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सियासत-सीडी-साजिश: कोई शक नहीं कि हार्दिक राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं

राजनीति के कीचड़ में उतरने के बाद जरूरी नहीं कि हर दाग अच्छा ही हो

Kinshuk Praval

गुजरात चुनाव में नोटबंदी-जीएसटी और विकास के मुद्दों की बयार चल रही थी कि अचानक सीडी का तूफान आया और फिर प्रचार की हवाओं में हार्दिक – हार्दिक का शोर गूंजने  लगा.

अब हर दिन एक नई सीडी हार्दिक पटेल की ब्रांडिंग के साथ सामने आ रही है और दावा किया जा रहा है कि सीडी में हार्दिक पटेल मुख्य भूमिका में मौजूद हैं. राजनीति में सीडी कांड नया नहीं रहा बस उसकी टाइमिंग ही हमेशा मायने रखती आई है.


खासतौर से चुनाव के वक्त सीडी का तड़का प्रचार की खिचड़ी में बहुत काम आता है. इस बार भी हार्दिक पटेल की कथित सीडी की टाइमिंग ऐन चुनाव से पहले कभी रिवाइंड तो कभी फास्ट फारवर्ड हो रही है. लेकिन सीडी कांड पर हार्दिक पटेल का जवाब सार्वजनिक जीवन में उतरे नेताओं के आचरण के खिलाफ ही दिखाई दे रहा है.

हार्दिक ताल ठोंक कर कह रहे हैं कि वो बालिग हैं और अपनी मर्जी से अपने अंतरंग पलों को जीने की आजादी रखते हैं. यहां तक कि सेक्स उनका मौलिक अधिकार है और बीजेपी उनकी निजी जिंदगी पर हमला कर रही है. जाहिर तौर पर बंद कमरे के भीतर किसी के अंतरंग पलों को आपत्तिजनक बताने का अधिकार किसी को नहीं है.

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खासतौर से अगर संबंध आपसी सहमति से बनें हों. लेकिन एक नेता का आचरण और सदाचार ही आम जनता के लिए आदर्श भी प्रस्तुत करता है तो ऐसे में हार्दिक की दलीलें सवालों के घेरे में उलझती दिखाई देती हैं.

अगर वो सार्वजनिक जीवन में उतरे हैं तो उन्हें राजनीति के तौर तरीकों का एक 22 साल के युवा की तरह अपरिपक्व आचरण करने से बचना चाहिए. सार्वजनिक जीवन में आपत्तिजनक व्यवहार सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं है. इसके लिए युवा, कुंवारा, मर्द और आजादी जैसे शब्द-बाणों से हार्दिक खुद को ही घायल करने का काम कर  रहे हैं.

अगर ऐसा नहीं होता तो जिस चक्रव्यूह में हार्दिक फंसे हैं उसकी व्यूह रचना ही नहीं की गई होती. जिस तरह से जाल में हार्दिक फंसे हैं उसकी योजना भी नहीं बनाई गई होती. लेकिन राजनीति में चरित्र हनन सबसे अचूक अस्त्र माना गया है जिसने शिखर पर बैठे व्यक्ति को धरातल में पटक कर नेपथ्य में धकेलने में देर नहीं की.

हार्दिक पटेल की फेसबुक वॉल से साभार

हार्दिक अपने आचरण से विरोधियों को मौका देने का ही काम कर रहे हैं और उनका बार बार ये कहना कि ‘अभी ऐसी सीडी और आएंगी’ से लगता है कि दाल में कुछ जरूर बहुत काला है.

पहले ये कहना कि सीडी में वो नहीं हैं और बाद में यह कहना कि उन्हें सबकुछ करने की आजादी है और जिसे जो बिगाड़ना हो वो बिगाड़ ले. हार्दिक की अपरिपक्वता एक बार फिर उनके राजनीतिक दांव-पेचों और रणनीतियों पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है.

हार्दिक के खिलाफ उनकी कथित सीडी भी युवाओं को रोल मॉडल की सोच में बदलाव का काम कर सकती हैं. हार्दिक भले ही कहें कि सीडी से उनके आंदोलन पर असर नहीं पड़ेगा लेकिन पाटीदार आंदोलन सिर्फ हार्दिक की हुंकार से ही नहीं उठा है.

हार्दिक भले ही पाटीदार आंदोलन का सेहरा सिर पर बांध कर खुद को नायक मान रहे हैं लेकिन राजीतिक हालात उन्हें खलनायक बनाने पर आमादा है. कभी वो पाटीदारों के सामने ‘सीक्रेट डील’ और कांग्रेस के एजेंट के रूप में पेश किए जा रहे हैं तो कभी उनकी कथित सीडी सामने आने से चरित्र पर सवाल उठ रहे हैं.

हार्दिक राजनीति में अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं. एक युवा नेता के रूप में उन्होंने गुजरात में खुद को स्थापित भी किया है. आज वो इस स्थिति में है कि कांग्रेस के साथ समर्थन के मुद्दे पर मोलभाव भी कर सकते हैं.

इन सबके बावजूद एक आदर्श युवा नेता की साफ छवि के लिए उन्हें आचरण में संयम भी बरतना होगा वर्ना सीडी के सिलसिले को रोक पाना उनके लिए आसान नहीं होगा.

वो भले ही पाटीदारों के आरक्षण आंदोलने के बड़े नेता बन कर उभरे हैं लेकिन सीडी कांड ने उन्हें राजनीति का कच्चा खिलाड़ी साबित कर छोड़ दिया है. अब उनका एक एक बयान खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने जैसा ही प्रतीत होता है.

राजनीति के कीचड़ में उतरने के बाद जरूरी नहीं कि हर दाग अच्छा ही हो. जब दाग स्वस्थ आचरण पर लगे तो उसकी भरपाई पश्चिमी देशों के नेता भी नहीं कर सके. चाहे वो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन हों या फिर देश के ही तमाम नामचीन नेता हों जिनका नाम सेक्स स्कैंडल में आने के बाद राजनीतिक पारी का अंत ही हो गया.

केजरीवाल सरकार में मंत्री रहे संदीप कुमार आपत्तिजनक वीडियो के सामने आने के बाद न सिर्फ मंत्रीपद से गए बल्कि पार्टी से भी निकाले गए. राजस्थान में महिपाल मदेरणा और भंवरी देवी की सीडी सियासी भूचाल की वजह बनी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एनडी तिवारी ने  एक सीडी के सामने आने के बाद अपने आचरण के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगी थी.

मध्यप्रदेश में बीजेपी के पूर्व नेता राघव जी भी यौन शोषण के आरोप की वजह से पार्टी से निकाले गए. ये सारे कर्मकांड भी बंद कमरों में किए गए थे और इनके पास भी मौलिक अधिकार का सर्टिफिकेट था. लेकिन सार्वजनिक जीवन में उतरने के बाद ऐसे आचरण की एनओसी नहीं मिली थी.

हार्दिक को ये जानना जरूरी है कि हिंदुस्तान के लोकतंत्र और पश्चिमी देशों के नेताओं के राजनीतिक जीवन में बहुत फर्क है. हार्दिक जिस गुजरात की जमीन से पाटीदारों के आरक्षण के लिये झंडा बुलंद कर रहे हैं उसी जमीन पर शराब बैन है. शराब बंदी भी एक स्वस्थ समाज के लिए उठाया गया कदम है जिसमें बापू का आदर्श समाहित है.

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बापू खुद धैर्य और संयम की प्रतिमूर्ति रहे हैं और युवाओं के लिये हर दौर में अद्भुत मिसाल. ऐसे में बापू की जमीन पर राजनीति का झंडा थामने वाले हार्दिक पटेल को अपने आंदोलन को सफल बनाने के लिए बंद कमरे की आजादी से बाहर आना चाहिए क्योंकि गुजरात के युवा उनमें अपना भविष्य देख रहे हैं और फिलहाल हार्दिक का सियासी भविष्य एक सीडी के भंवर में उलझता दिखाई दे रहा है.

हार्दिक अब कुछ भी कहें लेकिन सियासत-सीडी-साजिश की इस पटकथा ने गुजरात में हाल फिलहाल के लिये असल चुनावी मुद्दों से जनता का ध्यान जरूर भटका दिया है.