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राज्यों के बीच जल विवाद के निपटारे के लिए सरकार लाएगी नया कानून

अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक को जल्द ही कैबिनेट के सामने मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा. हालांकि इसे संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में इसे पेश किए जाने की संभावना नहीं है

Bhasha

केंद्र सरकार देश के विभिन्न राज्यों के बीच बढ़ते जल विवादों के समुचित निपटारे के लिए अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक को संसद में फिर पेश करेगी. इसमें अधिकरणों के अध्यक्षों, उपाध्यक्षों की आयु और निर्णय देने की समय सीमा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं.

जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक को मार्च में लोकसभा में पेश किया गया था और उसे विचार के लिए स्थायी समिति को भेज दिया गया. स्थायी समिति की रिपोर्ट आ गई है और समिति की सिफारिशों के आधार पर उक्त विधेयक में सुधार किया गया है.


उन्होंने कहा कि जल्द ही इसे कैबिनेट के सामने मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा. हालांकि इसे संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में इसे पेश किए जाने की संभावना नहीं है. सूत्रों ने बताया कि इसमें अधिकरणों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष आदि की आयु निर्धारित करने के साथ अधिकरणों की ओर से निर्णय देने की समय सीमा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं.

आपको बता दें कि राज्यों द्वारा जल की मांग बढ़ने के कारण अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद बढ़ रहे हैं. हालांकि, अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (1956 का 33) में ऐसे विवादों के समाधान के कानूनी ढांचे की व्यवस्था है, फिर भी इसमें कई कमियां हैं.

1956 के अधिनियम के अंतर्गत हर अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के लिए एक अलग अधिकरण स्थापित किया जाता है. 8 अधिकरणों में से केवल 3 ने अपने निर्णय दिए हैं जो राज्यों ने मंजूर किए हैं. हालांकि, कावेरी और रावी-व्यास जल विवाद अधिकरण क्रमशः 26 और 30 वर्षों से बने हुए हैं, फिर भी यह अभी तक कोई सफल निर्णय देने में सक्षम नहीं हो पाए हैं.

इसके अतिरिक्त मौजूदा अधिनियम में किसी अधिकरण द्वारा निर्णय देने की समय-सीमा तय करने या अधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य की अधिकतम आयु तय करने का कोई प्रावधान नहीं है.