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बर्थडे बॉय: सहारा सुप्रीमो को क्यों ग्लैमर पसंद है!

जमानत के बाद सहारा सुप्रीमो के तेवर भले ही पहले जैसे हो लेकिन वो जलवा नहीं रहा

Pratima Sharma

सुब्रत रॉय, एक ऐसा शख्स जिसने फर्श से अर्श तक का सफर पूरा किया. जीने का अंदाज और शान-ओ-शौकत किसी राजा से कम नहीं. कारोबार की इतनी सही पकड़ कि जिस धंधे में भी हाथ डाला सोना बन गया. रियल एस्टेट, स्पोर्ट्स, मीडिया एवं एंटरटेनमेंट, होटल, फाइनेंस, रिटेल, पावर और हेल्थ केयर. हर कारोबार ने अपने विजनरी मास्टरमाइंड के लिए मुनाफा उगला. लेकिन जब वक्त ने पलटी खाई तो सहारा सुप्रीमो को तिहाड़ जेल की हवा खानी पड़ी. देश विदेश में अपनी प्रॉपर्टी कौड़ियों के भाव बेचनी पड़ी. रॉय को तकरीबन दो साल से ज्यादा वक्त जेल में गुजारना पड़ा. अपने मन का राजा कहे जाने वाले रॉय को जेल की चारदीवारी से निकलने के लिए अदालत की मर्जी का इंतजार करना पड़ा.


निवेशकों का पैसा ना लौटाने के मामले में रॉय मार्च 2014 में जेल गए थे. फिलहाल वे जमानत पर बाहर हैं और 10 जून को अपना 69वां जन्मदिन मना रहे हैं. उनका यह जन्मदिन बेहद खास है. हर बार अपना जन्मदिन सहारा परिवार के साथ धूम-धाम से मनाने वाले रॉय के लिए इस बार यह मौका तीन साल बाद आया है. उनका जन्मदिन इसलिए भी खास है क्योंकि जन्मदिन के ठीक 9 दिन बाद 19 जून 2017 को मुंबई के एंबी वैली की कुर्की मामले में सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई है. इस सुनवाई में सहारा श्री को व्यक्तिगत तौर पर मौजूद रहने का भी आदेश दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने सहारा श्री को जमानत देते हुए साफ शब्दों में हिदायत दी थी कि 15 जून 2017 तक अगर वो पैसे जमा नहीं करवाते हैं तो वे एकबार फिर सलाखों के पीछे होंगे. अदालत ने यह भी कहा था कि उनके चेक बाउंस नहीं होने चाहिए. एंबी वैली मामले में 17 अप्रैल 2017 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एंबी वैली की नीलामी का आदेश सुनाया था. इस सुनवाई के बाद सहारा ने नीलामी रोकने के लिए 1500 करोड़ रुपए और 552 करोड़ रुपए के चेक जमा करवाए थे. सुप्रीम कोर्ट इन्हीं दो चेक की बात कर रहा है.

मुंबई के लोनावला में मौजूद एंबी वैली किसी सपनों के शहर से कम नहीं है. इसकी कुल वैल्यू 34,000 करोड़ रुपए की है. सहारा रियल एस्टेट के इस छोटे से शहर में नदी और पहाड़ के बीच बंगले बने हुए है. इस वैली को देखकर इस बात का अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है कि सहारा सुप्रीमो के जीने का अंदाज क्या होगा.

खेलों से जुड़ने का शौक

शौक बड़ी चीज है और यह बात सुब्रत रॉय पर पूरी तरह फिट बैठती है. उन्हें स्पोर्ट्स का शौक है. क्रिकेट के अलावा उन्होंने तीरंदाजी, रेसलिंग, बॉक्सिंग जैसे खेलों को भी खूब बढ़ावा दिया है. ओलंपिक और एशियन खेलों में मेडल लाने वाले खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए वे दिल खोलकर इनाम भी देते थे. 2012 के लंदन ओलंपिक में गए खिलाड़ियों के लिए रॉय ने खास तौर पर इनाम तय किया था. उन्होंने कहा था कि गोल्ड मेडल जीतने पर 5 किलो, सिल्वर मेडल लाने पर 3 किलो और कांस्य मेडल पर 2 किलो सोना देंगे.

क्रिकेट से उन्हें खास लगाव है. अपना यह शौक पूरा करने के लिए वह 2001 से ही भारतीय क्रिकेट टीम के साथ किसी न किसी तरह से जुड़े रहे. 2010 से 2013 तक सहारा भारतीय क्रिकेट टीम का टाइटल स्पॉन्सर भी रहा. आईपीएल में भी सहारा सुप्रीमो की दिलचस्पी रही. 2010 में सहारा एडवेंचर्स स्पोर्ट्स ने 1700 करोड़ रुपए में 10 साल के लिए आईपीएल की नई टीम पुणे वॉरियर्स खरीदी थी. यह उस वक्त की सबसे महंगी टीम थी. सहारा ने 94 मैचों से होने वाली आमदनी के आधार पर इसकी बोली लगाई थी. लेकिन फ्रेंचाइजी की पूरी फीस नहीं चुका पाने के कारण 2013 में यह टीम उनके हाथ से निकल गई.

ग्लैमर के मुरीद

सहारा सुप्रीमो को फिल्मी कलाकारों, नेताओं और बड़े खिलाड़ियों से घिरे रहना पसंद था. अमिताभ बच्चन, मुलायम सिंह यादव, अमर सिंह, कपिल देव से इनकी दोस्ती सालों तक स्क्रीन पर नजर आती रही. हजारों करोड़ों के सेलेब्रिटी बिजनेसमैन के लिए यह बिल्कुल सामान्य था. सितारों से घिरे 'सहारा सुप्रीमो' पर दुनिया की नजर टिके, ऐसा खुद रॉय चाहते थे.

'सहारा: द अनटोल्ड स्टोरी' में तमल बंदोपाध्याय ने रॉय के साथ हुई बातचीत का जिक्र किया है. बंदोपाध्याय ने जब रॉय से इस शौक के बारे में पूछा तो उन्होंने इसका दिलचस्प जवाब दिया. रॉय ने कहा था, 'देखिए, ह्यूमन साइकोलॉजी का हमें हर तरह से ख्याल रखना होगा. जो दिखता दमदार है उस पर भरोसा बढ़ता है. जब बड़ी हस्तियां आपके साथ दिखती हैं तो आप भी कद्दावर दिखते हैं, आपके प्रति लोग आशवस्त हो जाते हैं. ग्लैमर पॉजिटिव रोल निभाता है. फिल्मी सितारों के लिए लोग पागल रहते हैं. ग्लैमर पर लोगों का भरोसा है.'

सहारा ग्रुप के राजा

रॉय की दरियादिली सिर्फ ग्लैमरस पार्टियों के लिए ही नहीं थी. अपने कर्मचारियों के लिए भी वह किसी राजा से कम नहीं थे. एक वाकया संस्थान के लोगों में काफी चर्चित है. सहारा में काम करने वाले एक बढ़ई रिटायर हो रहे थे. उसी हफ्ते सहारा सुप्रीमो दफ्तर आए तो बढ़ई ने बड़े रुआंसे होकर कहा कि वह यहां से कभी नहीं जाना चाहते. रॉय ने उसी वक्त एचआर को फोन करके यह कहा कि उस बूढ़े बढ़ई को कभी नौकरी से हटाया ना जाए. वह जब तक सहारा में काम करना चाहे करते रहें.

नब्बे के दौर में बड़ी संंख्या में गांव के लोग सहारा के एजेंट बन रहे थे. इससे बड़ी तादाद में लोगों को नौकरियां मिली थीं. एक समय रेलवे के बाद सबसे ज्यादा नौकरी सहारा ने ही दिया था. 2004 में टाइम मैगजीन ने सहारा को देश का दूसरा सबसे बड़ा एंप्लॉयर बताया था.

वक्त ने सब बदला

सहारा सुप्रीमो का यह अंदाज तब तक जारी रहा जब तक वह सेबी के निशाने पर नहीं आ गए. सेबी ने सहारा समूह के चेयरमैन सुब्रत रॉय और दो अन्य निदेशकों को समूह की दो कंपनियों 'सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन' और 'सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉर्प लिमिटेड' द्वारा 31 अगस्त, 2012 तक निवेशकों का 24,000 करोड़ रुपए लौटाने को कहा था. सहारा यह करने में नाकाम रहा. माना जाता है कि रॉय ने गलत नाम पते पर ब्लैकमनी को व्हाइट करने का काम किया था. लिहाजा उनके पास कोई सही आदमी नहीं था, जिसे वे निवेशक मानकर पैसे लौटा सकें. कई बार मौके देने के बादजूद रॉय यह पैसा नहीं लौटा पाए. और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें 4 मार्च 2014 को तिहाड़ भेज दिया गया था. रॉय को बड़ी कोशिशों के जमानत मिली. जमानत के बाद उनके तेवर भले ही पहले जैसे हो लेकिन वो जलवा नहीं रहा.