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हमारे देश की किस्मत यही है, कानून सोता रहेगा और रेप होते रहेंगे?

पिछले साल राज्यसभा को एक प्रश्न के जवाब में बताया गया की सरकार के पास देश में होने वाले रेप के मामलों के लिए कोई अलग डाटा ही नहीं है. इसके लिए सरकार क्या सफाई देगी

Aditi Sharma

हरियाणा के जींद जिले के एक घर में बच्ची का जन्म हुआ. घरवालों ने बड़े लाड़-प्यार से बेटी को बड़ा किया. बाहर की दुनिया से अंजान इस बच्ची ने आंखो में एक सपना संजोया. सपना था डॉक्टर बनने का और मां-बाप का नाम रोशन करने का. पर उसे क्या पता था की बाहर कुछ ऐसे दरिंदे घात लगाए बैठे हैं जो उसे अपना शिकार बनाने की ताक में हैं. ये मासूम और कोई नहीं बल्कि 15 साल की वही लड़की थी जिसका शव कुछ दिनों पहले अर्धनग्न अवस्था में नाले के पास मिला. डॉक्टरो का कहना है कि उसके साथ ठीक वैसी ही हैवानियत हुई , जैसी 2012 में निर्भया मामले में हुई थी. लड़की के घरवालों का कहना है की वो डॉक्टर बनना चाहती थी.

हरियाणा में बढ़ते रेप मामलों का किस्सा यहीं नहीं रुका. इसके बाद एक मामला पानीपत के गांव उरनाल में भी सामने आया. इस मामले में आरोपियों ने हैवानियत की हद पार कर दी. 2 दरिंदों ने पहले बच्ची की हत्या की और फिर उसकी लाश के साथ चार घंटो तक बलात्कर करते रहे.


वहीं तीसरा मामला फरीदाबाद से सामने आया जहां चलती गाड़ी में 2 घंटे तक गैंगरेप होता रहा और पुलिस सूचना मिलने के बाद भी लड़की की इज्जत बचाने में नाकाम रही. लड़की ऑफिस से लौट रही थी जब फरीदाबाद में नेशनल हाइवे पर राजीव गांधी चौक से सरेआम स्कॉर्पियो गाड़ी में उसे अगवा कर लिया गया. वहां खड़े लोगों ने कंट्रोल रूम पर फोन कर पुलिस को सूचना भी दी. लेकिन घटना के 24 घंटे बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे.

प्रतीकात्मक तस्वीर

क्या सुरक्षित है युवा पीढ़ी

ये सारे इलाके देश की राजधानी दिल्ली से सटे हुए हैं. वो दिल्ली जहां देश भर से छात्र कुछ बड़ा करने का सपना लिए आते हैं. इन सब मामलों को देखते हुए एक आज एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या ये युवा पीढ़ी सुरक्षित है?

इस वक्त हिंदुस्तान में एक बहुत ही अहम मुद्दे पर चर्चा चल रही है. चर्चा है कि आखिर पाकिस्तान भारत के खिलाफ अपनी साजिशों से बाज क्यों नहीं आता.

निसंदेह ये बेहद अहम मुद्दा है. पर क्या देश अपने भीतर ही पल रहे दरिंदो से सुरक्षित है. इसके लिए प्रशासन क्या कदम उठा रहा है. क्या वजह है 24 घंटे पहले रेप की खबर मिलने के बावजूद पुलिस आरोपियों को पकड़ने में नाकाम रही .

युवाओं की बात तो छोड़िए हरियाणा जैसी जगह पर  हालात इतने खराब हैं कि यहां छोटी बच्चियों तक को नहीं बख्शा जाता. कहीं घर में अकेली मिली 3 साल की बच्ची के साथ रेप होता है तो कहीं एक तंबू में मां के पास सो रही बच्ची को अगवा कर उसका रेप कर दिया जाता है. पर हैरानी तो तब होती है जब इस मामले से जुड़े आरोपियों के नाम सामने आते हैं. कई मामलों में ये आरोपी 14-15 साल के लड़के होते हैं. अब इसका जिम्मेदार किसको ठहराया जाए.

पिछले  साल राज्यसभा को एक प्रश्न के जवाब में बताया गया की सरकार के पास देश में होने वाले रेप के मामलों के लिए कोई अलग डाटा ही नहीं है. इसके लिए सरकार क्या सफाई देगी. क्या ये इतना बड़ा मामला नहीं है कि इसके लिए अलग डाटा बनाया जाए. अगर प्रशासन के पास इससे जुड़ी कोई रणनीती ही नहीं है तो वो इस समस्या से निजात कैसे पाएगा.

इस समस्या को लेकर क्यों बरती जा रही है लापरवाही

कुछ समय पहले चंडीगढ़ में एक रेप का मामला सामने आया था जिसमें एक लड़की रात में ऑटो में बैठी और ऑटो में बैठे दूसरे लोगों ने उसके साथ रेप किया. इस पर बीजेपी सांसद किरण खेर ने एक हैराना करने वाला बयान दिया था. किरण खेर का कहना था कि लड़की को अपनी सुरक्षा ध्यान में रखते बुए ऐसे ऑटो में बैठना ही नहीं चाहिए था, जिसमें पहले से ही कुछ लड़के बैठे हों. क्या किरण खेर के इस बयान का ये मतलब समझा जाए कि भई समाज को तो हम सुधार नहीं सकते तो बेहतर है कि लड़कियां खुद ही चार दिवारी के अंदर कैद होकर रह जाएं.

एक के बाद एक रेप की इतनी वारदातें सामने आईं तो हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को भी अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी. उन्होंने कहा कि हम इन मामलों में सख्त कार्रवाई करेंगे और जहां चूंक हो रही है, उसे सुधारेंगे. ये बयान तो प्रशासन ने 2012 में निर्भया मामले के बाद भी दिया था. लेकिन उसके बाद ऐसे मामले थमने की बजाए और ज्यादा बढ़ गए.

दुनिया की नजर में भारत धीरे-धीरे एक समृद्ध देश बनेन की ओर बढ़ता जा रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी विदेशों का दौरा कर भारत की आर्थिक नीतियों को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं. देश भर में युवाओं को आगे बढ़ाने की बात हो रही है. ये सब चीजें ठीक हैं. जो हो रहा है वो सब अच्छा हो रहा है. लेकिन एक सवाल जो बार-बार खटकता है, वो ये है कि क्या इन युवाओं में देश की लड़कियां शामिल हैं? सब कहते है हां शामिल है. लेकिन कैसे? जब लड़कियां देश में सुरक्षित ही नहीं है तो फिर वो देश की युवा पीढ़ी में शामिल होकर आगे बढ़ने का सपना कैसे देख सकती हैं. मोदी का नारा है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. पर जब देश में ऐसे हादसे कम नहीं होंगे, ऐसे में लोग बच्चियों को पढ़ाना तो दूर उन्हें पैदा करने से भी डरेंगे.