नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त का कहना है कि सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स से बाहर आना चाहिए. यहां तक कि उसे जेलों, स्कूलों और कॉलेज इन सभी को भी प्राइवेट सेक्टर को सौंप देना चाहिए जैसा कि कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हुआ भी है.
इसी के साथ उन्होंने भारत के प्राइवेट सेक्टर की आलोचना करते हुए उसे ‘सबसे अतार्किक’ और ‘असंवेदनशील’ करार दिया. उन्होंने कहा कि ऐसी कंपनियों ने ही आक्रामक बोलियों से पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के समक्ष मौजूदा संकट खड़ा किया है.
उद्योग मंडल फिक्की द्वारा आयोजित इंडिया पीपीपी समिट-2017 का संबोधित करते हुए कांत ने कहा, ‘सरकार ने कई बड़े प्रोजेक्ट्स का निर्माण किया है लेकिन वह ऑपरेशन और मेंटेनेंस में बेहतर काम नहीं कर पाती है. इसलिए अब सरकार को बीओटी (निर्माण-परिचालन-हस्तांतरण) की उलट प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए.
सरकार को प्रोजेक्ट्स को बेच देना चाहिए और उन्हें प्राइवेट सेक्टर को संभालने देना चाहिए.’ उन्होंने एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा चलाए जाने वाले एयरपोर्टे के गंदे बाथरूम का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें प्राइवेट सेक्टर को लाना चाहिए. यह प्राइवेट सेक्टर को शामिल करने और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में प्राइवेट सेक्टर की पूंजी लाने का सबसे तेज तरीका है. यह प्रोजेक्ट्स पूर्णतया जोखिम रहित हैं.