मुंबई हाई कोर्ट ने अपने ताजा फैसले से साफ कर दिया कि कर्ज वसूलो लेकिन प्यार से.
कोर्ट ने कहा है कि पैसा चुकाने के लिए बार-बार कहना और लगातार मौखिक और शारीरिक प्रताड़ना करने को खुदकुशी के लिए उकसाने के बराबर माना जाएगा.
न्यायमूर्ति ए एम बदर ने दो साहूकार गुरुनाथ गवली और संगीता गवली की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही जिसमें उन्होंने खुदकुशी के लिए उकसावे के मामले में रिहाई की मांग की थी.
अपने इसी आदेश में कोर्ट ने साहूकारों की रिहाई की याचिका को खारिज कर दिया है.
मौखिक और शारीरिक प्रताड़ना भी खुदकुशी के लिए उकसाना है
दोनों पर शहर में रहने वाले उमेश बोंबले पर हमला करने और उसे धमकाने तथा खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप है. उमेश ने सितंबर 2014 में खुदकुशी कर ली थी.
उमेश की पत्नी सुनीता ने दोनों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.
अभियोजक के मुताबिक पीड़ित ने दोनों ने 19 लाख रुपए का कर्ज लिया था. जब वह कर्ज चुकाने में नाकाम रहा तो दोनों ने कई मौकों पर उसे मौखिक रूप से प्रताड़ित किया और उस पर हमला भी किया.
न्यायमूर्ति बदर ने कहा, ‘एक विवेकपूर्ण पारिवारिक शख्स के साथ जब दिन और रात ऐसा व्यवहार होगा तो वह निश्चित रूप से खुदकुशी के बारे में सोचेगा.’