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देश की सेना के लिए सरकार ने दिया फायर प्रूफ टेंट का ऑर्डर

हाल के दिनों में हुए हमलों से सबक लेते हुए सरकार ने उठाया कदम

Ravishankar Singh

रक्षा मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर में सेना के बेस कैंपों में हो रहे लगातार हमले से सबक लिया है. मोदी सरकार सेना के बेस कैंपों में बनने वाले तंबुओं को अब फायर प्रूफ बनाने जा रही है. सिंतबर 2016 में उड़ी सेक्टर में आतंकियों के हमले में 18 सैनिक शहीद हो गए थे. इस हमले में आतंकियों की गोली से ज्यादा आग की चपेट में आ जाने से सैनिकों की मौत हुई थी.

सेना की तरफ से लगातार मांग उठ रही थी कि सेना को सीमावर्ती इलाकों में रहने के लिए फायर प्रूफ और वाटर प्रूफ बैग किट मुहैया कराए जांए. पर सेना की बात को अब से पहले अनसुना कर दिया जाता था.


देश की सेना सीमावर्ती इलाकों में किसी मिशन के तहत तंबू लगा कर कैंप करती है. सेना के ये तंबू आतंकवादियों के सॉफ्ट टारगेट में हमेशा रहे हैं. आतंकवादी अधिकतर रात को ही हमला करते हैं, जब जवान नींद में रहते हैं. इस स्थिति में ज्यादा केजुअल्टी होती है.

हाल के हमलों से लिया सबक

हाल के दिनों में सेना के बेस कैंपों में लगातार रात को हमले हो रहे हैं. सरकार ने सबक लेते हुए भारत की ही कंपनी को फायर प्रूफ रेजिस्ट फैब्रिक बनाने का ऑर्डर दिया है.

देश के आयुध निर्माण बोर्ड ने कानपुर की एक कंपनी को फायर रेजिस्ट फैब्रिक(आग से बचने के लिए विशेष प्रकार का कपड़ा) बनाने का आर्डर दिया है. यह कपड़ा तकनीकी तौर पर काफी एडवांस और आसानी से एक जगह से दूसरे जगह ले जाने में सक्षम होगा.

देश के रक्षा मंत्रालय ने उड़ी हमले के बाद एक रिपोर्ट तैयार किया. इस रिपोर्ट में जिक्र गया है कि उड़ी हमले में उतनी केजुअल्टी नहीं होती जितनी आग के चपेट में आने से जवानों की हुई है. शहीद हुए 18 जवानों में ज्यादातर की मौत का कारण आतंकियों की गोली नहीं, बल्कि टेंट में आग लगना था.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ 

देश के रक्षा विशेषज्ञ जनरल जीडी बख्शी कहते हैं, ‘जब हम जम्मू कश्मीर में थे अमूमन कोशिश करते थे कि जवानों को तंबुओं में न रखें. तंबू चाहे आप फायर प्रूफ कर दें वह गोली नहीं रोक सकते. तेज गोलीबारी में तंबू में रह रहे लोगों का बच पाना संभव नहीं है. खास कर जम्मू-कश्मीर में तंबू आतंकियों के टारगेट में रहते हैं. इसलिए हमलोग जवानों को पक्के मकानों में रोकने की कोशिश करते थे. पक्के मकान हम सिविलियन से हायर करते थे.’

जनरल बख्शी आगे कहते हैं, ‘जब हम पक्के मकानों में और कुछ स्कूलों में सेना को शिफ्ट करने लगे तो अलगावादियों ने विरोध शुरू कर दिया. जिससे हम मजबूरन जवानों को तंबुओं में शिफ्ट करना पड़ा. इनको फायर प्रूफ करने से तो कुछ तो फर्क पड़ेगा.’