view all

गौरी लंकेश मर्डर केस: 14 दिन बाद भी दिशाहीन क्यों है एसआईटी की जांच?

विदेशी एक्सपर्ट्स को अपना काम करने में दिक्कत आ रही है क्योंकि बेंगलुरु पुलिस ने वारदात की जगह की सुरक्षित घेराबंदी नहीं की थी

Shantanu Guha Ray

बेंगलुरु की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) ने अंतरराष्ट्रीय फॉरेंसिक एक्सपर्ट की सहायता से मसले से जुड़े कई लोगों की जांच शुरू कर दी है. जिन लोगों को खोजबीन के दायरे में रखा गया है उनमें गौरी लंकेश के सख़्त विरोधी उनके भाई इंद्रजीत भी शामिल हैं.

विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि एसआईटी ने ऐसे लोगों की एक सूची बनाई है जिन्हें लंकेश ने अपनी पत्रिका ‘गौरी लंकेश पत्रिके’ में अपने लेखन का निशाना बनाया था और गुजरे एक पखवाड़े के भीतर ऐसे 100 लोगों से एसआईटी ने पूछताछ की है.


एसआईटी ने पुणे में हमीद दाभोलकर से भी मुलाकात की है और सीसीटीवी फुटेज सहित गौरी लंकेश की हत्या से जुड़ी अन्य जानकारियां उनके साथ साझा की है लेकिन हमीद एसआईटी की विशेष मदद नहीं कर पाए. यह बात फ़र्स्टपोस्ट को एक सूत्र ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताई. हमीद दाभोलकर वामपंथी रुझान वाले कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर के पुत्र हैं. नरेंद्र दाभोलकर की भी हत्या हुई थी.

एसआईटी ने सीपीआई के मारे गए नेता गोविंद पनसारे की पत्नी उमा से भी कोल्हापुर में मामले से जुड़े सबूतों के साथ मुलाकात की लेकिन इस भेंट से एसआईटी को कुछ ठोस सुराग हाथ नहीं लगा क्योंकि उमा सीसीटीवी फुटेज में दिख रहे व्यक्ति की ठीक-ठीक पहचान नहीं कर सकीं.

पेशेवर नहीं था हत्यारा!

फ़र्स्टपोस्ट को एक सूत्र ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज में दिख रहा व्यक्ति साढ़े पांच फीट लंबा और हट्टा-कट्टा है, उसने काले कपड़े और काली हेलमेट पहन रखी है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर अपनी बात कहने वाले सूत्रों ने बताया कि गोली चलाने वाला पेशेवर हत्यारा नहीं था और ना ही उसने हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली थी. गौरी लंकेश की हत्या से संबंधित बैलेस्टिक रिपोर्ट का आना अभी बाकी है.

बहरहाल, एसआईटी का कहना है कि उसने गौरी लंकेश की हत्या के बाद एक सार्वजनिक अपील जारी की थी और ऐलान किया था कि जो व्यक्ति हत्या से संबंधित अहम जानकारी देगा उसे 10 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा. इस वजह से एसआईटी को कुछ दिलचस्प सुराग हाथ लगे हैं. सूत्रों के मुताबिक 'अभी जांच जारी है,' और 'बहुत अहम जानकारी हासिल हुई है.'

एसआईटी के सदस्यों ने हत्या से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए खानपुर, बेलगाम, कोल्हापुर, मंगलुरु, चिकमंगलूर और ऋंगेरी की यात्रा की है. इन जगहों पर सदस्यों ने बहुत से लोगों से मुलाकात की और जांच कर रहे दल का कहना है कि इन लोगों से मिली जानकारी अहम साबित हो सकती है.

एसआईटी के सदस्य गोवा और मुंबई भी गए हैं और इन जगहों पर तकरीबन 15 लोगों से पूछताछ की है. जिन लोगों से पूछताछ हुई है उसमें सनातन संस्था के सदस्य भी शामिल हैं. जांच एजेंसियों ने सनातन संस्था पर बरसों से निगाह टिका रखी है. कहा जाता है कि पनसारे, दाभोलकर और दक्षिणपंथ राजनीति के एक और आलोचक एमएम कलबुर्गी की हत्या में इस संस्था की भूमिका रही है. सूत्र का कहना है कि 'संस्था के प्रमुख जयंत बालाजी अठवाले से पूछताछ हुई,' लेकिन इस जांच में  'कुछ भी ठोस (जानकारी) हाथ नहीं लगी.'

खुफिया विभाग के इंस्पेक्टर जेनरल ऑफ पुलिस (आईजीपी) बीके सिंह ने एसआईटी जांच की मौजूदा स्थिति पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. टेलीफोन पर हुए इंटरव्यू में बीके सिंह ने फर्स्टपोस्ट से कहा,  'जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, मैं कोई भी जानकारी साझा नहीं करना चाहता.'

बहरहाल, विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि एसआईटी पनसारे, दाभोलकर और कलबुर्गी की हत्या के मामले में इस्तेमाल हुए बुलेट्स को अदालत से अपने कब्जे में लेने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है ताकि उनका मिलान गौरी लंकेश की हत्या की जगह पर मिले बुलेट्स से किया जा सके.

सूत्र के मुताबिक जब तक कारतूस के खोखे नहीं मिल जाते तब तक ठीक-ठीक यह कहना मुश्किल है कि हत्याओं में समान पिस्तौल का इस्तेमाल हुआ है नहीं. जब भी पिस्तौल से गोली निकलती है, पिस्तौल में उसका एक खास निशान बन जाता है. अगर मिले हुए सारे कारतूसों की फारेंसिक जांच की जाए तब भी मामले में कुछ तार जोड़े जा सकते हैं.

मामले का सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि गौरी लंकेश के भाई से जब पूछताछ हुई तो वह जांच के दौरान गोलमोल जवाब देता रहा. उसने यह तो माना कि उसके पास एक पिस्तौल थी जिससे गौरी लंकेश को एक बार धमकाया था लेकिन एसआईटी के सदस्यों को उसने बताया कि बहन के साथ मैंने अपने रिश्ते सुधार लिए थे.

पारिवारिक विवाद भी संभव

सूत्र के मुताबिक पिस्तौल के सवाल पर उसने गोलमोल जवाब दिया. उसने कहा कि उसने पिस्तौल बेच दी है लेकिन बेचने की कोई रसीद वह नहीं दिखा सका. एसआईटी ने बुधवार को इंद्रजीत से सवाल किए थे लेकिन मुलाकत के दौरान उसने सहयोगी रुख नहीं अपनाया. उसे एक हफ्ते बाद फिर मिलने को कहा गया है.

पुलिस सूत्रों ने फर्स्टपोस्ट को बताया कि एसआईटी हत्या के पीछे पारिवारिक विवाद के कोण से भी जांच करेगी.

बेंगलुरु पुलिस का कहना है कि लंकेश और इंद्रजीत के बीच कई दफे असहमति के वाकये पेश आए थे. दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ पुलिस में बयान दर्ज करवाए थे. दोनों एक-दूसरे पर पारिवारिक संपत्ति हड़प लेने का आरोप लगाते थे. इसमें लंकेश पत्रिका के अधिकारों को लेकर उपजा विवाद भी शामिल है जो इसके संपादक और प्रकाशक पी लंकेश की मौत के बाद उभरा. पी लंकेश गौरी और इंद्रजीत के पिता थे.

एसआईटी को सूबे की पुलिस की एक रिपोर्ट हाथ लगी है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार से कम से कम 26 देसी पिस्तौल तस्करी के जरिए बेंगलुरु पहुंचे. ऊंचे पद पर मौजूद एक सूत्र के मुताबिक आशंका है कि गौरी लंकेश की हत्या में इन्हीं 26 देसी पिस्तौलों में से एक का इस्तेमाल हुआ है. ये पिस्तौल बिहार के तस्करों ने बीजापुर के नक्सलियों को बेचे थे.'

दागदार इतिहास वाले एक व्यक्ति कुनिगल गिरी से भी पूछताछ हुई है. कुनिगल गिरी अवैध तरीके से हथियार बेचने वालों के संपर्क में रहता है. लेकिन इस पूछताछ से कोई सुराग हाथ नहीं लगा. फोरेंसिक रिपोर्ट से भी संकेत मिलते हैं कि गौरी लंकेश की हत्या देसी पिस्तौल से ही हुई है, सो बहुत संभावना है कि हत्या के पीछे किसी नक्सली का हाथ हो क्योंकि बेंगलुरु से तेलंगाना नजदीक है और वहां सक्रिय नक्सलवादी ज्यादातर देसी पिस्तौल का इस्तेमाल करते हैं.

हालांकि गौरी लंकेश वामपंथी रुझान वाली कार्यकर्ता थीं लेकिन एसआईटी सोच की इस लकीर पर काम कर रही है कि उनकी हत्या में नक्सलवादियों का हाथ हो सकता है. गौरी लंकेश के भाई इंद्रजीत ने भी मीडिया को बताया था कि गौरी लंकेश ने पिछले साल छह नक्सलवादियों का आत्मसमर्पण करवाया था और इस वजह से नक्सलवादी उन्हें धमकी दे रहे थे.

इंद्रजीत ने गौरी की हत्या के तुरंत बाद संवाददाताओं को बताया, 'वह कुछ को नक्सलवाद के रास्ते से हटाकर मुख्यधारा में लाने में कामयाब हुई. इस वजह से उन्हें बीते कुछ दिनों से धमकी भरे ईमेल और चिट्ठियां मिल रही थीं.' लेकिन इंद्रजीत बाद में अपनी इस बात से पलट गया. उसने कहा कि मीडिया ने उसकी बातों को गलत तरीके से पेश किया.

लेकिन तेलंगाना पुलिस के एंटी-नक्सल दस्ते से मिली सूचना ने एसआईटी को पसोपेश मे डाल रखा है. तेलंगाना पुलिस का एंटी-नक्सल दस्ता निगरानी तथा अन्य माध्यमों के जरिए नक्सलवादियों की गतिविधियों पर नजर रखता है. बेंगलुरु पुलिस के एक सूत्र ने फर्स्टपोस्ट को बताया कि तेलंगाना पुलिस ने एसआईटी को सूचना दी है कि जिस हफ्ते गौरी लंकेश की हत्या हुई उस हफ्ते किसी नक्सल ऑपरेशन के होने की कोई जानकारी नहीं है.

विदेशी एक्सपर्ट भी जांच में शामिल

एसआईटी के संदिग्धों की सूची में राजनीतिक कार्यकर्ता तथा धनी उद्योगपति भी शामिल हैं. ऐसे लोग भी गौरी लंकेश के लेखन से बहुत खफा थे. गौरी लंकेश ने अपने कुछ दोस्तों को बताया था कि मैं ऐसे लोगों का पर्दाफाश करने वाली हूं.

विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक एसआईटी यह भी मानकर चल रही है कि चंद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का भी गौरी लंकेश की हत्या में हाथ हो सकता है. इन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने आरोप लगाया था कि गौरी लंकेश ने उन्हें 'भ्रष्ट' और 'एक खास पार्टी का करीबी' करार देकर तबादला करवाया था. साथ ही एसआईटी ने गौरी लंकेश के परिवारजनों से भी पूछताछ की है जिनका गौरी के साथ संपत्ति को लेकर भारी विवाद चल रहा था. साथ ही कुछ पेशेवर लोगों को भी जांच के दायरे में रखा गया है. अपने लेखन में गौरी इन लोगों के प्रति बहुत तल्ख थीं.

मामले में कुछ विदेशी एक्सपर्ट तकनीकी जांच में एसआईटी की मदद कर रहे हैं. अपुष्ट रिपोर्टों में इन एक्सपर्ट्स को स्कॉटलैंड यार्ड का बताया गया है. यह टीम कारतूसों की फॉरेंसिक जांच, लंकेश के शरीर पर पाए गए अंगुलियों के निशान और बेंगलुरु के बाहरी इलाके में बने गौरी के घर के दरवाजे तक आने वाले पैरों के निशान के विश्लेषण में मदद कर रही है.

सूत्रों का कहना है कि विदेशी एक्सपर्ट्स को अपना काम करने में दिक्कत आ रही है क्योंकि बेंगलुरु पुलिस ने वारदात की जगह की सुरक्षित घेराबंदी नहीं की और रिपोर्टर्स तथा पड़ोसी सहित बहुत से लोगों का मौका-ए-वारदात पर बेरोकटोक आना-जाना जारी था.

एसआईटी कुछ और कोण से भी जांच कर रही है जिसमें सूबे में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के भीतर मौजूद राजनीतिक दुश्मनी का कोण शामिल है. माना जाता है कि गौरी लंकेश ने राज्य के एक बहुत प्रभावशाली मंत्री से भेंट की थी और 'सूबे के दो ऐसे मंत्रियों के खिलाफ सबूत जुटाए थे जिन पर अभी जांच जारी है.' ये दो मंत्री कौन हैं, फर्स्टपोस्ट को अभी यह पता नहीं चल सका है.

बेंगलुरु में कुछ और लोग भी हैं जिन्हें एसआईटी ने अपनी जांच के घेरे में लिया है. ऐसे लोगों में बेंगलुरु लिटरेचर फेस्टिवल के वरिष्ठ अधिकारी विक्रम संपत भी शामिल हैं. अपने एक फेसबुक पोस्ट में संपत ने नाराजगी जताते हुए आश्चर्य से लिखा है कि एसआईटी ने उनका बयान दर्ज किया है जो बड़ी विचित्र बात है.

'मैं उनसे (गौरी) कभी नहीं मिला, ना ही बात की थी और लंदन से उनकी क्रूर हत्या पर निंदा करते हुए ट्वीट करने वाले शुरुआती लोगों में एक था.

बाकी हत्याओं की तरह यह मामला भी लटकेगा

'मुझे जो वजह बताई गई वह बहुत परेशान करने वाली है—मुझे कहा गया कि एक बार (2015 में) मैंने अवार्ड वापसी अभियान का विरोध किया था जिससे बेंगलुरु लिटरेचर फेस्टिवल में विवाद खड़ा हुआ और फेस्टिवल को बचाने के खयाल से मैंने इस्तीफा दिया था. उस वक्त यानी 2015 के दिसंबर में गौरी लंकेश ने कन्नड़ भाषा में छपने वाली अपनी पत्रिका तथा अंग्रेजी के कुछ अखबारों में मेरी आलोचना में लेख लिखे थे—इन लेखों में से किसी को भी मैंने नहीं पढ़ा, ना ही उनका जवाब दिया क्योंकि मुझे लगा कि उस सरगर्म माहौल में अपने ऊपर लगे हर आरोप पर प्रतिक्रिया जाहिर करना और उसकी काट में कुछ कहना, जरुरी नहीं..'

'लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से मेरे मन में और भी ज्यादा सवाल उभरे हैं. क्या एसआईटी ऐसे ही जांच करती है? क्या जांच के कुछ ऐसे भी कोण हैं जो पहले सुझाए जाते हैं फिर एसआईटी उन कोणों से अपनी खोज-बीन शुरु करती है? क्या एसआईटी उन सभी लोगों की जांच करेगी जिन्हें गौरी लंकेश ने अपनी कलम का निशाना बनाया था ? गौरी एक निडर पत्रकार थीं और उनके कलम के निशाने पर बहुत से लोग थे, जिसमें कुछ लोग ऊंचे पदों पर हैं और बहुत ताकतवर हैं. यह एसआईटी जिस तरीके से जांच कर रही है क्या उसे देखते हुए लगता है कि वह किसी निष्कर्ष तक पहुंचेगी? या इस जांच का कर्नाटक में वही हश्र होने वाला है जो  लेखकों, अधिकारियों और या पुलिस ऑफिसर के हत्याओं को लेकर चली बाकी जांच-पड़ताल का हुआ जिसमें खूब पूछताछ के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला?'

संपत ने आगे लिखा है कि वे जांच में हरसंभव तरीके से मदद करेंगे. संपत से फोन पर बार-बार संपर्क साधने की कोशिश की गई लेकिन संपर्क कायम नहीं हो सका.

बेंगलुरु के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने, जो जांच-दल में शामिल नहीं हैं, बताया कि वक्त के इस मुकाम पर गौरी लंकेश के हत्यारों के बारे में ठीक-ठीक कुछ भी बता पाना मुमकिन नहीं और एसआईटी के लिए अपराधी को पकड़ पाना आसान नहीं होगा.

उन्होंने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि बहुत मुमकिन है यह मामला भी उसी तरह लटक जाए जैसा कि बीते समय में वामपंथी रुझान वाले अन्य लेखकों की हत्याओं के मामले में हुआ और आगे के समय में एसआईटी की जांच अपनी दिशा और गति खो दे.

(इस लेख के लिए कुछ जानकारियां निशांत गोयल से हासिल हुईं)