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क्या घूंघट के साथ ही छोरियां छोरों को पीछे छोड़ेंगी?

गीता फोगट ने कहा, ऐसी सोच के कारण ही महिलाएं आगे नहीं बढ़ पातीं

Nidhi

वैसे तो हमारे देश में महिलाओं, लड़कियों को लेकर समाज की मानसिकता ऐसी ही रही है कि लड़कियां सिर्फ घर के काम कर सकती हैं. लड़कियां खाना-पकाने और सिलाई-बुनाई ही कर सकती हैं.

बहुत मुश्किल से उनकी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दिया जाता है. पढ़ाई-लिखाई के बावजूद भी उन्हें बचपन से घरेलू काम करने की ट्रेनिंग दी जाती है. भारत के कुछ एक राज्यों में तो लड़कियों की शिक्षा का अनुपात और भी नीचे है.


लेकिन ऐसी मानसिकता के बावजूद लड़कियां बहुत आगे बढ़ रही हैं. बहुत पिछड़े राज्यों से, बहुत सारी मुसीबतों के बावजूद लड़ते हुए, संघर्ष करते हुए अपना और अपने देश का नाम ऊंचाइयों तक ले जा रही हैं.

ऐसे ही हरियाणा की बात करें जहां लड़कियों के जन्म-दर से लेकर शिक्षा तक का अनुपात बेहद चिंताजनक है. ऐसे में इन दिनों हरियाणा से कई लड़कियां हैं जिन्होंने समाज की पिछड़ी सोच को मुंहतोड़ जवाब दिया है. खेल, मिस इंडिया कॉन्टेस्ट और सबसे मुश्किल परीक्षा आईएएस तक में अपनी जगह बनाई है.

वाकई छोरियां छोरों से कम नहीं हैं

गीता फोगाट की फेसबुक वॉल से साभार

याद करिए साल 2016 की सुपर हिट फिल्म ‘दंगल’ और बॉलीवुड के मि परफेक्शनिस्ट आमिर खान का वो डायलॉग ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हे के.’ वाकई क्या हरियाणा की छोरियां किसी भी तरह से छोरों से कम हैं. लेकिन क्या हरियाण, देश को गीता-बबीता जैसी रेसलर दे पाता अगर वे लड़कियां निकर और टीशर्ट के बजाय घूंघट डाले घूमतीं.

यह सवाल इसलिए क्योंकि हाल में हरियाणा की कृषि संवाद नामक पत्रिका के ताजा अंक में घूंघट वाली महिला की तस्वीर छपी है. महिला अपने सिर पर चारा लेकर जा रही है और कैप्शन में लिखा है, 'घूंघट की आन-बान, म्हारे हरियाणा की पहचान.’

अब किसकी बात मानी जाए 'म्हारी छोरियां, छोरों से कम है के' या फिर 'घूंघट की आन-बान, म्हारे हरियाणा की पहचान.’

ऐसा लिखते ही हरियाणा सरकार ने हरियाणा की उन तमाम बेटियों के संघर्षों को नकार दिया जिन्होंने अपने हिम्मत, लगन और मेहनत से विभिन्न क्षेत्रों में राज्य और देश का नाम ऊंचा किया है.

कम से कम घूंघट में रहकर ‘दंगल’ तो नही लड़ी जाती और न ही ‘इंटरनेशनल मेडल्स’ जीते जा सकते हैं. फिर चाहे वो गीता, बबीता हों या साक्षी मालिक. घूंघट लगा के कैसे कोई अंतरिक्ष जा सकती है, कैसे कोई कल्पना चावला बन सकती है.

बांये से दाएं - तीसरे नंबर पर रहीं बिहार की प्रियंका कुमारी, पहले नंबर पर हरियाणा की मानुषी और दूसरे स्थान पर जम्मू-कश्मीर की सना दुआ

मिस इंडिया तक की दौड़ घूंघट के साथ हो पाती क्या?

भारत में जन्मीं अमेरिकी अंतरिक्षयात्री दिवंगत कल्पना चावला हरियाणा से ही थी. हाल ही में हरियाणा की लड़की मानुषी चिल्लर को फेमिना मिस इंडिया 2017 का ताज पहनाया गया.

सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि हमारे प्रधानमंत्री का प्रिय कैम्पेन ‘सेल्फी विद डॉटर’ के असफल होने की पूरी संभावना है क्योंकि अभी तक किसी मोबाइल कंपनी ने ऐसा कैमरा नहीं बनाया है जो घूंघट के पार सेल्फी ले ले.

इस पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की तस्वीर छपी है. महिला की तस्वीर के साथ छपे कैप्शन पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि यह सत्ताधारी बीजेपी सरकार की पिछड़ी हुई सोच दिखाता है.

घूंघट करना हरियाणा की मूल संस्कृति नहीं

वरिष्ठ मंत्री अनिल विज ने इस बात की सफाई देते हुए कहा, 'बीजेपी सरकार ने महिला सशक्तीकरण के लिए कई कदम उठाए हैं और वह इस बात का समर्थन नहीं कर रही कि महिलाओं को 'घूंघट' रखने के लिए विवश किया जाना चाहिए.'

हालांकि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने इस बात के विरोध में कहा, 'महिलाओं का घूंघट करना हरियाणा की मूल संस्कृति नहीं है. यह प्रथा विदेशी आक्रमणों के बाद घुसपैठियों के डर से शुरू हुई. दक्षिण भारत में कोई पर्दा प्रथा नहीं थी. इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि बीजेपी सरकार आगे की सोचने के बजाय और राज्य को आगे ले जाने के बजाय बीत चुके समय में चली जाना चाहती है.’

साल 2016 में ही हरियाणा के फरीदाबाद के आस पास बहुत से गांव की महिलाओं, महिला सरपंचों ने सरकारी अधिकारियों के सामने यह शपथ ली थी कि वह अपने गांव से परदा प्रथा और अन्य सामाजिक बुराइयों को हटाने की कोशिश करेंगी.

कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में स्‍वर्ण पदक जीतने वाली हरियाणा की स्‍टार रेसलर गीता फोगाट ने इस विज्ञापन को उस मानसिकता की उपज बताया है. गीता ने कहा, ऐसी सोच के कारण ही महिलाएं आगे नहीं बढ़ पातीं. सोशल मीडिया पर भी कई लड़कियों ने इसका विरोध किया है.