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यह गुटखा गैंग है जनाब, यहां गुटखा खाना और थूकना मना है

झारखंड में बोकारो के चास इलाके में एक गुटखा गैंग लोगों को इससे होने वाली बीमारियों के बारे में बताता है

Ravi Prakash

‘का महाराज. कबसे गुटखा खाते हैं. जानते हैं न. केतना (कितना) हानिकारक है गुटखा. मुंहे (मुंह) खराब हो जाएगा. अब सूरज भगवान की कसम खाके (खाकर) बोलिए कि आज से गुटखा नहीं खाइएगा. लीजिए अब इस शपथ पत्र पर दस्तखत कीजिए.’

हर रविवार और बुधवार की सुबह बोकारो के चास इलाके से गुजरते वक्त आपको ऐसे संवाद सुनने को मिलेंगे.


गुटखा के खिलाफ मुहिम

यहां के संतोष बरनवाल और उनके साथी इस इलाके को लोगों को गुटखा खाने से रोकते हैं.

उन्हें बताया जाता है कि गुटखा खाने से मुंह का कैंसर होता है. इससे जान भी जा सकती है. घर की अर्थव्यवस्था तो बिगड़ती ही है. इसलिए लोगों को गुटखा खाने से परहेज करना चाहिए.

क्या है गुटखा गैंग का काम?

शपथ पत्र दिखाते हुए संतोष बरनवाल

इनलोगों ने एक संस्था बनायी है. नाम है ‘गुटखा गैंग’. संतोष बरनवाल ने बताया कि गुटखा गैंग की शुरुआत 31 दिसंबर 2014 को 6-7 लोगों के साथ की गई थी.

अब इसके 500 सदस्य हैं. अब तक इनलोगों करीब 3000 लोगों को गुटखा खाने से रोका है. इसकी शपथ दिलाई है कि अब वे गुटखा नहीं खाएंगे.

बोकारो के भीड़-भाड़ वाले चास उपनगर से शुरू यह अभियान अब आस-पास के क्षेत्रों में भी चलाया जाने लगा है.

गुटखा गैंग का क्या है काम?

चास धर्मशाला चौक पर मौजूद यूनिक सैलून के कर्मचारी भी हर रविवार गुटखा गैंग की टी-शर्ट पहन कर काम करते हैं. ताकि लोगों को इससे होने वाली हानि से अवगत कराया जा सके. संतोष कहते हैं- रविवार को लोग सैलून में ज्यादा आते हैं. इसलिए सैलून के कर्मचारियों को इस गैंग में शामिल किया गया है.

गुटखा गैंग के सदस्य

बोकारो के जाने-माने डॉक्टर रतन केजरीवाल इस गैंग से शुरू से जुड़े हैं.

उन्होंने बताया कि चिकित्सक होने के कारण वे कई ऐसे लोगों को जानते हैं जिनकी सेहत और परिवार दोनों की बर्बादी के पीछे की वजह गुटखे की लत थी. ऐसे मे गुटखा गैंग के प्रयासों से लोगों को काफी फायदा हो रहा है.

क्या है 'गैंग' का राज?

नाम के साथ ‘गैंग’ क्यों. संतोष कहते हैं कि ‘गैंग’ शब्द आकर्षित करता है. जैसे- गुलाबी गैंग.

यहां हमारी मुलाकात चंद्रमोहन अग्रवाल से होती है. वे व्यवसायी हैं और किसी समय गुटखा के शौकीन रहे हैं.

चंद्रमोहन अग्रवाल

उन्होंने बताया, 'मैं बहुत गुटखा खाता था. मेरी पत्नी इसके लिए मना करती थी. लेकिन, लत ऐसी कि छूटती ही नहीं थी. इसी दौरान एक दिन गुटखा गैंग वालों ने मुझे समझाया. अब मैं गुटखा नहीं खाता और लोगों से अपील करता हूं कि वे भी गुटखा-शराब आदि से बचें.'

उनकी पत्नी वंदिता अग्रवाल कहती हैं, 'मैं अब खुश हूं. क्योंकि, इन्होंने गुटखा खाना छोड़ दिया. इसस सेहत और पैसे दोनों की बचत हो रही है.'

झारखंड फाउंडेशन के निदेशक व वरिष्ठ पत्रकार डा विष्णु राजगढ़िया ने बताया कि गुटखा गैंग को झारखंड नागरिक सम्मान दिया गया है.

समाज में ऐसे प्रयासों की आवश्यकता है जो बगैर किसी सरकारी मदद के लोगों को जागरुक करने मे लगे हैं.