भारत में देश की 45 फीसदी विकलांग आबादी अशिक्षित है, और जो शिक्षित हैं, वे केवल 10वीं तक ही पढ़े हैं.
जनगणना-2011 के मुताबिक पूरी आबादी में अशिक्षित दिव्यांगों की आबादी 26 फीसदी है, और इनमें शिक्षित केवल 59 फीसदी हैं जो 10वी पास हैं.
जानकार मानते हैं कि देश में शिक्षा व्यवस्था अब भी दिव्यांगों के मुताबिक नहीं है, और सरकारी नीतियों में असंमजस रहा है.
दिव्यांग इसलिए बीच में ही छोड़ रहे हैं पढ़ाई
दिल्ली के ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क में विकलांगता अधिकार के निदेशक राजीव रतिरी कहते हैं कि स्कूलों की ऊंची बिल्डिंगें, क्लास-रूम, टीचर्स, टॉयलेट की व्यवस्था, शिक्षा संस्थानों की बनावट, पाठ्यक्रम, किताबें ये सब स्कूलों में आज भी दिव्यांगों की सुविधा के हिसाब से नहीं विकसित हो पाए हैं.
व्हील-चेयर, बैसाखियों पर चलने वाले के लिए एक समय के बाद स्कूल आना-जाना ही चुनौती बन जाता है, तो वहीं नेत्रहीनों के लिए समस्या पाठ्यक्रम और टीचर्स की होती है, यही वजह है कि एक समय के बाद दिव्यांगों पढ़ाई छोड़ देते हैं.
सरकार अब भी नहीं है तैयार
रतिरी कहते हैं कि दिसंबर 2016 में संसद में पास हुआ विकलांग व्यक्ति के अधिकार अधिनियम– 2016 में बहुत कुछ बदला गया है, लेकिन शिक्षा को लेकर कुछ ठोस कानून दिखाई नहीं देते. वे कहते हैं कि इस अधिनियम में भी सरकार केवल प्रयास करने की बात कह रही है, जिसमें बहुत बदलाव की संभावना कम ही दिखाई देती है.