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गोरखपुर त्रासदी: लापरवाही का टैंक अोवरफ्लो होता गया अौर अॉक्सीजन की सप्लाई हो गई ठप!

बीआरडी मेडिकल कॉलेज प्रशासन की आपराधिक लापरवाही ने 30 बच्चों समेत साठ से ज्यादा मरीजों की ऑक्सीजन की कमी से मौत की इबारत लिखी

Ranjib

गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज प्रशासन की आपराधिक लापरवाही ने 30 बच्चों समेत साठ से ज्यादा मरीजों की ऑक्सीजन की कमी से मौत की इबारत लिखी. मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी के हालात बनने की आहट पहली अगस्त से ही मिलने लगी थी जो हर गुजरती तारीख के साथ तेज होती गई.

मेडिकल कॉलेज प्रशासन फिर भी न चेता. जिम्मेदारों की लापरवाही का टैंक इस कदर ओवरफ्लो हो चुका था कि मरीजों को ऑक्सीजन की सप्लाई ठप होनी ही थी.


इस मेडिकल कॉलेज में दो साल पहले लिक्विड ऑक्सीजन का प्लांट लगाया गया था और पुष्पा सेल्स कंपनी को ऑक्सीजन की सप्लाई का ठेका दिया गया था. करार के मुताबिक तय था कि ऑक्सीजन सप्लाई के एवज में बकाया 10 लाख रुपए से ऊपर नहीं रखा जा सकता. इसके बावजूद बकाया बढ़ता गया.

नतीजतन कंपनी ने करीब 69 लाख रुपए का बकाया न होने पर सप्लाई रोक देने की चेतावनी देते हुए 1 अगस्त को मेडिकल कॉलेज प्रशासन को चिट्ठी लिखी. कॉलेज प्रशासन सोया रहा. बकाया भुगतान नहीं हुआ तो कंपनी की ओर से चार अगस्त को आखिरी री-फिलिंग की गई जो पांच से छह दिन चलती.

मुख्यमंत्री को भी रखा अंधेरे में

अगले पांच-छह दिन तक गोरखपुर के अखबार ऐसी खबरों से पटे रहे कि मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी का बड़ा संकट दस्तक दे रहा है. लिहाजा गोरखपुर जिला प्रशासन को भी इसकी जानकारी मिली पर वह भी बेखबर बना रहा.

इस बीच गोरखपुर के दौरे पर पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नौ अगस्त को मेडिकल कॉलेज का दौरा कर व्यवस्थाओं का जायजा लिया. ऑक्सीजन की कमी से भारी संकट खड़ा होने की तब तक उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी लेकिन मेडिकल कॉलेज और जिला प्रशासन ने मुख्यमंत्री के दौरे के वक्त भी इस मुद्दे पर पर्दा डाले रखा.

अगले दिन यानी 10 अगस्त को ऑक्सीजन की सेंट्रल पाइपलाइन प्लांट की देखभाल करने वाले कर्मचारियों ने अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ को लिख कर भेजा कि लिक्विड ऑक्सीजन कम है और रात तक मरीजों के लिए खतरे के हालात पैदा हो सकते हैं.

तस्वीर: पीटीआई

यूं बिगड़े हालात

इस पत्र की कॉपी अस्पताल के प्रिसिंपल और सीएमएस को भी भेजी गई लेकिन लिक्विड ऑक्सीजन की व्यववस्था की कोई पहल नहीं की गई. नतीजतन 10 अगस्त की शाम से ही लिक्विड ऑक्सीजन खत्म होने लगा और तब जाकर अफरातफरी मची लेकिन तब कर देर हो चुकी थी. सबसे ज्यादा संकट इनसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) वार्ड में भर्ती बच्चों और आईसीयू के मरीजों को थी जिनकी जिंदगी की डोर ऑक्सीजन की सप्लाई पर टिकी थी.

अस्पताल में रिजर्व के तौर पर रखे गए करीब 50 ऑक्सीजन सिलिंडर थोड़ी देर बाद ही खत्म होने लगे तो सीमा सुरक्षा बल से संपर्क कर 10 सिलिंडर उनसे मांगे गए. तब तक ऑक्सीजन की कमी से मौतों का सिलसिला शुरू हो चुका था.

ऑक्सीजन सिलिंडर कम पड़ने लगे तो मरीजों के तीमारदारों को एंबू बैग थमा कर कहा गया कि उसे अपने हाथ ले लगातार दबाते रहे ताकि ऑक्सीजन की व्यवस्था होने तक मरीज की सांस चलती रहे. जुगाड़ से कुछ सिलिंडर हासिल करने और एंबू बैग के भरोसे न तो मरीजों की सांसें लंबे समय तक चलनी थी और न ही चली.

रात भर में कई मौतें हुईं लेकिन ऑक्सीजन की मुकम्मल व्यवस्था नहीं हो सकी. 11 अगस्त की सुबह स्थानीय स्तर पर और पड़ोसी जिलों से जुगाड़ के भरोसे ऑक्सीजन के सिलिंडर मंगवाए जाते रहे लेकिन तब तक मौतों की संख्या बढ़ने लगी थी. सुबह तक कई बच्चों समेत करीब 50 मरीजों की मौत ऑक्सीजन न मिलने से हो चुकी थी.

ऑक्सीजन की कमी के कारण कई मासूम वेटिंलेटर पर ही पड़े-पड़े मर गए. अस्पताल प्रशासन दोपहर तक मामले की भयावहता को दबाए रहा लेकिन जब कई तीमारदार अस्पताल से अपने बच्चों की लाशें लेकर निकलते देखे गए तो हल्ला मचा.

बात बिगड़ती देख खाल बचाने की गरज से अस्पताल और जिला प्रशासन ने 11 अगस्त की देर शाम 22 लाख रुपए का बकाया भुगतान की व्यवस्था कर ऑक्सीजन की सप्लाई शुरू करवाने की पहल की. यही तेजी पहले दिखाई जाती तो कई जानें बचाई जा सकती थीं.

दांव पर सीएम की साख

मेडिकल कॉलेज सूत्रों का कहना है कि बकाए का कुछ भुगतान कर जरूर दिया गया है लेकिन लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई शनिवार देर रात या रविवार सुबह से पहले सामान्य नहीं हो पाएगी और तब तक ऑक्सीजन सिलिंडर के भरोसे ही रहना होगा. हालांकि शनिवार सुबह ऑक्सीजन सिलिंडरों की एक बड़ी खेप मेडिकल पहुंचाई गई.

पूर्वांचल के कई जिलों में इनसेफेलाइटिस हर साल कई बच्चों की मौत की वजह बनता है. चुनावों के मौसम में यह पूरब में बड़ा मुद्दा भी बनता है. इलाके की सरकारी-गैर सरकारी चिकित्सा व्यवस्था में इनसेफेलाइटिस का प्रकोप बढ़ना कमाई के सालाना उत्सव सरीखा होता है. चेक अप, जांच, इलाज और ऑक्सीजन व आशंका की सप्लाई के नाम पर जेबें भारी होती हैं.

इस जानलेवा बीमारी के इलाज के लिए इलाकाई लोगों का अकेला भरोसा बीआरडी मेडिकल कालेज ही है. ऑक्सीजन की कमी से मौतों ने लोगों के इस भरोसे को बुरी तरह से तोड़ा है. इसके जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई ही भरोसे को बहाल कर सकती है.

यूपी सरकार ने मामले की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं लेकिन जिस तरह सरकार ने घटना के बाद लीपापोती करने के अंदाज में कहा कि मौतों की वजह ऑक्सीजन की कमी नहीं है उससे यह आशंका बनने लगी है कि जो असल दोषी हैं वे शायद बच जाएं.

गोरखपुर यूपी के मुख्यमंत्री योगी अादित्यनाथ का संसदीय और गृह क्षेत्र भी है. इनसेफेलाइटिस से मौतों और बीआरडी मेडिकल कालेज की व्यवस्था बेहतर किए जाने का मुद्दा वह कई बार लोकसभा में भी उठा चुके हैं लेकिन अब उनके राज में ही यह वाकया हो गया. लिहाजा योगी सरकार इसमे मामले में क्या और कितनी सख्त कार्रवाई करती है वह न सिर्फ सरकार बल्कि मुख्यमंत्री की साख से भी जुड़ गया है.