view all

पंचकूला उपद्रव, 25 अगस्त 2017: जब धराशायी दिखा प्रदेश

चाहे पुलिस हो या सरकार दोनों को पता था कि गुरमीत राम रहीम को मानने वालों की तादाद किस हद तक है

Dr. Sudhir Kumar Jha

मैं भी 25 अगस्त को घंटों टीवी से चिपका रहा. पूरा करियर वर्दी में बीता है, इसलिए मैंने भी खुद को उसी पुलिस का हिस्सा महसूस किया, जिस पर गुस्सा उतारा जाता रहा. अविश्वास, गुस्सा, पीड़ा और दोबारा गुस्से के बीच अपमानित और शर्म महसूस करता रहा. आंखों के सामने जिस उपद्रव का सीधा प्रसारण हो रहा हो, उसका अनुमान लगाना आसान होता है और इसलिए उसे रोकना भी. तो गलती कहां हुई?

चाहे पुलिस हो या सरकार दोनों को पता था कि गुरमीत राम रहीम को मानने वालों की तादाद किस हद तक है. (प्रीफिक्सिंग बाबा दुनिया के लिए एक अपमान होंगे.) समूचे हरियाणा में लोग धन और ताकत लेकर उनके साथ खड़े हो गए. जनता के जेहन में यह बात भी थी कि राम रहीम के संपर्क ऊंचे हैं. खासकर बीजेपी के साथ. जिसकी हरियाणा और केंद्र में सरकार है. ऐसा लगता था कि राम रहीम को कोई परास्त नहीं कर सकता. 25 अगस्त को फैसला आएगा. यह बात भी बहुत पहले से पता थी. कल जो कुछ हुआ, उसका अनुमान लगा लिया जाना चाहिए था.


मेरे जैसा सिपाही भी यह समझ सकता था कि राजनीतिक व्यवस्था हिचकिचाते हुए प्रशासन को भ्रम और अनिश्चिय की स्थिति में रखे हुए थी. जब तक बेशकीमती जानें नहीं गईं, करोड़ों का नुकसान नहीं हुआ, मुख्यमंत्री खट्टर चुप्पी साधे रहे. इतने बड़े पैमाने पर आगजनी और बर्बरता यह गवाही देने के लिए पर्याप्त है कि निर्णय लेने वाली ताकत पंगु हो चुकी थी.

थाना प्रभारी, एसपी और डीजीपी पर ही मुख्य रूप से कानून-व्यवस्था टिकी होती है. एसपी और डीएम अगर मिलकर काम करें तो सामान्य तौर पर कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए न सिर्फ उनके पास कानूनी ताकत होती है, बल्कि उन्हें आम लोगों का समर्थन भी होता है. लेकिन, घटना वाले दिन बड़े पैमाने पर अतिरिक्त बलों को बुलाया गया. न केवल जिलों में, बल्कि राज्यों के बीच भी खुफिया जानकारियां घंटों के आधार पर साझा की गईं.

बुद्धिमानी यही थी कि पुलिस और सरकार के उच्च पदस्थ लोगों को ये सूचनाएं पड़ोसी राज्यों तक पहुंचानी चाहिए थीं और यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि अतिरिक्त पुलिस बल समय से पहले पहुंच जाए. हरियाणा और पंजाब की राजधानी होने का फायदा चंडीगढ़ को इस रूप में था कि उसके हाथों में दोनों राज्यों का सुरक्षा कवच था. चाहे अभियुक्त को सजा होती या वह बरी कर दिया जाता. दोनों ही स्थितियों में फैसले वाले दिन सिरसा और पंचकुला से भारी संख्या में लोगों के पहुंचने की उम्मीद थी. 100 किमी, 50 किमी, 25 किमी और आखिरकार 5 किमी तक कई सुरक्षा घेरे बनाकर भीड़ को पहुंचने से रोका जा सकता था. उसके बाद वाहनों की खोज होती और उनका प्रवेश रोक दिया जाता.

एक बार जब भीड़ जमा हो जाती है, तो बिना बल प्रयोग के उसे तितर-बितर करना मुश्किल होता है. यहीं गलती हुई. पुलिस के एक्शन में आने से पहले ही लोगों को भीड़ में बदलने का मौका दे दिया गया और पुलिस भी आधे-अधूरे मन से एक्शन में आई. मेरी पत्नी तक ने पूछा कि क्यों नहीं मैंने वाटर कैनन का सहारा लिया मानो मैं ही वहां का इंचार्ज हूं. लेकिन, वह सही थी. जहां आंसू गैस से बात नहीं बनती, वाटर कैनन भीड़ को तितर-बितर करने में प्रभावी होता है. बाद में मैंने पुलिस फायरिंग की कुछ आवाजें सुनी. लेकिन, तब तक थोड़ी देर हो गई थी.

केंद्रीय गृह मंत्रालय क्या कर रहा था? कानून-व्यवस्था को राज्य का विषय मानकर बैठने के बजाए उसे बाकी राज्यों के साथ तालमेल और नजदीकी नज़र बनाए रखने का काम करना चाहिए था. अगर राज्य का खुफिया तंत्र फेल हो गया था तो उसकी अपनी आईबी क्या कर रही थी? मोदी की छवि खराब की गयी है क्योंकि खट्टर को उन्होंने ही चुना था और यह खट्टर की तीसरी बड़ी असफलता है. इस अशांति के बीच बीजेपी सांसद साक्षी महाराज टीवी पर आए और राम रहीम का समर्थन किया, जिसका खामियाजा पार्टी को वोट के तौर पर भुगतना पड़ेगा, ऐसा मुझे लगता है.

- डॉ सुधीर कुमार झा, रिटायर्ड डीजीपी, बिहार