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बाढ़ की बढ़ती मुसीबत: सावन के सजीले चेहरे पर क्लाइमेट चेंज की कालिख

आधुनिक दौर का सावन हत्यारा हो चुका है

Bhuwan Bhaskar

सावन की काली घटाएं देख कर झूमते प्रेमी-प्रेमिकाओं की केलि क्रीड़ा का सरस वर्णन हो या अपनी कालजयी रचना 'मेघदूतम्' से बादलों को प्रेम संदेश का दूत बनाने वाले कालिदास की अद्वितीय कल्पनाशीलता, ये सब शायद हमेशा के लिए एक ऐसे आसमानी अतीत का हिस्सा बन चुके हैं, जिन्हें आने वाली पीढ़ियां केवल साहित्य के पन्नों में ही पढ़ पाएगी.

आधुनिक दौर का सावन हत्यारा हो चुका है. देश के करोड़ों लोगों के दिल अब उसकी कल्पना से मचलते नहीं हैं, दहलते हैं. और ये हालात दिनोदिन और बदतर होते जा रहे हैं. केवल 2017 की ही बानगी देखिएः


6 अप्रैलः जम्मू-कश्मीर की कश्मीर घाटी के कई हिस्सों और श्रीनगर में भारी बारिश के बाद पानी भर गया. लोगों के मन में 2005 की भारी तबाही की यादें एक बार फिर ताजा हो गईं, जब झेलम में आई बाढ़ ने 44 जिंदगियों को लील लिया था और 12,565 घर क्षतिग्रस्त हो गए थे.

21 अप्रैलः भारी बारिश के बाद मेघालय के दक्षिण पश्चिम गारो हिल्स जिले के निचले इलाकों में पानी भर गया. स्थानीय मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक करीब 20 लोग बेघर हो गए.

5 जूनः लगातार कई दिनों की बारिश के कारण असम के 3 जिलों लखीमपुर, करीमगंज और दारंग में करीब 60,000 लोगों की जिंदगियां अस्त-व्यस्त हो गईं और जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ.

4 जुलाईः असम में स्थिति और गंभीर हुई और कुल 2.70 लाख लोगों का जीवन प्रभावित हो गया. केवल करीमगंज जिले में 15,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा और उन्होंने 112 राहत शिविरों में शरण लिया. करीब 500 गांव जलमग्न हो गए और 8,000 हेक्टेयर में खड़ी फसलें तबाह हो गईं. ताजा स्थिति के मुताबिक 24 जुलाई तक असम में बाढ़ से 76 लोगों की मौत हो चुकी है.

15 जुलाईः भीषण बारिश के बाद उड़ीसा के रायगढ़ा और कालाहांडी जिलों में करीब 12 गांव पूरी तरह बाहरी दुनिया से कट गए. रेल, रोड सब क्षतिग्रस्त हो गए और कम से कम 5 पुल बह गए.

24 जुलाईः गुजरात के बनासकांठा में बाढ़ का पानी भर जाने के कारण 25,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया है. धनेरा में केवल 6 घंटों में हुई 235 एमएम बारिश के बाद धनेरा, डीसा और थराड में हालात बदतर हो गए और घरों में पानी घुस गया.

राजस्थान से बाढ़ की तस्वीर (पीटीआई)

बाढ़ की घटनाओं की ये फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है. इसमें दोनों ही तरह के इलाके हैं. असम जैसे राज्य भी हैं, जहां बाढ़ एक सालाना त्रासदी है, लेकिन कश्मीर, राजस्थान, गुजरात जैसे राज्य भी हैं, जो हाल के वर्षों में भीषण बारिश और बाढ़ के हालात से रूबरू हो रहे हैं. यह सचमुच एक खतरनाक स्थिति है, जिसके पीछे मौसम में बदलाव यानी क्लाइमेट चेंज की भूमिका बिलकुल साफ है.

गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से पिछले साल सितंबर में जारी आंकड़ों के मुताबिक 2016 में बाढ़ के कारण 1.09 करोड़ लोग प्रभावित हुए. 850 लोगों को जान गंवानी पड़ी, जिनमें 184 मध्य प्रदेश में, 99 उत्तराखंड में, 93 महाराष्ट्र में 74 उत्तर प्रदेश में और 61 गुजरात में थे.

बिहार में 31 जिलों के 86 लाख लोगों पर मुसीबत का पहाड़ टूटा, जिनमें से 249 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे. कुछ ऐसा ही हाल असम में रहा, जहां 35 में से 30 जिलों में बाढ़ के कहर ने करीब 35 लाख लोगों को रोटी, कपड़े और मकान के लिए खून के आंसू रुला दिया.

पिछले करीब डेढ़ दशकों से हालात ये बनने लगे हैं कि लगभग हर दूसरे-तीसरे साल किसी न किसी राज्य या शहर में. भारी बारिश और बाढ़ के कारण आई त्रासदी इतिहास का हिस्सा बन रही है.

2004: बिहार के 20 जिलों में 2.10 करोड़ लोगों को प्रभावित करने वाली बाढ़ ने 3272 पशुओं और 885 लोगों की बलि ली.

2005: 26 जुलाई को मुंबई में हुई भारी बारिश ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. मुंबई में औसतन 242 एमएम बारिश होती है, लेकिन उस दिन 24 घंटे में शहर ने 994 एमएम वर्षा दर्ज किया. नतीजा यह हुआ कि पूरी मुंबई जहां के तहां ठहर गई. लोग 2-2 दिन तक ऑफिस से घर नहीं जा सके. जो जहां था, वहीं ठहर गया.

2005: इसी साल गुजरात ने भी अपने इतिहास की भीषणतम बाढ़ देखी. बहुत कम समय में हुई 505 एमएम बारिश के बाद करीब 7200 गांवों में पानी घुस गया और 1.76 लाख लोगों को अपना घर छोड़ कर भागना पड़ा.

2008: एक बार फिर बिहार 23 लाख लोग बाढ़ की चपेट में आए, जिनमें से 250 मौत के मुंह में ही समा गए. कुल 8.4 लाख हेक्टेयर जमीन पूरी तरह धुल गई और 3 लाख मकान क्षतिग्रस्त हो गए.

2010: लद्दाख में छह विदेशियों सहित 255 लोग बाढ़ की भेंट चढ़ गए.

2012: ब्रह्मपुत्र में आई बाढ़ ने न केवल 60 लोगों को बेघर किया और 124 लोगों को मारा, बल्कि काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क में 540 जानवर भी काल-कवलित हो गए.

2014: जम्मू-कश्मीर में आई भीषण बाढ़ में 280 लोग मारे गए और करीब 400 गांव पूरी तरह डूब गए.

2015: चेन्नई ने पिछले 100 सालों की सबसे भीषण बाढ़ देखी, जब दिसंबर के पहले हफ्ते में हुई करीब 500 एमएम बारिश के बाद पूरा शहर डूब गया. इस बाढ़ से 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.

साफ है कि दुनियाभर में जिस क्लाइमेट चेंज को लेकर हाहाकार मच रहा है, वह अपने सबसे कुरूप चेहरे के साथ भारत पर हमला कर चुका है. अब सवाल यह है कि क्या इस हालात से निपटने के लिए कोई समाधान है या फिर कहें कि क्या आने वाले सालों में तबाही का ये मंजर अपना दायरा और बढ़ा लेगा. ये ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर आपदा प्रबंधन के तरीकों से आगे जाकर खोजना होगा.

ऐसी जानलेवा बाढ़ की बढ़ती घटनाओं में इंसानी भूमिका को समझ कर उसके हल के लिए सरकार और मौसम विज्ञानियों को एक साथ माथापच्ची करनी होगी और साथ ही विश्व के दूसरे देशों के साथ भी सही सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़ना होगा. केवल तभी हर साल बढ़ती इस तबाही पर कुछ हद तक ब्रेक लगाने में सफलता मिल सकेगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)