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‘ब्लैक फ्राइडे’ से कब निजात मिलेगी मुंबई को? पटरी के बाद अब तो पुल पर भी होने लगे हादसे

विडंबना है कि जब नए रेलमंत्री रेलवे से जुड़ी योजनाओं को लॉन्च करने के लिए मुंबई आए तब एक हादसे की वजह से फुटओवर ब्रिज पर यात्रियों के शव उठाए जा रहे थे.

Kinshuk Praval

मुंबईकरों की ज़िंदगी को रफ्तार देने का काम करती है मुंबई लोकल. रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस कदर इसकी अहमियत है कि लोग इसे लाइफलाइन कहते हैं. इसी लाइफलाइन के भरोसे अपनी मंजिल पर जाने वाले 22 लोग बेवक्त मौत के मुंह में समा गए. लेकिन ये हादसा पटरी पर नहीं हुआ. इस बार पटरी से ट्रेन के डिब्बे नहीं उतरे. इस बार रेलवे स्टेशन का पुल ही यात्रियों के लिए जानलेवा साबित हो गया.

शुक्रवार की सुबह साढ़े नौ बजे का वक्त था. हर दिन की तरह स्टेशन पर आने-जाने वाले लोगों की भारी भीड़ थी. एलफिंस्‍टन और परेल स्‍टेशन के बीच 'एलफिंस्‍टन ब्रिज' वेस्‍टर्न और सेंट्रल रेलवे के दो स्‍टेशनों को आपस में जोड़ता है. एलफिंस्टन ब्रिज पर तकरीबन सैकड़ों लोग मौजूद थे. संकरा पुल सालों से ही लोगों का भार ढो रहा था. इस दिन बाकी दिनों के मुकाबले ज्यादा भीड़ थी क्योंकि उस वक्त मुंबई में तेज़ बारिश हो रही थी. बारिश की वजह से पुल पर फिसलन भी थी. अचानक ही किसी एक के फिसलने के बाद पुल पर ऐसी भगदड़ मची कि लोग गिरते और दबते चले गए. मात्र छह फुट संकरे पुल में किसी के पास भी संभलने का मौका नहीं था सिवाए गिरने और दबने के. 22 लोगों की मौत हो गई और 37 लोग घायल हो गए.


ये 22 लोग सरकारी दस्तावेज़ में मृतकों के नंबर बन गए. बाज़ार के किसी प्रोडक्ट की तरह इनकी तस्वीरों पर नंबर तक डाल दिए गए. रेलवे को आदत है दुर्घटनाओं के बाद की रस्मअदायगी की और वो ये ही काम शिद्दत से करती आई है. इस बार भी मौत की भगदड़ का एक हादसा रेलवे से जुड़ी तमाम दुर्घटनाओं की तारीखों में दर्ज हो गया. रेलमंत्री ने मुआवज़े का ऐलान कर दिया. मुआवज़े का एलान भी एक रस्मअदायगी है जो किसी भी दुर्घटना पर फौरी राहत का मरहम होता है.

कहां है संवेदनशीलता?

लेकिन ये दुर्घटना टल सकती थी. 22 लोगों की जान बच सकती थी. मुंबईकर एक दूसरे ब्लैक फ्राइडे का शिकार नहीं होते. अगर रेलवे थोड़ी सी संवेदनशीलता दिखाता. दरअसल इसी पुल के लिए शिवसेना के दो सांसद तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभु को खत लिख चुके थे.

उन्होंने पुल को चौड़ा करने की मांग की थी. वो जानते थे कि अंग्रेजों के वक्त बने पुराने पुल अब सिर्फ थरथराने का काम करते हैं. रेलवे भी ये जानता था कि ये पुल किसी भी दिन किसी बड़े हादसे से पूरे मुंबई को थर्रा देंगे. लेकिन उसके बावजूद रेलवे के पास पैसा नहीं था.

शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने एलफिंस्टन फुटओवर ब्रिज की मरम्मत को लेकर पिछले साल ही तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु को चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने मांग की थी कि एलफिंस्टन ब्रिज की चौड़ाई को छह फुट से 12 फीट किया जाए. उनसे पहले शिवसेना सांसद राहुल शिवाले ने भी 23 अप्रैल 2015 को सुरेश प्रभु को पत्र लिखकर फुट ओवरब्रिज को चौड़ा करने की मांग की थी. लेकिन सुरेश प्रभु ने फंड की कमी और ग्लोबल मंदी का हवाला देकर मना कर दिया था.

अब उसी पुल ने 22 कीमती ज़िंदगियां ले कर अपने निर्माण की कीमत वसूली है. काश, रेलवे थोड़ा सा ही सही संवेदनशील होता तो ये दुर्घटना आज की तारीख में दर्ज नहीं होती और पुल पर से गुज़रने वाले शाम में अपने घर सकुशल पहुंच गए होते. 22 लोगों में हर शख्स अपने परिवार का बेहद खास था. मातम में डूबे उन परिवारों में मुआवज़ों के एलान से ज़िंदगियों की भरपाई कभी नहीं हो सकती.

कुछ बदला तो सिर्फ स्टेशन का नाम

ये 22 मौतें सवाल ही नहीं बल्कि आधुनिकीकरण की योजनाओं के नाम पर होने वाले रेलवे उद्घोष पर अभिशाप हैं. हादसे भी अब थक चुके हैं क्योंकि रेलवे में लापरवाही के बिस्तर पर सोती सुरक्षा व्यवस्था को जगाना आसान नहीं दिखता है.

विडंबना है कि जब नए रेलमंत्री रेलवे से जुड़ी योजनाओं को लॉन्च करने के लिए मुंबई आए तब एक हादसे की वजह से फुटओवर ब्रिज पर यात्रियों के शव उठाए जा रहे थे. तीन साल के भीतर महाराष्ट्र ने देश को दो-दो  रेलमंत्री दिए. उसके बावजूद देश की बिज़नेस कैपिटल मुंबई के रेलवे स्टेशन पर फुटओवर ब्रिज के लिए रेल मंत्रालय के पास पैसा नहीं था.

खास बात ये है कि मुंबई फुटओवर ब्रिज के लिए रेलवे ने साल 2015 में 11.8 करोड़ का बजट मंजूर किया था. उसके बाद भी फाइलों से बाहर एक्शन नहीं हो सका. अगर कुछ हुआ तो सिर्फ इतना कि एलफिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर प्रभादेवी स्टेशन कर दिया गया.

अब जबकि अहमदाबाद से मुंबई ही पहली बुलेट ट्रेन आनी है तब भारतीय रेल का खस्ताहाल बुनियादी ढांचा हादसों की शक्ल में सवाल दागने का काम कर रहा है. तमाम सरकारें किसी रेल की तरह आईं और रेल की तरह गुज़र गईं, रेलमंत्री बदल गए, लेकिन नहीं बदला तो रेलवे का मिज़ाज जो दुर्घटनाओं के बाद संवेदनशीलता को लेकर किसी मानवरहित क्रॉसिंग की तरह दिखाई देता है.