हरियाणा की सबसे बड़ी कमी उसके सामाजिक रूप से पिछड़ा होना हो सकती है. और यही वजह वहां के सरकारों का रोड़ा बनती हुई दिखती है. यहां लोग अपनी सोच पर पड़े झालों को हटाने को तैयार नहीं लगते. ऊपर से नेताओं की बयानबाजी अलग. इस हफ्ते राज्य के सीएम मनोहर खट्टर का मुंह खोलने के लिए 3-4 रेप केसों की जरूरत पड़ी. उन्होंने कहा कि 'ये दुर्घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं, लेकिन इसपर राजनीति न करें.' हम थक चुके हैं ये सब कुछ सुनकर. अब और नहीं. राजनीति न करने की अपील अब इतनी घिस-पिट चुकी है कि इससे बेहतर है कि सारे नेता चुप ही रहें.

खट्टर साहब, आप 'राजनीति करें, न करें' की 'राजनीति' पॉलिटिक्स तक ही रहने दीजिए, वर्ना इस देश को रेप कैपिटल के आगे बढ़कर कोई नई 'उपमा' ढूंढने में वक्त नहीं लगेगा और ये 'ताज' आपके ही सिर रखा जाएगा. क्योंकि सबको याद रहेगा कि जब आपके राज्य में हर रोज लड़कियां उठाई जा रही थीं और रेप करके झाड़ियों में फेंकी जा रही थीं तो आप किसी विशेष समुदाय की आहत भावनाओं की चिंता कर फिल्म बैन कर रहे थे. क्योंकि सरकारें भले नीतिगत स्तर पर गलतियां न करें लेकिन सोशल प्रैक्टिस पर काबू करने के लिए जनता उनका ही मुंह देखती है.