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गुरमीत राम रहीमः बुराई के इन भगवानों के लिए हम और हमारा समाज दोषी है

बाबा उस भारतीय मनोविज्ञान और सोच का उत्पाद है जो कि आसानी से धर्म, आस्था, पैसा, ताकत और सेलेब्रिटी प्रचारों से प्रभावित हो जाते हैं

Sandipan Sharma

बुराई एक दिन में बढ़कर तैयार नहीं होती. यह एक बीमारी की तरह से हमारे इर्दगिर्द बढ़ती है. इसके लक्षणों की उपेक्षा की जाती है और स्वार्थी समाज इसकी तब तक उपेक्षा करते हैं जब तक बहुत देर नहीं हो जाती.

आसुमल (आसाराम बापू ), सुखविंदर (राधे मां) जैसों की तरह से ही गुरमीत राम रहीम एक उदाहरण है कि किस तरह से हमारा समाज बुराई की जकड़ में फंसा हुआ है. समाज अंधविश्वास, लालच, डर और अवसरवाद के लिए इस बुराई को अपने हाथों से पाल रहा है.


बाबा उस भारतीय मनोविज्ञान और सोच का उत्पाद है जो कि आसानी से धर्म, आस्था, पैसा, ताकत और सेलेब्रिटी प्रचारों से प्रभावित हो जाते हैं. बाबा का जन्म उसी भारतीय भ्रष्ट ईकोसिस्टम में हुआ और उसमें ही उसकी परवरिश हुई.

कैसे फलते-फूलते हैं ये बाबा?

रेप का दोषी साबित हुआ और मर्डर के आरोपों का सामना कर रहा यह बाबा किस तरह से एक अति शक्तिशाली बुराई में तब्दील हो गया? जवाब आसान हैः वह हर वैसी चीज दे रहा था जिसकी भारतीयों को जरूरत है. उसके अनुयायियों और भक्तों के लिए वह उनकी सभी दिक्कतों का वन-स्टॉप सॉल्यूशन है. सैंटा क्लॉज की तरह से वह लोगों को वह हर चीज मुहैया करा रहा था जिसकी महत्वाकांक्षा इन लोगों में होती है.

भारत में, बाबा बनना पोंजी स्कीम के जैसा है. यह उस तर्ज में आगे बढ़ता है जिसमें दूसरे को गिराकर फायदा हासिल किया जाता है और यह सब एक मल्टी-लेवल चेन के जरिए होता है. बाबाओं को अपने भक्तों के अंधविश्वास, डर और अगाध श्रद्धा का फायदा होता है.

अनुयायी बाबा की ताकत और दबदबे, रुतबे, नेताओं के उनके यहां लगाए जाने वाले चक्करों को देखकर प्रभावित होते हैं. नेता अपने वोटों के लालच में इन बाबाओं के यहां हाजिरी देना शुरू कर देते हैं. और यह सड़ी हुई व्यवस्था इस सबसे और आगे बढ़ती है.

सामान्य भक्त मूलरूप में मूर्ख होते हैं. वे आंख बंद कर एक शख्स पर भरोसा करते हैं कि उसके अंदर हजारों-लाखों लोगों की जिंदगियों को शक्ल देने की ताकत है. इन अंधभक्तों को यह नहीं पता होता है कि हमारी जिंदगियां अपने निजी चुनावों, फैसलों, समझौतों और कोशिशों का नतीजा होती हैं.

वे जीवन को बेहतर बनाने के लिए इन बाबाओं के हाथ में खुद को सौंप देते हैं. उन्हें लगता है कि इन बाबाओं की ताकत और जादू से उनकी सब समस्याएं दूर हो जाएंगी. ये अनुयायी नौकरी, शादी, बच्चे, पैसा, सुरक्षा, शांति, ज्ञान और मोक्ष की तलाश में पूरी तरह से इन चालाक बाबाओं के चक्कर में पड़ जाते हैं और सारी जिंदगी इस भ्रम में गुजार देते हैं कि उनके जीवन में जो भी अच्छा हो रहा है वह सिर्फ बाबा की वजह से है.

लालचियों का गिरोह होते हैं ये बाबा

पोंजी स्कीमों में जिस तरह से मोटा पैसा कमाने वालों की झूठी कहानियां फैलाई जाती है उसी तरह से इन बाबाओं के जादू और चमत्कार की कहानियां भी लोगों तक फैलाई जाती हैं ताकि इनका दायरा समाज में ज्यादा से ज्यादा बढ़ सके. ये बाबा आस्था का धंधा चला रहा हैं और बहुस्तरीय फ्रॉड में शामिल हैं.

जैसा कि फ़र्स्टपोस्ट ने पहले तर्क दिया था, इन बाबाओं का बड़ा तबका या तो सर्विस प्रोवाइडर, ब्रोकर, नेटवर्कर या लालची लोगों के समूह का मुखिया होता है जो कि एक-दूसरे के फायदे के लिए काम करता है. कुछ बाबा तो बेहद बुद्धिमान होते हैं और ये योगिक आसन, होमोसेक्सुएलिटी से लेकर कैंसर तक का इलाज करने वाली नेचुरल दवाएं या लाइफस्टाइल मंत्रों के जरिए लोगों को शांति मुहैया कराने, ज्ञान देने जैसे काम करते हैं.

ऐसे दुर्लभ बाबाओं में रजनीश जैसे बाबा आते हैं जो कि संभोग से समाधि तक सबकुछ ऑफर करते हैं. राजनेता, सेलेब्रिटीज और दबदबे वाले लोग इन बाबाओं के चक्कर में फंस जाते हैं.

इन फर्जी बाबाओं के लिए ये लोग उनका प्रचार-प्रसार करने वाले और रिक्रूटरों के तौर पर काम करते हैं और इन्हें नैतिक और सामाजिक वैधता प्रदान कराते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इनके जाल में फंसाया जा सके.

राजनेताओं के सरेंडर की कीमत चुकाते हैं आम लोग

मिसाल के तौर पर, राम रहीम के केस को देखिए. थोड़ी भी अहमियत रखने वाला हर भारतीय राजनेता, जिनमें प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, या तो सार्वजनिक तौर पर इनकी तारीफ कर चुके हैं या उनके चरणों पर झुकते दिखाई दिए हैं. डेरा के सामने नतमस्तक नजर आए हैं ताकि उनके समर्थकों का वोट मिल सके.

2014 में चुनाव जीतने के तुरंत बाद हरियाणा के चीफ मिनिस्टर मनोहरलाल खट्टर बड़ी संख्या में मंत्रियों और विधायकों के साथ बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंचे. जब इस तरह के राजनेता और सेलेब्रिटी इन क्रिमिनल्स और धोखेबाजों के यहां हाजिरी लगाएंगे तो आम भारतीय और गरीब के पास क्या संदेश जाएगा? निश्चित तौर पर जनता भी इन बाबाओं की ताकत से प्रभावित होंगे और वे इस सिस्टम का हिस्सा बनने के लिए उत्साहित होंगे.

दुर्भाग्य से जब प्रभावशाली लोग खुद ही आस्था का धंधा चलाने वाले इन ट्रेडर्स और ब्रोकर्स के यहां मत्था टेकते हैं तो आम लोगों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. हरियाणा के मुख्यमंत्री 2014 में डेरा के सार्वजनिक तौर पर बीजेपी को चुनावों में सपोर्ट करने के चलते उनके कर्ज से दबे हुए थे.

ऐसे में वह ऐसे शख्स के खिलाफ कोई कार्रवाई कैसे कर सकते थे जिसने अतीत में उनका साथ दिया था और भविष्य में भी उन्हें उनके साथ की जरूरत थी. खट्टर ने डेरा के उन पर और पार्टी पर किए गए अहसान को चुकाया है. लेकिन, उनके हाथों पर डेरा समर्थकों द्वारा मारे गए लोगों का खून लगा है. वह अपनी आत्मा को राक्षस के हाथों बेचने के गुनाहगार हैं, वह भी एक बार नहीं बल्कि तीन-तीन बार.

लेकिन, केवल खट्टर को ही इसका दोषी नहीं ठहराया जा सकता. हर कोई जो बाबा का समर्थन करता है, हर कोई जिसने उन पर लगे रेप, हत्या, यौन शोषण के आरोपों पर आंखें बंद कर लीं, वह भी उतना ही दोषी है.

क्यों सबक नहीं सीखते लोग?

डेरा जाकर बाबा का आशीर्वाद लेने, उनके पैर छूने से इन नेताओं ने सिर्फ उन्हें क्लीन चिट दे दी, बल्कि इस बात को भी बल दिया कि नैतिकता कुछ भी नहीं है, बाजार में जो बिक रहा है वह डर और लालच है.

गुजरे कुछ सालों में कई बाबा और माताएं सड़े हुए फलों की तरह से टूटकर गिरे हैं. आसाराम रेप और यौन शोषण के आरोपों में जेल में हैं. हिसार के रामपाल अपराधों के सिलसिले में जेल में हैं. कुछ महीने पहले मुंबई की राधे मां को उनके फर्जी भगवान होने के चलते बुलाया गया था. इसके बावजूद भारतीय लगातार ऐसे बाबाओं के फ्रॉड में फंसते रहते हैं.

इसकी मुख्यतौर पर वजह यह है कि एक ऐसा देश जिसमें आलोचनात्मक सोचने, वैज्ञानिक सोच, गुणवत्ता वाली शिक्षा का अभाव हो और जो धर्म और आस्था के नाम पर किसी भी धारा में बहने के लिए तैयार हो, उसे अपना आखिरी ठिकाना ऐसे बाबाओं और माताओं के यहां ही मिलता है.

पैसे और सेक्स के भूखे, जमीन हासिल करने के लिए हर हथकंडा अपनाने वाले, नेटवर्कर्स, ब्लैकमेलर्स और अपराधियों की ऐसी पौध पूरे देश में पनप रही है. भगवा चोला पहने, संत होने का दावा करने वाले, खुद को मां, बापू और पैगंबर के रूप में बेच रहे हैं. इनमें से हरेक के सैकड़ों-हजारों अनुयायी हैं.

जैसा मैंने पहले भी कहा, हमारे मनोविज्ञान का फायदा उठाते हुए ये बाबा अपने धंधे चला रहे हैं. ये धर्म को एक इंडस्ट्री के रूप में चला रहे हैं जहां आस्था और भक्ति लालच का पर्याय बन चुके हैं. भारतीय इन सांपों को अपनी आस्तीन में पाल रहे हैं. जब इस तरह के राम, रहीम, इंसान, बापू और मां बुराई के संदेशवाहक बनकर उभरते हैं तो लोगों को खुद को ही इसका दोषी मानना चाहिए.