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केंद्रीय हिंदी संस्थान के छात्र अब कोर्स में नहीं पढ़ेंगे गोदान

संस्थान के अनुसार ये उपन्यास बेहद लंबा और अवधी के शब्दों से भरा हुआ है

FP Staff

देश की राजनीति में गाय का इतना जिक्र हो रहा है कि कभी-कभी लगता है देश में एक गौ मंत्रालय होनी चाहिए. मगर इसी बीच केंद्रीय हिंदी संस्थान ने विदेशी छात्रों के लिए अपने एमए के स्लेबस से प्रेमचंद के लिखे कालजयी उपन्यास गोदान को हटा दिया है.

नेशनल हैराल्ड की खबर के मुताबिक संस्थान का कहना है कि इस उपन्यास को लेकर छात्र लगातार शिकायतें कर रहे थे. छात्रों का कहना था कि उपन्यास बहुत लंबा है और इसमें अवधी का बहुत इस्तेमाल हुआ है.


गोदान की जगह पर छात्रों के पास मैथलीशरण गुप्त की कविता पंचवटी और या फिर प्रेमचंद के उपन्यास निर्मला को उनकी पांच अन्य कहानियों के साथ पढ़ने का मौका होगा.

इस फैसले के बाद हिंदी के ज्यादातर लेखकों और आलोचकों में रोष है. कहा जा रहा है कि प्रेमचंद के इस उपन्यास को कोर्स से हटाने के पीछे कोर्स के संस्कृटाइजेशन की मंशा है. सवाल उठ रहा है कि अगर गोदान को अवधी के शब्दों के चलते कोर्स से हटाया जा रहा है तो क्या कल को फणीश्वरनाथ रेणु और गोस्वामी तुलसी दास को भी स्लेबस से बाहर कर दिया जाएगा.

वहीं पंचवटी को कोर्स में शामिल करने पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा है कि पंचवटी उस दौर की कविता है जब हिंदी साहित्य विकसित हो रहा था. इसमें मिथकीय तुकबंदी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है. जबकि गोदान समाज में व्याप्त असमानता को समझने का माध्यम है.

इस पूरे मसले पर संस्थान के निदेशक नंद किशोर पांडेय का कहना है कि प्रेमचंद को स्लेबस से हटाया नहीं गया है. संस्थान को ये तय करने का अधिकार है कि वो किस किताब को कोर्स में रखे और किसे नहीं.

वैसे बीजेपी की सरकार के दौरान प्रेमचंद को स्लेबस से हटाने का ये फैसला पहली बार नहीं हुआ है. 2003 में एनडीए सरकार के दौरान भी सीबीएसई के स्लेबस से निर्मला को हटाकर गोवा की वर्तमान गवर्नर मृदुला सिन्हा के लिखे उपन्यास 'जो मेंहदी का रंग' को रख दिया गया था. उस समय भारी विरोध के चलते ये फैसला वापस लेना पड़ा था.