view all

हमारा एजुकेशन सिस्टम: अच्छा पढ़ेंगे तभी तो मिलेगा रोजगार!

बिल गेट्स ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ी बात कही है. CNBC-TV 18 के साथ एक इंटरव्यू में गेट्स ने कहा, 'रोजगार का मुद्दा सीधे-सीधे शिक्षा की गुणवत्ता से जुड़ा है.'

Ashwini Kumar

2019 का आम चुनाव बिल्कुल सामने दिख रहा है. रोजगार को लेकर बड़ी बहस छिड़ी हुई है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के दावे एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. अपने-अपने दावों के हक में प्रधानमंत्री के पास भी आंकड़े हैं और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पास भी. लेकिन इसी बीच रोजगार न मिलने की वजह से ही एक बड़ा सवाल हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था पर है. ये सवाल हमारी स्कूली और उच्च शिक्षा पर भी है और व्यवसायिक शिक्षा पर भी.

गुणवत्ता में फिसड्डी है हमारी शिक्षा !


बिल गेट्स ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ी बात कही है. CNBC-TV 18 के साथ एक इंटरव्यू में गेट्स ने कहा, 'रोजगार का मुद्दा सीधे-सीधे शिक्षा की गुणवत्ता से जुड़ा है.' बिल गेट्स ने भारत में स्कूली बच्चों की शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयों तक में दी जा रही शिक्षा पर ये कहकर सवाल उठाया है, 'बच्चे स्कूल में रहते हुए क्या वास्तव में सीख रहे हैं? क्या भारत के विश्वविद्यालयों में छात्रों को इनोवेटिव होने के लिए प्रेरित किया जा रहा है?'

ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिन्हें सुनकर हमारे शिक्षा क्षेत्र के कर्ता-धर्ताओं को एक पल के लिए रुककर जरूर सोचना चाहिए.

IIT मुंबई से आए संदेश को भी सुनें

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आईआईटी मुंबई में थे. पीएम को आमंत्रित करने का विरोध करने वाले कुछ छात्रों ने एक स्टेटमेंट जारी कर मौजूदा सरकार शिक्षा नीति (खासकर उच्च शिक्षा) पर कई सवाल उठाए थे. हालांकि इन छात्रों ने अपनी पहचान गुप्त रखी, लेकिन मीडिया के एक हिस्से में इनकी चर्चा जरूर रही. आईआईटी मुंबई के इन ‘गुमनाम’ छात्रों ने जो मुख्य आरोप सरकार पर लगाए उनमें उच्च शिक्षा के बजट में कटौती और नतीजे में विश्वविद्यालयों की फीस बढ़ाने की बाध्यता, यूजीसी की जगह एचईसीआई लाकर उच्च शिक्षा में सरकारी दखलअंदाजी और, रोजगार सृजन में सरकार की नाकामी शामिल थी.

गौर करने वाली बात ये है कि आईआईटी मुंबई के इन छात्रों ने रोजगार के मसले पर ये भी कहा कि उन्हें पता है कि इस संस्थान का छात्र होने के नाते उन्हें बाकियों के मुकाबले जॉब हासिल करने में सुविधा रहनी है, लेकिन देश में रोजगार की भयावह स्थिति देखकर वे चिंतित हैं. ये वे छात्र हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री के संस्थान में मेहमान बनने का विरोध किया था. ऐसे में इनके वस्तुनिष्ठ होने पर सवाल हो सकते हैं.

लेकिन आंकड़ों के हवाले से वास्तविक स्थिति भी तो ठीक नहीं है. ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी’ (सीएमआईई) संस्था की रिपोर्ट कहती है कि 2017-18 के वित्त वर्ष में जॉब ग्रोथ शून्य रही. यानी इस दौरान जितने लोगों ने नौकरी पाई, उतने ही लोग अलग-अलग वजहों से नौकरी से अलग हो गए. इन वजहों में रिटायरमेंट, नौकरी खो देना जैसे कारण शामिल हैं.

इसी साल अप्रैल के महीने में मोदी सरकार ने दावा किया था कि सितंबर 2017 से फरवरी 2018 के बीच के 6 महीनों में 31.1 लाख रोजगार पैदा हुए. इसके उलट सीएमआईई के आंकड़े 18 लाख रोजगार पैदा होने की ही बात करते हैं. वैसे अगर सरकार के आंकड़े सही भी हैं, तो भी वो 2014 में हर साल एक करोड़ रोजगार देने के वादे से बहुत दूर हैं.

शिक्षा क्षेत्र की स्थिति भयावह है

वैसे तो रोजगार का पहला रिश्ता इकॉनमी की रफ्तार और सरकार के फैसलों से ही होता है, लेकिन रोजगार का सीधा वास्ता शिक्षा की गुणवत्ता से भी है. और गुणवत्ता का आलम है कि सरकारी दस्तावेज ही बता रहा है कि देश में 277 फर्जी विश्वविद्यालय चल रहे हैं. इनमें से सबसे ज्यादा 66 तो देश की राजधानी में ही मौजूद हैं. तेलंगाना में 35 और पश्चिम बंगाल में 27 ऐसे विश्वविद्यालय हैं. बाकी राज्य भी अछूते नहीं हैं. इस भयावह सच को संसद में खुद सरकार ने अभी-अभी कबूल किया है.

ये तो बस फर्जी विश्वविद्यालयों के आंकड़े हैं. इस देश के फर्जी वोकेशनल संस्थानों की गिनती तो शायद ही किसी के वश में है. छोटे कस्बे से लेकर महानगरों तक किसी भी भीड़-भाड़ वाले इलाके में नजर उठाकर देख लीजिए किसी न किसी वोकेशनल इंस्टीट्यूट की तख्ती आपको फंसाने के लिए पुकारती हुई जरूर दिख जाएगी. इनमें से मानकों पर कितने खरे उतरते हैं? हमें भी पता है, आपको भी और सरकार को भी.

सोचिए इनके समाज पर पड़ने वाले असर के बारे में. अव्वल तो इनसे निकले छात्र शैक्षिक गुणवत्ता के लिहाज से इतने लचर होंगे कि उन्हें नौकरी ही नहीं मिलेगी. और अगर वो किसी जुगाड़ से नौकरी हासिल भी कर लेते हैं, तो किसी संस्थान के लिए कितने कारगर होंगे? यही नहीं, ऐसे छात्रों को मिलने वाली हर नौकरी की एवज में यकीनन एक योग्य उम्मीदवार नौकरी पाने से वंचित भी रह जाएगा. 

व्यावसायिक शिक्षा पर एक अच्छी पहल

बहरहाल, एक अच्छी पहल ये होने जा रही है कि मौजूदा केंद्र सरकार वोकेशनल ट्रेनिंग को लेकर रेगुलेशन ला रही है. इसके जरिये ये सुनिश्चित किया जाएगा कि ट्रेनिंग की गुणवत्ता बेहतर हो और जॉब मिलने की गारंटी दे. इसका गठन ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) की तर्ज पर होना है. जाहिर है सरकार की ये पहल इसलिए भी जरूरी थी क्योंकि अगर हम ‘स्किल इंडिया’ की बात करते हुए वोकेशनल ट्रेनिंग के जरिये रोजगार पैदा करने की बात करते हैं, तो इसके लिए प्रशिक्षण की गुणवत्ता भी उच्च होनी ही चाहिए.

न इधर के रहे, न उधर के !

बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा कहते हैं, 'भारत को प्राचीन शिक्षा पद्धति अपनानी चाहिए. इसके जरिये मजबूत भारत का निर्माण भी होगा और नई पीढ़ी मौजूदा वक्त में पैदा हो रहे तनावों का मुकाबला करने लायक बनेगी. भारतीय परंपराओं और ग्रंथों में ऐसी सामग्री भरी पड़ी है, जिनके जरिये आज के हालात से निपटा जा सकता है लेकिन आधुनिक भारत अपने इस खजाने की तरफ न तो ध्यान दे रहा है और न ही उसका इस्तेमाल कर पा रहा है.'

कुछ लोगों को दलाई लामा की बातें आज के संदर्भ में अप्रासंगिक लग सकती हैं. लेकिन तब ऐसे लोगों से ये सवाल भी किया जाना चाहिए कि हमने जो नई शिक्षा पद्धति खड़ी की क्या वो सफल रही है? रोजगार के पैमाने पर? देश का अच्छा नागरिक बनाने के पैमाने पर? दुनिया में हमें प्रतिस्पर्धी बनाने के पैमाने पर? ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब आसान नहीं है.

दलाई लामा के तर्क में कुछ भी गलत नहीं लगता, हां ये जरूर कहा जा सकता है कि उस राह पर चलने में अब बहुत देर हो चुकी है. लेकिन भारतीय परंपराओं और विधाओं को अगर शिक्षा का मुख्य कोर्स न भी सही, तो समानान्तर पद्धति के रूप में अभी भी अपनाया तो जा ही सकता है.

बहरहाल, बात शुरू हुई थी बिल गेट्स के बयान पर. जिसमें उनके कुछ सवाल भारतीय शिक्षा के तौर-तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं फिर से वापस गेट्स के नजरिये पर लौटें और उनसे सहमति जताएं, तो दोषी सिर्फ मोदी सरकार नहीं दिखती. बल्कि तमाम पूर्ववर्ती सरकारों पर भी इसका दोष जाता है और इनमें से सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली कांग्रेस सरकार पर शायद सबसे ज्यादा. लेकिन वक्त एक-दूसरे का दोष निकालने का नहीं, मिलकर मंथन करने और बदलाव लाने का है.

किस दुनिया में फंसी है हमारी शिक्षा ?

आए दिन खबरें आती हैं कि एक राज्य में स्कूल की किताब में ये विवादित चीज पढ़ाई जा रही है. दूसरे राज्य में इतिहास की किसी शख्सियत का पाठ जोड़कर राजनीति की जा रही है. तीसरे राज्य में किसी इतिहास पुरुष को किताब के पन्नों से साजिश के तहत बेदखल किया जा रहा है. वगैरह-वगैरह. शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए पहले ऐसी करतूत करने वालों को शिक्षित होने और ऐसा होने तक उन्हें व्यवस्था से अलग करने की भी जरूरत है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. फ़र्स्टपोस्ट हिंदी पर प्रकाशित उनके अन्य लेख यहां क्लिक कर पढ़े जा सकते हैं)