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गोरखालैंड की मांग से बीजेपी ने पल्ला झाड़ा, दार्जिलिंग में हिंसा जारी

बीजेपी और तृणमूल इस मुद्दे को एक-दूसरे के मत्थे मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं

FP Staff

पिछले कई दिनों से अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर दार्जिलिंग में चल आंदोलन उग्र होता जा रहा है. बुधवार को अज्ञात लोगों ने पीडब्लूडी ऑफिस में आग लगा दी. पश्चिम बंगाल के पहाड़ी इलाके में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहा है.

इससे पहले दार्जिलिंग में गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर बच्चों की रैली निकाली गई. सभी बच्चों ने अपने शर्ट उतारकर अपने देह पर अलग गोरखालैंड राज्य के समर्थन में नारे लिख रखे थे.

वैसे तो अलग गोरखालैंड की मांग बहुत पुरानी है लेकिन ताजा विवाद की शुरुआत गोरखा इलाकों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई को सरकारी स्कूलों में अनिवार्य किए जाने के फैसले के विरोध में शुरू हुआ. हालांकि आंदोलन के बाद बंगाल सरकार अपने पुराने रुख से पीछे हट गई है लेकिन अब मांग अलग राज्य तक पहुंच चुकी है.

एक तरफ जहां जीजेएम अलग गोरखालैंड की मांग पर अड़ी हुई है, वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि मर जाऊंगी लेकिन बंगाल को बंटने नहीं दूंगी. ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि इस विवाद में बीजेपी का हाथ है.

बीजेपी ने दिया जीजेएम को जोर का झटका 

दूसरी तरफ जीजेएम भी केंद्र में सत्तारूढ़ दल बीजेपी से नाराज है. जीजेएम दार्जिलिंग लोकसभा सीट पर पिछले दो बार से बीजेपी के उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेता जसवंत सिंह जीजेएम के समर्थन से जीते थे और 2014 के चुनावों में एसएस अहलूवालिया. अहलूवालिया केंद्र में मंत्री भी हैं.

इस वजह से जीजेएम इस आंदोलन के दौरान लगातार बीजेपी से गोरखालैंड की मांग के ऊपर अपना रुख साफ-साफ़ रखने की मांग कर रही थी. इस कड़ी में बीजेपी ने जीजेएम को झटका देते हुए मंगलवार को यह कहा कि वह अलग गोरखालैंड राज्य का समर्थन नहीं करती है.

बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अपने बयान में साफ-साफ कहा कि बीजेपी इस मांग का समर्थन नहीं करती है. इससे एक सप्ताह पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था पार्टी ने अलग गोरखालैंड की मांग पर अभी कोई फैसला नहीं लिया है. हालांकि कैलाश विजयवर्गीय ने यह कहा कि उनकी पार्टी गोरखाओं की पहचान और संस्कृति की रक्षा और उनके विकास का समर्थन करती है.

गोरखालैंड की मांग पर साफ-साफ फैसला लेने के लिए कुछ दिन पहले ही अमित सह ने पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष, राष्ट्रीय सचिव राहुल सिंहा और पश्चिम बंगाल के संगठन प्रभारी और राज्य महसचिव सुब्रत चटर्जी को दिल्ली बुलाया था.

क्यों नहीं अलग राज्य के समर्थन में 

इससे पहले बीजेपी ने 2009 और 2014 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह लिखा था कि ‘वे गोरखाओं की लंबे समय से चली आ रही इस मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे.’ लेकिन शेष पश्चिम बंगाल में अपने विस्तार की संभावना को देखते हुए बीजेपी ने गोरखालैंड की मांग से किनारा कर लिया है. जबकि बीजेपी आधिकारिक रूप से छोटे राज्यों का समर्थन करती है.

पार्टी के असमंजस की यह स्थिति विजयवर्गीय के बयान में झलकती है. उन्होंने कहा, ‘जब भी उनकी पहचान और संस्कृति की रक्षा का सवाल आया है, हम गोरखाओं के मुद्दे पर हमेशा संवेदनशील रहे हैं. लेकिन पार्टी ने कभी भी अलग गोरखालैंड राज्य की मांग का समर्थन नहीं किया है.’ उन्होंने यह भी कहा कि हमने हमेशा उनके विकास की मांग और पिछड़ेपन की समस्या को दूर करने पर विचार किया है.

बीजेपी के कुछ सूत्रों के मुताबिक अलग गोरखालैंड की मांग से पल्ला झाड़ने की वजह यह भी है इस इलाके में बमुश्किल से 2 लोकसभा सीटें आती हैं. साथ ही केंद्र को अपने खुफिया एजेंसियों से यह भी सूचना की इस इलाके में चीन भी अपना प्रभाव फैला सकता है.

पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व को यह साफ-साफ बता दिया है कि अलग गोरखालैंड राज्य की मांग का समर्थन करना किसी भी लिहाज से फायदेमंद नहीं है. इसकी वजह यह भी है कि शेष पश्चिम बंगाल की जनता अलग गोरखालैंड राज्य का मुखर रूप से विरोध करती है. इससे पहले जब बीजेपी ने उत्तराखंड, झारखंड या छत्तीसगढ़ का समर्थन किया था तो जिन राज्यों से ये राज्य अलग हुए वहां ऐसी स्थिति नहीं थी.

तृणमूल के मत्थे मढ़ने की कोशिश में बीजेपी  

बीजेपी अब अलग गोरखालैंड राज्य की मांग का सारा जिम्मा तृणमूल कांग्रेस की सरकार पर डालने की फिराक में है. विजयवर्गीय ने अपने बयान में यह भी कहा, ‘अगर अलग राज्य की जरूरत है तो राज्य सरकार इस पर पहलकदमी ले.’ जब उनसे यह कहा गया कि अलग राज्य बनाने का अधिकार राज्य नहीं केंद्र सरकार के पास होता है तो उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को कम से कम आधिकारिक रूप से यह बताना चाहिए कि वो अलग राज्य के समर्थन में हैं या नहीं.

बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस जिस तरह से एक-दूसरे की तरफ गोरखालैंड की मांग की गेंद फेंक रहे हैं उससे यह नहीं लगता है कि यह विवाद जल्द ही सुलझने वाला है. फिर भी बीजेपी के इस नए रुख से जीजेएम को एक बड़ा झटका जरूर लगा है क्योंकि पिछले दो चुनावों में वो बीजेपी को नेपाली भाषी गोरखाओं का वोट दिलवा चुकी है.